मंदिर बन जाने से संघ के हिंदू और मुस्लिमों के बीच रिश्ते नहीं सुधरने वाले

 बहुजन समाज पार्टी (बसपा) सुप्रीमो मायावती ने गुरूवार को कहा कि दिल्ली में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) का संवाद कार्यक्रम राजनीति से प्रेरित था, जिससे अब चुनाव के समय बीजेपी सरकार की कमियों और विफलताओं के साथ ही गरीबी, महंगाई, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार आदि मुद्दों से लोगों का ध्यान बंटाया जा सके. संघ प्रमुख मोहन भागवत के इस बयान पर कि ‘जन्मभूमि पर मन्दिर बने और अगर मुसलमान खुद बनवाते हैं तो बरसों से उन पर उठ रही अंगुलियां झुक जाएंगी’’ उन्होंने कहा कि बसपा इस तर्क से बिल्कुल भी सहमत नहीं है तथा एक नहीं बल्कि अनेक मन्दिर बन जाएं फिर भी संकीर्ण संघी हिन्दू और मुसलमान के बीच रिश्ते सुधरने वाले नहीं हैं.

मायावती ने एक बयान में कहा कि बीजेपी सरकारों की गरीब, मजदूर, किसान-विरोधी तथा बड़े-बड़े पूंजीपतियों और धन्नासेठ-समर्थक नीतियों से इनकी विफलताओं के कारण देशभर में छाए व्यापक जन आक्रोश से संघ का चिन्तित होना भी स्वाभाविक है, क्योंकि धन्नासेठों की तरह इन्होंने भी बीजेपी की जीत के लिए अपना सब कुछ दाव पर लगा दिया था.

उन्होंने कहा ‘‘अब बीजेपी सरकार की हर क्षेत्र में घोर कमियों व विफलताओं, भ्रष्टाचार आदि के मामलों में इन्हें भी जनाक्रोश का सामना करना पड़ रहा है. इसलिए लोगों का ध्यान बंटाने के लिए राजनीतिक मकसद के तहत विभिन्न प्रयास किए जा रहे हैं. परन्तु, जनता इस प्रकार के प्रयासों से अब और ज्यादा भ्रमित होने वाली नहीं है.

केन्द्र सरकार द्वारा ‘‘तीन तलाक’’ पर अध्यादेश लाकर इसे अपराध घोषित करने पर मायावती ने कहा कि बीजेपी इस प्रकार के संवेदनशील मुद्दों पर भी स्वार्थ की राजनीति करके अब चुनाव के समय लोगों का ध्यान अपनी कमियों व विफलताओं पर से हटाना चाहती है. यदि ऐसा नहीं होता तो इस संबंध में कानून बनाने से पहले इस पर समुचित विचार-विमर्श के लिए इस विधेयक को संसदीय समिति के पास भेजने की मांग केन्द्र सरकार ने ज़रूर मान ली होती

उन्होंने कहा कि वैसे भी लोगों की राय में नोटबन्दी व जीएसटी आदि की तरह तीन तलाक के मामले में भी केन्द्र सरकार के अपरिपक्व व काफी अड़ियल रवैये से पीड़ित मुस्लिम महिलाओं की समस्यायें पूरे तौर से एवं आसानी से हल होने वाली नहीं हैं.

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