मंदसौर में क्यों उग्र हुआ किसानों का आंदोलन? इन सात बिंदुओं से जानें पूरी कहानी

मध्य प्रदेश इन दिनों किसानों आंदोलन और उसके बाद जारी हिंसा की चपेट में है. यहां पुलिस गोलीबारी में 5 किसानों की मौत के बाद इस आंदोलन ने उग्र रूप ले लिया, जहां मुख्यरूप से माल्वा इलाके में प्रदर्शनकारियों ने जगह-जगह में आगजनी, तोड़फोड़ और पथराव किया. गुरुवार को लगातार तीसरे दिन वहां हिंसा का दौर जारी है.

मंदसौर में क्यों उग्र हुआ किसानों का आंदोलन? इन सात बिंदुओं से जानें पूरी कहानी

क्यों उबल रहा माल्वा?

किसान आंदोलन के बाद उग्र हुए विरोध प्रदर्शन से मालवा इलाके के 9 जिले मंदसौर, नीमच, खरगौन, देवास, धार, इंदौर, रतलाम, उज्जैन और बडवाणी सबसे ज्यादा प्रभावित है. मालवा क्षेत्र के यूं उबलने की पीछे की वजह यह है कि यहां की इंदौर मंडी राज्य के बड़े बाजार में शुमार होती है और यहां के किसान ज्यादा संगठित हैं.

योगी की किसान कर्ज माफी बनी आखिरी कील

शिवराज सिंह चौहान जनवरी महीने में नर्मदा यात्रा शुरू की थी, जो कि चार महीनों तक चली. इस दौरान आरआरएस से जुड़े भारतीय किसान संघ के अलावा भारतीय किसान यूनियन जैसे संगठनों ने किसानों को एकत्रित करना शुरू कर दिया. इस दौरान किसानों की कर्ज माफी के योगी सरकार के फैसले ने किसानों के सब्र का बांध तोड़ दिया और उन्होंने अपने पूरे कर्ज माफ करने तथा फसलों बेहतर कीमत की मांग को लेकर 1 जून से आंदोलन का ऐलान कर दिया. इस दौरान प्याज की बंपर फसल की वजह से इसकी घटी कीमतों ने भी आग में घी का काम किया, जहां किसान डेढ़ रुपये किलो तक में प्याज बेचने को मजबूर है.

प्याज ने निकाले किसानों के आंसू

अपने गेहूं के लिए मशहूर मध्य प्रदेश में सरकार ने किसानों को अपनी फसलों में विविधता लाने के लिए प्रेरित किया. इसी का नतीजा था कि किसान प्याज की खेती करने लगे. हालांकि पिछले साल और इस साल हुई बंपर फसल की वजह से उनके लिए प्याज पर लागत भी निकालना भी मुश्किल हो गया. काफी कोशिशों के बाद राज्य सरकार ने जहां पिछले साल प्याज पर न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) 6 रुपये प्रति किलो कर दिया. वहीं इस साल किसानों के आंदोलन के बाद एमएसपी बढ़ाकर 8 रुपये किया गया, जबकि किसानों का कहन है कि प्याज की खेती में प्रति किलो 4-5 रुपये तक की उनकी लागत ही बैठती है.

नोटबंदी की वजह से पेमेंट में देरी

नोटबंदी के बाद सरकार ने खेती सहित सभी क्षेत्रों में पूरी तरह डिजिटल भुगतान शुरू कर दिया. इसका नतीजा यह हुआ कि किसानों को अपनी फसल के बदले चेक में पेमेंट मिलने लगा, जिससे उनके हाथों में पैसे आने में और देरी हुई. किसानों के विरोध के बाद सरकार उनकी मांगों के आगे थोड़ी झुकी जरूर, लेकिन अब भी आधी पेमेंट ही नकद हो रही थी, जबकि बाकी के बैंक खातों में ही जा रहा था. किसानों में नकदी की कमी को लेकर भी गुस्सा था.

RSS के किसान यूनियन को तरजीह

किसानों में बढ़ते गुस्से के बीच शिवराज सिंह ने सोमवार को उज्जैन में बस भारतीय किसान संघ से मुलाकात और प्याज की एमएसपी 8 रुपये करने का ऐलान किया. हालांकि यह बात भारतीय किसान यूनियन को नागवार गुजरी और उसी रात ने उन्होंने विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया. इस दौरान किसानों का आंदोलन उग्र होता गया, कुछ किसानों ने मंदसौर में रेलवे लाइन की फिश-प्लेट तक उखाड़ डाली. इस दौरान उग्र भीड़ को काबू में करने के लिए पुलिस ने फायरिंग की, जिसमें 5 किसानों की मौत हो गई. इस घटना के बाद राज्य में हिंसा और भड़क गई और देखते ही देखते इसे मालवा के 9 जिलों को अपनी चपेट में लिया.

खुफिया विभाग की नाकामी

किसानों में बढ़ते गुस्से के बीच राज्य की खुफिया विभाग की नाकामी भी सामने आई. वह किसानों में इस कद्र बढ़ चुके गुस्से को भांपने में पूरी तरह से नाकाम रही. यहां ऐसा माना जा रहा है कि पुलिस महकमे के ज्यादातर अधिकारी सीएम शिवराज चौहान की नर्मदा यात्रा की तैयारियों और सुरक्षा व्यवस्था की देखरेख में ही व्यस्त थे.

किसानों की आत्महत्या

यूं तो किसान आत्महत्या की घटनाएं यूं तो कई राज्यों में देखने को मिलीं, लेकिन इसे लेकर कई मौकों पर सीएम शिवराज का बयान किसानों के गले नहीं उतरा. उन्होंने साफ किया था कि किसान आत्महत्या की सभी घटनाओं के पीछे कर्ज समस्या ही वजह नहीं. इसके अलावा किसानों के लेकर शिवराज के मंत्रियों के वक्त-बेवक्त दिए बयानों को लेकर भी किसानों में नाराजगी थी.

मोदी के चुनावी वादे

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने चुनावी कार्यक्रम के दौरान किसानों को उनकी लागत पर 50% मुनाफा सुनिश्चित करने का वादा किया था. हालांकि कृषिमंत्री राधामोहन सिंह ने पिछले ही यह कहते हुए यह कहते हुए अपने हाथ खड़े कर दिए थे कि ये संभव नहीं दिख रहा. वहीं सत्ता में आने से पहले बीजेपी ने स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करने का मुद्दा जोर-शोर से उठाया, लेकिन सरकार बनने के बाद इस पर चुप्पी साध गई. ऐसे में अब ये किसान आयोग की सिफारिशों जल्द लागू करने की मांग कर रहे हैं.

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