भूकंप के 6 दिन बाद इमरान खान को लोगों का हाल जानने का वक्‍त मिला

कश्‍मीर और कश्‍मीरियों का राग अलापकर उनका हमदर्द बनने का दिखावा करने वाले पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान को गुलाम कश्‍मीर में आए जबरदस्‍त भूकंप में हताहत हुए लोगों का हाल जानने का आखिरकार वक्‍त मिल ही गया। 

वह इतने दिनों भारत पर आरोपों की फहरिस्‍त गढ़ने में इस कदर व्‍यस्‍त थे कि उन्‍हें गुलाम कश्‍मीर में भूकंप से मारे और हताहत हुए लोगों का ध्‍यान तक नहीं आया। 27 सितंबर को भी जब उन्‍होंने संयुक्‍त राष्‍ट्र महासभा में अपना भाषण दिया तो उसमें भी गुलाम कश्‍मीर में आए भूकंप का कोई जिक्र तक नहीं किया गया।

अलबत्‍ता वो भारत पर ही आरोप मढ़ते नजर आए। संयुक्‍त राष्‍ट्र महासभा के इतिहास में यह पहला मौका था जब पाकिस्‍तान के किसी प्रधानमंत्री ने भारतीय प्रधानमंत्री पर निजी हमला किया हो। इस दौरान उन्‍हें गुलाम कश्‍मीर के मीरपुर में आए भूकंप की कोई परवाह नहीं थी। 

हताहतों को मुआवजा भी नहीं

भूकंप पीडि़तों से मिलने जाना तो दूर पाकिस्‍तान के प्रधानमंत्री ने यहां मारे गए लोगों के लिए मुआवजे का भी ऐलान तीन दिन के बाद किया। उसमें भी यह एलान केवल उन्‍ही लोगों के परिजनों के लिए था जिनका कोई अपना इस आपदा में जान गंवा बैठा हो। आपदा में मारे गए लोगों के परिजनों को पांच लाख का मुआवजा देने के साथ ही इमरान खान ने यहां पर अपनी फर्ज अदायगी कर ली थी।

लेकिन घायलों या उन लोगों को जिनके घर या पशु इसमें मारे गए, को कोई मुआवजा देने का एलान नहीं किया गया। पाकिस्‍तान प्रधानमंत्री इमरान खान का इस माह में आज यह तीसरा मौका है कि जब वो गुलाम कश्‍मीर आए हों। इससे पहले वो दो बार यहां आए थे लेकिन उसका मकसद भारत के प्रति लोगों को भड़काना था।

इमरान खान का बड़ा जलसा

आपको याद होगा कि मुजफ्फराबाद में बड़े जलसे को संबोधित करते हुए उन्‍होंने यहां तक कहा था कि यहां के लोगों को कब एलओसी पर जाना है इसका एलान वो खुद करेंगे। इसकी एक और हकीकत मीडिया में सामने आई थी।

मुजफ्फराबाद के लोगों का कहना था कि पाकिस्‍तान की सेना उन्‍हें जबरन एलओसी पर भेज रही है। लेकिन जब यहीं पर भूकंप आया तो उन्‍हें इन लोगों की कोई सुध नहीं आई। गुलाम कश्‍मीर के अपने कानूनों के तहत घायलों को 50 हजार से डेढ़ लाख, मकान गिरने पर 60 हजार से एक लाख तक का मुआवजा देने का नियम है।

भूकंप के बाद फैलाए हाथ

गुलाम कश्‍मीर के राष्‍ट्रपति ने भूकंप के कुछ ही देर बाद विदेशों से राहत की गुहार लगानी शुरू कर दी थी। उनकी यह अपील इस बात का भी सुबूत है कि वहां की नाममात्र सरकार की माली हालत कैसी है। इसके अलावा यह अपील इस तरफ इशारा करने के लिए काफी है कि बीते सात दशकों में पाकिस्‍तान की सरकार ने यहां के विकास के लिए क्‍या कुछ किया है।

यहां की हकीकत ये है कि यह पूरा इलाका वर्षों से विकास की बाट जोह रहा है। यहां पर पाकिस्‍तान की सरकार ने आतंकी कैंपों को तो विकसित किया है, लेकिन लोगों के रोजगार का यहां पर कोई इंतजार बीते सात दशकों में नहीं किया गया। इस पूरे क्षेत्र की एक हकीकत ये भी है कि पाकिस्‍तान की सरकार इसको रणनीतिक तौर ही अपने लिए सही मानती आई है। 

मीरपुर में सबसे अधिक नुकसान

24 सितंबर को यहां पर 5.8 की तीव्रता का भूकंप आया था। इसका केंद्र मीरपुर में महज दस किमी की गहराई में था। इसके बाद भी वहां पर इतनी ही तीव्रता का भूकंप आया था। इस भूकंप की वजह से वहां की सड़कों पर बड़ी-बड़ी दरारें पड़ गई और यहां पर बने कई बड़े पुल भी टूट गए हैं। पाकिस्‍तान सरकार की मानें तो इसकी वजह से अब तक 40 जानें जा चुकी हैं, 700 से अधिक लोग घायल हुए हैं।

इन सभी के अलावा इस पूरे इलाके में भूकंप की वजह से 600 से अधिक पशुओं की मौत हुई है तो वहीं करीब 150 स्‍कूल की इमारतें मलबे में तब्‍दील हो गई हैं। अब जबकि भूकंप की इस घटना को करीब छह दिन बीत चुके हैं, तब भी वहां पर पीडि़तों की मलबे में तलाश की जा रही है। स्‍थानीय प्रशासन के मुताबिक यहां पर हुए जानमाल के नुकसान का सही आंकड़ा सामने आने में अभी एक सप्‍ताह का समय और लगेगा।

मीरपुर की पहचान थे आलीशान मकान 

इस भूकंप से मांदा और अफजलपुर, मांग्‍ला, भीमबेर और जाटला में जबरदस्‍त तबाही देखने को मिली है। मीरपुर आलीशान हवेलियों के लिए पहचाना जाता है। अक्‍टूबर 2005 में भी गुलाम कश्‍मीर में जबरदस्‍त भूकंप आया था जिसमें करीब 73 हजार लोगों की मौत हो गई थी। उस वक्‍त आए भूकंप की तीव्रता 7.6 थी।   

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