भारत और चीन की सीमा पर तनाव एक बार फिर चरम पर पहुंच गया है. चीन ने कहा है कि सोमवार की रात को एलएसी पर फायरिंग हुई. 15 जून को गलवान घाटी में हुए हिंसक संघर्ष के बाद से दोनों देशों के बीच हालात सामान्य करने के लिए वार्ता हो रही हैं लेकिन अभी तक कोई नतीजा नहीं निकल पाया है.

इन घटनाक्रमों के बीच विदेश मंत्री एस. जयशंकर रूस का दौरा करने वाले हैं जहां सीमा विवाद को लेकर वह चीन के विदेश मंत्री वांग यी से भी मुलाकात कर सकते हैं. विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने सोमवार को कहा है कि एलएसी पर स्थिति बेहद नाजुक है.
विदेश मंत्री जयशंकर ने माना कि एलएसी पर मौजूदा हालात बेहद गंभीर हैं और दोनों देशों के बीच राजनीतिक स्तर पर बेहद गंभीर और गहरी बातचीत की जरूरत है जयशंकर ने कहा, द्विपक्षीय वार्ता में सरहद के हालात से अलग हटकर दोनों देशों के बीच रिश्तों को नहीं देखा जा सकता है.
जयशंकर शंघाई सहयोग संगठन की विदेश मंत्रियों की स्तर की बैठक में शामिल होने के लिए रूस के दौरे पर जा रहे हैं. यह दौरा 9 सितंबर से 11 सितंबर के बीच होगा. मई महीने में लद्दाख में हुए संघर्ष के बाद से रूस में चीनी विदेश मंत्री वांग यी से जयशंकर की ये पहली मुलाकात हो सकती है.
जयशंकर ने कहा कि अगर सरहद पर शांति और स्थिरता नहीं है तो रिश्ते के बाकी पहलू भी सामान्य नहीं हो सकते हैं. उन्होंने कहा, “अगर आप पिछले 30 सालों को देखेंगे तो सीमा पर शांति और स्थिरता थी…समस्याएं भी थीं, मैं उन्हें खारिज नहीं कर रहा हूं लेकिन रिश्तों में प्रगति की गुंजाइश बनी हुई थी. नतीजतन, चीन भारत का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बन गया..स्पष्ट रूप से शांति और स्थिरता रिश्ते की बुनियाद है.”
जयशंकर ने कहा, साल 1993 के बाद से ही चीन के साथ सीमा प्रबंधन को लेकर कई समझौते हुए हैं जिसमें स्पष्ट रूप से कहा गया है कि दोनों देश सीमा पर न्यूनतम सेना रखेंगे. बाकी समझौतों में सेना के बर्ताव और उन्हें संयमित करने को लेकर थे. अगर इन समझौतों का पालन नहीं किया जाता है तो फिर कई बेहद अहम सवाल खड़े होते हैं. मई महीने की शुरुआत से ही हालात गंभीर बने हुए हैं. ऐसे में दोनों पक्षों के बीच राजनीतिक स्तर पर गहरी बातचीत होनी चाहिए.
जयशंकर से सवाल किया गया कि अभी कूटनीति स्तर पर बड़ी जीत क्या होगी? विदेश मंत्री ने कहा कि फिलहाल सीमा पर सैनिकों की तैनाती घटाना और तनाव कम करना ही प्राथमिकता में है.
भारत-चीन के रिश्ते के भविष्य को लेकर जयशंकर ने कहा, ये एक ऐसा क्षेत्र है जहां मेरी क्रिस्टल बॉल में थोड़े बादल छाए दिख रहे हैं. उन्होंने कहा कि दोनों देशों को पारस्परिक सहयोग बढ़ाना चाहिए क्योंकि दोनों की क्षमता ही तय करेगी कि ये एशिया की सदी है या नहीं.
अमेरिका के साथ भारत के रिश्तों को लेकर जयशंकर ने कहा कि अमेरिका को लेकर शक लुटियन दिल्ली की समस्या है और आम लोग बहुत पहले से ही अमेरिका के साथ रिश्ते की अहमियत को समझ चुके हैं.
पाकिस्तान के साथ किसी भी तरह की बातचीत ना करने या जीरो डिप्लोमैसी को टूल के रूप में इस्तेमाल करने को लेकर जयशंकर ने कहा कि ये जीरो डिप्लोमेसी का सवाल नहीं है. विदेश मंत्री ने कहा, हमारे कुछ अहम हित हैं, अगर इसे लेकर समस्या हो रही है तो मैं फिर बातचीत नहीं करूंगा.
जयशंकर ने कहा, मसला ये है कि बातचीत की शर्त कौन तय कर रहा है, शर्तें क्या हैं, किस तरह की बातचीत होगी और किन दायरों के भीतर बातचीत की जाएगी. कोई भी देश खासकर भारत इन सारे विकल्पों को नहीं छोड़ सकता है..मुझे नहीं लगता है कि हमारी विदेश नीति ऐसी होनी चाहिए.
पाकिस्तान के बारे में बातचीत करते हुए जयशंकर ने कहा कि भारत पाकिस्तान के साथ संवाद इसलिए नहीं कर सकता है क्योंकि पिछले कई सालों से उनका नाता सीमा पार आतंकवाद से रहा है और इसे सामान्य नहीं कहा जा सकता है और उनकी बातचीत की शर्तों को स्वीकार नहीं किया जा सकता है.
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