रिपोर्ट में कहा गया कि भारत के पश्चिमी तट पर पिछले सप्ताह मौसम की स्थिति और बाढ़ जैसी घटनाओं को रोकने के लिए शहरी नियोजन और बुनियादी ढांचे के दोबारा मूल्यांकन की जरूरत है।
गुजरात में हाल ही में आई बाढ़ के लिए मौसम के साथ-साथ तेजी से बढ़ते शहरीकरण और जल निकासी सिस्टम में की गई लापरवाही जिम्मेदार है। यह बात भारतीय प्रौद्यागिकी संस्थान (आईआईटी) गांधीनगर की रिपोर्ट में सामने आई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि गुजरात के 33 में से 15 जिलों में तीन दिनों में रिकॉर्ड की गई बारिश पिछले 10 साल में सबसे ज्यादा है। इसके अलावा जामनगर, मोरबी, देवभूमि, द्वारका और राजकोट में ऐसी घटनाओं के बीच औसत समयांतराल पिछले 50 वर्षों में घटा है।
रिपोर्ट में कहा गया कि भारत के पश्चिमी तट पर पिछले सप्ताह मौसम की स्थिति और बाढ़ जैसी घटनाओं को रोकने के लिए शहरी नियोजन और बुनियादी ढांचे के दोबारा मूल्यांकन की जरूरत है। आईआईटी गांधीनगर की मशीन इंटेलीजेंस एंड रेजिलिएंस लेबोरेटरी (एमआईआर लैब) के शोधकर्ताओं ने कहा कि ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए मजूबत आपातकालीन प्रतिक्रिया रणनीति बनाने की आवश्यकता है। शोध कर्ताओं ने कहा कि तेजी से बढ़ते शहरीकरएा से जल निकासी प्रणालियों पर दबाव बढ़ रहा है। इसलिए जल निकासी प्रणाली पर अधिक काम किया जाए।
शोध में कहा गया कि वड़ोदरा में ज्यादा बारिश नहीं हुई, लेकिन फिर भी यहां बाढ़ के हालात बने। ऐसा व्यापक शहरी विकास, तेजी से बढ़ते शहरीकरण, जल निकासी प्रणालियों के बंद होने और जल निकासी सिस्टम की गई लापरवाही के कारण हुआ। अध्ययन में कहा गया कि ऐसी स्थिति उन क्षेत्रों के लिए सटीक उदाहरण है जहां कई बार एक साथ गंभीर मौसम की आशंका होती है। इस स्थिति में आपातकालीन प्रतिक्रिया और राहत प्रयास जटिल हो जाते हैं। इसलिए मजबूत आपातकालीन प्रतिक्रिया रणनीति बनाने की जरूरत है।
आईआईटी गांधीनगर में सहायक प्रोफेसर उदित भाटिया ने कहा कि मौजूद डाटा से शहरी बाढ़ की बारीकियों को पूरी तरह से पकड़ा नहीं जा सकता। क्योंकि अक्सर छोटी अवधि, उच्च तीव्रता वाली बारिश भी जल निकासी को प्रभावित करती है। उन्होंने कहा कि जब बारिश लंबे समय तक जारी रहती है, तो शुरुआती दौर में मिट्टी संतृप्त हो जाती है। बाद की वर्षा के सीधे सतही अपवाह में योगदान करने की अधिक संभावना होती है। इससे बाढ़ की संभावना बढ़ती है। यह तब भी होता है जब जल निकासी प्रणाली अक्षम होती है।