उज्जैन के महाकाल ज्योतिर्लिंग में महाशिवरात्रि के लिए भक्तों का सैलाब उमड़ पड़ा है। लाखों की संख्या में लोग बाबा महाकाल के दर्शन-पूजन के लिए मंदिर परिसर में एकत्रित हुए हैं। महाशिवरात्रि के लिए रात 2.30 बजे मंदिर के पट खुल गए। बाबा के दर्शन का सिलसिला आज रात को 10.30 बजे होने वाली शयन आरती तक जारी रहेगा।
गर्भगृह में भक्तों का प्रवेश प्रतिबंधित
महाशिवरात्रि को लाखों की संख्या में पहुंचे भक्तों को देखते हुए मंदिर प्रशासन ने गर्भगृह में जाकर दर्शन करने पर प्रतिबंध लगाया हुआ है। हालांकि यह केवल आज के लिए किया गया है। बाद के दिनों में श्रद्धालु गर्भगृह में जाकर दर्शन कर सकते हैं।
21 तारीख को शाम को 5 बजकर 20 मिनट से 22 फरवरी, शनिवार को शाम सात बजकर 2 मिनट तक रहेगी।
शाम को 6 बजकर 41 मिनट से रात 12 बजकर 52 मिनट तक होगी।
महाशिवरात्रि के दिन शुभ काल के दौरान ही महादेव और पार्वती की पूजा की जानी चाहिए तभी इसका फल मिलता है। महाशिवरात्रि पर रात्रि में चार बार शिव पूजन की परंपरा है।
हिंदू धर्म के अनुसार भगवान शिव पर पूजा करते वक्त बिल्वपत्र, शहद, दूध, दही, शक्कर और गंगाजल से अभिषेक करना चाहिए। ऐसा करने से आपकी सारी समस्याएं दूर होंगी साथ ही मांगी हुआ वर भी पूरा होगा।
पौराणिक मान्यता के अनुसार इसी पावन रात्रि को भगवान शिव ने संरक्षण और विनाश का सृजन किया था। मान्यता यह भी है कि इसी पावन दिन भगवान शिव और देवी पार्वती का शुभ विवाह संपन्न हुआ था।
महाशिवरात्रि मनाए जाने के संबंध में कई पुराणों में बहुत सारी कथाएं प्रचलित हैं। भागवत् पुराण के अनुसार समुद्र मंथन के समय वासुकी नाग के मुख में भयंकर विष की ज्वालाएं उठी और वे समुद्र में मिश्रित हो विष के रूप में प्रकट हो गई। विष की यह आग की ज्वालाएं पूरे आकाश में फैलकर सारे जगत को जलाने लगी। इसके बाद सभी देवता, ऋषि-मुनि भगवान शिव के पास मदद के लिए गए। इसके बाद भगवान शिव प्रसन्न हुए और उस विष को पी लिया। इसके बाद से ही उन्हें नीलकंठ कहा जाने लगा। शिव द्वारा इस बड़ी विपदा को झेलने और गरल विष की शांति के लिए उस चंद्रमा की चांदनी में सभी देवों ने रात भर शिव का गुणगान किया। वह महान रात्रि ही शिवरात्रि के नाम से जानी गई।
इसके अलावा लिंग पुराण के अनुसार एक बार ब्रह्मा और विष्णु दोनों में इस बात को लेकर विवाद हो गया कि दोनों में से बड़ा कौन है। स्थिति यह हो गई कि दोनों ही भगवान ने अपनी दिव्य अस्त्र शस्त्रों का इस्तेमाल कर युद्ध घोषित कर दिया। इसके बाद चारों ओर हाहाकार मच गया। देवताओं, ऋषि मुनियों के अनुरोध पर भगवान शिव इस विवाद को खत्म करने के लिए ज्योतिर्लिंग रूप में प्रकट हुए। इस लिंग का न कोई आदि था और न ही अंत था।