महाराणा प्रताप स्पोर्ट्स कॉलेज के आइस रिंक में बर्फ जमाने वाले कंप्रेसर बुधवार को 13 साल बाद फिर से गरज उठे। खेल विभाग की कोशिश है कि 26 तक बर्फ जमना शुरू हो जाए। यूएसए से आए दो इंजीनियर रिंक के बेसमेंट में लगी कूलिंग मशीनों की प्रोग्रामिंग पर काम कर रहे हैं।
वहीं, सवाल भी खड़े हो रहे हैं। सबसे बड़ा सवाल है कि इतनी कवायद का लाभ किसे मिलेगा, बजट और आइस स्पोर्ट्स के खिलाड़ी कहां से आएंगे। आरोप है कि जब 38वें राष्ट्रीय खेलों से संबंधित कई सौ करोड़ की देनदारी बाकी है तो आइस रिंक के ढांचे पर खर्च करने की क्या आवश्यकता है। इस पर विशेष प्रमुख सचिव (खेल) अमित सिन्हा ने कहा कि रिंक का बुनियादी ढांचा आज का नहीं है।
उपकरण 13 साल से स्थापित हैं, उन्हें फिर से सुचारू किया जा रहा है। ताकि खिलाड़ी लाभ उठा सकें। उत्तराखंड में ही आइस स्पोर्ट्स के 50 से ज्यादा खिलाड़ी हैं, जो पूरे साल पहाड़ी क्षेत्रों में बर्फ गिरने का इंतजार करते हैं।
यहां की हॉकी टीम को आइस हॉकी के अभ्यास का मौका मिलेगा और नए अवसर खुलेंगे। बजट और शुल्क पर कहा कि बजट राष्ट्रीय खेलों के दौरान मिला था और शुल्क पर अभी फैसला नहीं लिया जा सकता। इस समय देश के नौ राज्यों के खिलाड़ी विंटर स्पोर्ट्स खेलते हैं।
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