पाकिस्तान में हाल में हुए आम चुनाव से पहले इस तरह के आरोप लगे थे कि पीटीआई नेता इमरान खान को वहां की सेना और खुफिया एजेंसी आईएसआई का सहयोग मिल रहा है. अब यह पता चला है कि पाकिस्तान के जन अधिकार संगठनों और राजनीतिक दलों को कुछ संस्थाओं ने अपने खुफिया मिशन के लिए निशाना बनाया था.
ये वही संस्थाएं हैं जिन्होंने साल 2016 में कुछ भारतीय सैन्य अधिकारियों और राजनयिकों की निगरानी की थी. इस बात की जानकारी रखने वाली भारतीय खुफिया एजेंसियां इसे लेकर सचेत हो गई हैं कि अगर आईएसआई 2019 में होने वाले भारत के आम चुनावों में भी दखल देने कोशिश करती है तो उससे कैसे निपटना है.
पाकिस्तान में जब आम चुनाव की तैयारी हो रही थी और वहां कार्यवाहक सरकार काम कर रही थी, तो आईएसआई ने अपने हितों को आगे बढ़ाने के लिए हर तरह के उपाय किए. एमनेस्टी इंटरनेशनल और अमेरिका की एक मोबाइल सिक्योरिटी फर्म लुकआउट ने इस बात को उजागर किया है कि पाकिस्तान के नागरिक और राजनीतिक संगठनों को प्रभावित करने के लिए खुफिया बुनियादी ढांचे का इस्तेमाल किया गया है.
भारत की खुफिया एजेंसियां इस बारे में और जानकारी तथा साक्ष्य जुटाने की कोशिश कर रही हैं कि यह कैसे हुआ, क्योंकि ये संस्थाएं भारत के चुनाव को भी प्रभावित कर सकती हैं. सूत्रों के अनुसार, इस प्रक्रिया में लिप्त रहे आईएसआई के कम से कम दो हाई वैल्यू एक्टिव एसेट की पहचान की गई है और उनकी निगरानी भी सफलतापूर्वक कर ली गई है.
मार्च, 2016 में जापान की साइबर सिक्योरिटी और डिफेंस कंपनी ट्रेंड माइक्रो ने एक रिपोर्ट ‘ओपी सी मेजर’ प्रकाशित कर बताया था कि पाकिस्तान की एक संस्था एंड्रॉयड और विंडो आधारित मैलवेयर का इस्तेमाल कर भारत के कुछ सैन्य और राजनयिक अधिकारियों से जुड़ी जानकारियां हासिल करने की कोशिश कर रही थी. उसी समय अमेरिका की एक साइबर सिक्योरिटी फर्म प्रूफ पॉइंट ने भी ऐसी ही कुछ रिपोर्ट दी थी. लुकआउट की टीम ने यह भी दावा किया है कि ये संस्थाएं या लोग पाकिस्तानी सेना से जुड़े हैं और इस बात के पर्याप्त संकेत हैं कि ओपी सी मेजर से जुड़े हैं.
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