New Delhi: महाभारत में एक योद्धा ऐसे थे जिन्होंने कौरवों की तरफ से युद्ध किया था लेकिन फिर भी उन्हें भीष्म पितामहा के नाम से जाना जाता है। भीष्म को धर्म का ज्ञान था लेकिन फिर भी अपने कर्तव्य का निर्वाह करने के लिए भीष्म को पांडवों के विरुद्ध युद्ध करना पड़ा।अभी-अभी: PM मोदी के लापता होने के लगे पोस्टर, पुरे देश में मचा हाहाकार
लेकिन सभी बातों को परे छोड़ दें तो द्रौपदी चीरहरण के प्रसंग से जुड़ा एक सवाल मन में उठता है कि भीष्म ने द्रौपदी का अपमान होते देख उसका विरोध क्यों नहीं किया। आखिर क्यों वो अन्य महापुरुषों और योद्धाओं की तरह मौन रहे।
महाभारत में एक कहानी है जब भीष्म पितामहा बाण शैय्या पर अपनी मृत्यु के क्षण गिन रहे थे तो पांडव गहन शोक में डूबे हुए थे। तभी भीष्म ने अपने आखिरी समय में सभी उपस्थित लोगों से अपनी ज्ञिज्ञासाओं को मिटाने के लिए कहा। सभी लोगों के प्रश्न पूछ लेने के बाद द्रौपदी ने भीष्म से बड़ा ही मार्मिक प्रश्न पूछा द्रौपदी ने कहा ‘भरी सभा में मेरे चीरहरण का आपने विरोध क्यों नहीं किया जबकि आप सबसे बड़े और सबसे सशक्त थे।
तब भीष्म पितामह ने कहा ‘मनुष्य जैसा अन्न खाता है वैसा ही उसका मन हो जाता है। उस समय कौरवों का अधर्मी अन्न खा रहा था इसलिए मेरा दिमाग भी वैसा ही हो गया और तब मुझे उस कृत्य में केवल खेल के नियम ही दिख रहे थे, नैतिकता, स्त्री सम्मान, लाज-लज्जा आदि शब्द मेरे दिमाग में नहीं थे।
इसके अलावा मेरे ऊपर उनका अन्न खाने का ऋण था इसलिए मैं विरोध नहीं कर सका।’ भीष्म की बात सुनकर द्रौपदी ने एक व्यंग्यभरी मुस्कान बिखेरते हुए कहा ‘अधर्म के विरूद्ध बोलना सबसे बड़ा धर्म और कर्तव्य है, इससे बड़ा कोई तप नहीं’।