भूलकर भी इस जगह न लगाएं मंदिर वरना हो सकता है पूरा का पूरा विनाश

वास्तु शास्त्र के अनुसार चाहें घर हो या ऑफिस, मंदिर का निर्माण हमेशा ईशान कोण, यानी उत्तर-पूर्व दिशा में ही करवाना चाहिए। इस दिशा को ब्रह्म स्थान माना जाता है।  पूजा स्थल के निर्माण के लिए इसी दिशा का चुनाव करना सबसे बेहतर होता है। वास्तु शास्त्र के अनुसार मंदिर की दीवारों का रंग हल्का पीला होना शुभ होता है।

वास्तु के अनुसार कभी भी सोने वाले स्थान या फिर बेड के पास मंदिर  नहीं बनाना चाहिए। अगर आपके बेडरूम में मंदिर हैं तो रात को मंदिर पर पर्दा डाल दें। भूलकर भी मंदिर के आसपास कूड़ादान, शौचालय, झाड़ू-पोछा आदि न रखे। इससे नकारात्मक ऊर्जा प्रबल हो जाती है। कभी भी सीढ़ियों के नीचे मंदिर न बनाएं। इसके अलावा घर में बनाए मंदिर के ऊपर गुंबद न बनाए। ऐसा करना नकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है।

क्या है वास्तु शास्त्र- संस्कृत में कहा गया है कि… गृहस्थस्य क्रियास्सर्वा न सिद्धयन्ति गृहं विना। वास्तु शास्त्र घर, प्रासाद, भवन अथवा मन्दिर निर्मान करने का प्राचीन भारतीय विज्ञान है जिसे आधुनिक समय के विज्ञान आर्किटेक्चर का प्राचीन स्वरुप माना जा सकता है। डिजाइन दिशात्मक संरेखण के आधार पर कर रहे हैं। यह हिंदू वास्तुकला में लागू किया जाता है, हिंदू मंदिरों के लिए और वाहनों सहित, बर्तन, फर्नीचर, मूर्तिकला, चित्रों, आदि। दक्षिण भारत में वास्तु का नींव परंपरागत महान साधु मायन को जिम्मेदार माना जाता है और उत्तर भारत में विश्वकर्मा को जिम्मेदार माना जाता है।

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