कोरोना के संकटकाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आत्मनिर्भर भारत अभियान में मध्य प्रदेश भी भागीदारी करने जा रहा है। इस भागीदारी का एक कदम औषधीय खेती को बढ़ावा देकर उठाया जा रहा है।
इसके लिए राज्य सरकार करीब 100 करोड़ रुपये की एक योजना को आकार दे रही है। इसके जरिए प्रदेश में हर साल 10 हजार हेक्टेयर में औषधीय खेती का रकबा बढ़ाया जाएगा।
इसमें औषधीय खेती के लिए चुने गए एक दर्जन से अधिक जिलों में अलग-अलग औषधियां उगाने के क्लस्टर बनाए जाएंगे।
औषधीय खेती से नए किसानों को जोड़कर उनकी औषधीय उपज की न केवल मार्केटिंग की जाएगी, बल्कि उन्हें प्रोसेसिंग यूनिट लगाने के लिए भी प्रेरित किया जाएगा।
मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान इस योजना के प्रस्ताव की जल्द ही समीक्षा करेंगे। इसके बाद योजना को अंतिम रूप देकर मंजूरी के लिए भारत सरकार को भेजा जाएगा।
मध्यप्रदेश में फिलहाल 35-40 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में औषधियों की खेती होती है। इसमें मालवा के नीमच, मंदसौर, रतलाम, शाजापुर, आगर-मालवा, देवास आदि जिले शामिल हैं।
इनके अलावा होशंगाबाद, बैतूल, मंडला, शहडोल, अनूपपुर, दतिया आदि जिले भी औषधियों की खेती करते हैं। मालवा के जिलों में कई किसान इस समय अश्वगंधा, शतावरी, इसबगोल, तुलसी, कालमेघ, गिलोय, चंद्रसूर, एलोवेरा आदि की खेती कर रहे हैं।
नीमच में औषधीय फसलों की मंडी भी तैयार हो चुकी है। सरकार की योजना है कि मध्यप्रदेश की इन्हीं संभावनाओं को पहचानते हुए औषधीय खेती को बढ़ावा देकर न केवल किसानों की आमदनी बढ़ाई जा सकती है, बल्कि औषधियों की पैदावार बढ़ाकर देश को आत्मनिर्भर बनाने में योगदान दिया जा सकेगा।
इनमें से गिलोय, अश्वगंधा, शतावरी, ग्वारपाठा जैसी औषधियां लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में भी कारगर साबित हो रही हैं। इससे कोरोना जैसे वायरस से लड़ने में भी मदद मिलेगी।
इस समय औषधीय खेती के क्षेत्र में मालवा अगुआ बनता जा रहा है। इसमें निमाड़ भी सहयोगी की भूमिका निभा रहा है। उज्जौन संभाग के नीमच-मंदसौर जिले तो इसके गढ़ बन चुके हैं।
नीमच के उद्यानिकी उप संचालक नारायणसिंह कुशवाह के मुताबिक यहां करीब 20 हजार किसान औषधीय खेती कर रहे हैं। करीब 1200 हेक्टेयर में अश्वगंधा बोया जा रहा है।
यहां का अश्वगंधा अमेरिका, जर्मनी और अरब देशों में भी निर्यात होता है जो इम्युनिटी बढ़ाने में उपयोगी है। शतावर, इसबगोल, तुलसी, कलौंजी, सफेद मूसली, कालमेघ, गिलोय की भी खेती हो रही है।
इस साल पहली बार हमने कुछ किसानों को गूगल लगवाया है। इसके पौधे गुजरात से लेकर आए हैं। दूध के रूप में निकलने वाला गूगल का लेटेक्स गोंद कैंसर, हृदय रोग जैसी बीमारियों में कारगर है। उज्जौन संभाग के संयुक्त संचालक उद्यानिकी आशीष कलेश के मुताबिक विलुप्त औषधियों की खेती पर भी हम काम करने जा रहे हैं। इसके लिए किसानों को प्रोत्साहित कर रहे हैं।
औषधीय खेती के मामले में आगर-मालवा जिले की बड़ौद तहसील के विनायगा गांव के किसान राधेश्याम परिहार समूचे मालवा-निमाड़ में मिसाल बन चुके हैं।
महज 10वीं तक पढ़े परिहार के पास मात्र 15 एकड़ कृषि भूमि है, लेकिन धीरे-धीरे मालवा और निमाड में दूसरे किसानों को जोड़कर 520 एकड में औषधीय खेती करने लगे हैं।
उन्होंने न केवल अपनी कंपनी बना ली है, बल्कि सरकार को जीएसटी और आयकर भी चुका रहे हैं। परिहार के मुताबिक कंपनी का सालाना टर्नओवर 1.80 करोड रुपये है। इंदौर, धार, देवास, बड़वानी, शाजापुर जिलों में किसानों को औषधीय खेती का प्रशिक्षण भी देते हैं।