पेट्रोल-डीजल के बढ़ते दाम तथा गिरते रुपये से अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर मुश्किलों का सामना कर रही केंद्र सरकार के महंगाई के आधिकारिक आंकड़ों से राहत पहुंची है. अगस्त महीने के दौरान खुदरा मुद्रास्फीति 10 महीने के निचले स्तर पर रही. हालांकि इन आंकड़ों पर सवाल खड़ा हो रहा है कि जहां पेट्रोल-डीजल की लगातार बढ़ती कीमतों के साथ-साथ जब डॉलर के मुकाबले रुपये में भी लगातार कमजोरी दर्ज हो रही हो तो ऐसी स्थिति में महंगाई को घर करने से कोई नहीं रोक सकता. ऐसे में किन कारणों से देश में खुदरा महंगाई के आंकड़ों में गिरावट देखने को मिल रही है और इस गिरावट का क्या खामियाजा उठाना पड़ सकता है?
क्यों घट गई खुदरा महंगाई?
केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सीएसओ) द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, फल और सब्जियों सहित रसोई का सामान सस्ता होने से खुदरा मुद्रास्फीति घटी है. उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति एक महीने पहले जुलाई में 4.17 फीसदी और पिछले साल अगस्त में 3.28 फीसदी रही थी. वहीं 2018 में पहली बार अगस्त के दौरान खुदरा महंगाई 4 फीसदी के नीचे 3.69 फीसदी पहुंच गई है. केन्द्र सरकार का यह आंकड़ा जारी करने वाली एजेंसी का दावा है कि देश में लगातार बढ़ रहे पेट्रोल-डीजल के दाम से महंगाई आने के खतरे को खत्म करने का काम देश में सब्जियों, फलों और दलहन की कीमतों में आई गिरावट ने किया है.
क्या बढ़ेंगी ब्याज दरें?
गौरतलब है कि खुदरा महंगाई का यह आंकड़े केन्द्रीय रिजर्व बैंक के अनुमान से भी बेहद दर्ज हुआ है. अपनी पिछली मौद्रिक समीक्षा नीति में आरबीआई ने चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही के दौरान 4.6 फीसदी रहने का अनुमान जताया था. लेकिन उसकी अपेक्षा से कम महंगाई स्तर दर्ज होने के बाद अब उसके सामने सबसे बड़ी चुनौती अक्टूबर के दौरान मौद्रिक समीक्षा में किस आधार पर ब्याज दरों में इजाफा करे. गौरतलब है कि वैश्विक स्तर पर मुद्राओं पर जारी संकट के बीच आर्थिक जानकारों का मानना है कि रिजर्व बैंक रुपये को मजबूत रखने के लिए ब्याज दरों में एक बार फिर इजाफा कर सकती है.
केन्द्रीय सांख्यिकी विभाग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है खाद्य सामग्री महंगाई जहां अगस्त में 0.29 फीसदी दर्ज हुई वहीं जुलाई के दौरान यह 1.37 फीसदी थी. वहीं फूड बास्केट में सब्जियों की महंगाई दर जुलाई के -2.19 फीसदी से गिरकर अगस्त में -7 फीसदी दर्ज हुई. रिपोर्ट के मुताबिक हालांकि दाल और दाल के उत्पाद की महंगाई जुलाई के -8.91 फीसदी के स्तर से बढ़कर 7.76 फीसदी दर्ज हुई है.
किसे होगा नुकसान?
देश में कम होती महंगाई उपभोक्ताओं के लिए अच्छी खबर है लेकिन इससे अर्थव्यवस्था के चुस्त होने पर भी सवाल खड़ा होता. जहां उपभोक्ताओं को बाजार में सस्ती दर पर खाद्य समेत अन्य उत्पाद उपलब्ध होंगे वहीं देश में किसानों के सामने मुश्किलें खड़ी हो जाएंगी.
गौरतलब है कि केन्द्र सरकार किसानों की आमदनी को 2022 तक दोगुनी करने के लक्ष्य पर काम कर रही है. लेकिन महंगाई दर में जारी गिरावट इस लक्ष्य को और आगे ढकेल सकता है. दरअसल खाद्य महंगाई यदि कम हो रही है तो किसानों को उनके उत्पाद की सही कीमत बाजार में नहीं मिलेगी. वहीं अपने उत्पाद को बाजार तक पहुंचाने में किसान की लागत में महंगे पेट्रोल-डीजल के चलते लगातार इजाफा हो रहा है.