भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO – Indian Space Research Organisation) इस समय एक साथ कई बड़े प्रोजेक्ट्स पर काम कर रहा है। एक तरफ जहां वैज्ञानिकों ने अब तक चंद्रयान-2 के विक्रम लैंडर से संपर्क की कोशिश में हार नहीं मानी है। दूसरी ओर भारत के पहले मानव मिशन गगनयान की भी तैयारी जारी है।
इस बीच अब इसरो प्रमुख के. सिवन (ISRO Chief K Sivan) ने एक और बड़े प्रोजेक्ट के बारे में जानकारी दी है। यह ऐसा है जो इसरो ने पहले कभी नहीं किया।
कैसा होगा ये प्रयोग
स्पेस स्टेशन के लिए क्यों जरूरी है ये प्रयोग
इस प्रयोग की सफलता से ही पता चलेगा कि हम स्पेस स्टेशन में जरूरी वस्तुओं और अंतरिक्ष यात्रियों को सुरक्षित तरीके से पहुंचा सकेंगे या नहीं। बता दें कि पहले 2025 तक ये रॉकेट छोड़ने की योजना थी।
ISS बनाने में कितना समय लगा था
इस वक्त इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS) कार्य कर रहा है जिसे पांच देशों की अंतरिक्ष एजेंसियों ने मिलकर बनाया है – अमेरिका (NASA), रूस (ROSCOSMOS), जापान (JAXA), यूरोप (ESA) और कनाडा (CSA)। इन सभी को मिलकर आईएसएस बनाने में करीब 13 साल लगे थे। इसके लिए भी डॉकिंग तकनीक का इस्तेमाल किया गया था। ISS के लिए कुल 40 बार डॉकिंग की गई थी।
इस प्रयोग की सबसे जटिल प्रक्रिया होगी अंतरिक्ष में दो सैटेलाइट्स की गति कम कर उन्हें एक-दूसरे से जोड़ना। क्योंकि अगर गति कम नहीं हुई, तो वे आपस में टकरा जाएंगे। इस प्रयोग के लिए इसरो को सरकार ने फिलहाल 10 करोड़ रुपये दिए हैं।