सनातन धर्म के चार प्रमुख त्योहारी उत्सवों में होली का सर्व प्रमुख स्थान रखने वाला त्योहार माना जाता है। इसके विधान तो रंगभरी एकादशी से शुरू हो जाते हैैं लेकिन आठ दिन पहले होलाष्टक लग जाता है। इस बार होलाष्टक दो मार्च से लग रहा है जो दस मार्च को होली पर समाप्त होगा। इस अवधि में विवाहादि संबंधित कार्य पूरी तरह से वर्जित होंगे।

वहीं रंगभरी एकादशी पांच मार्च को मनाई जाएगी। ख्यात ज्योतिषाचार्य पं. ऋषि द्विवेदी के अनुसार फागुन शुक्ल एकादशी तिथि पांच मार्च को सुबह 7.52 बजे लग रही है जो छह मार्च को सुबह 6.51 बजे तक रहेगी।
काशी में रंगों की शुरूआत रंगभरी एकादशी से हो जाती है। मान्यता है कि इसी दिन भगवान शिव गौरा पार्वती का गौना करा कर अपनी नगरी काशी ले आए थे।
इससे पहले वसंत पंचमी पर तिलक व महाशिवरात्रि पर विवाह की रस्में निभाई गई थीं। काशी में इस दिन श्रीकाशी विश्वनाथ विश्वेश्वर का अबीर-गुलाल से विधिवत पूजन-अभिषेक किया जाता है। सायंकाल शिवालयों में माता पार्वती संग भगवान शिव की गुलाल-पुष्प से होली होती है और होलिकोत्सव आरंभ हो जाता है।
रंगभरी एकादशी को ही प्राय: आमलकी एकादशी भी मनाई जाती है। शास्त्रों के अनुसार आमलकी एकादशी महापापों का नाश करने वाली है। यह मोक्ष व सहस्त्र गोदान का पुण्य फल देने वाली है।
इस दिन आंवले के समीप बैठ कर भगवान का विधिवत पंचोपचार या षोडशोपचार पूजन कर पुरोहितों को दान दक्षिणा देना चाहिए। कथा श्रवण और रात्रि जागरण कर दूसरे दिन व्रत का पारन करना चाहिए।
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