तीन दिन के भारतीय दौरे पर पहुंचे अमेरिकी रक्षा मंत्री लॉयड जेम्स ऑस्टिन ने पहले ही दिन शुक्रवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलकर उन्हें अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन का संदेश दिया। ऑस्टिन ने पीएम मोदी से कहा कि उनकी सरकार दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय रक्षा सहयोग को पहले की तरह की मजबूती से बरकरार रखेगी।
अमेरिकी रक्षा मंत्री का पालम हवाई अड्डे पर उतरने के बाद जोरदार स्वागत किया गया। प्रधानमंत्री कार्यालय के मुताबिक, ऑस्टिन से मुलाकात में प्रधानमंत्री मोदी ने उन्हें दोनों देशों के बीच रणनीतिक साझीदारी को लेकर अपना दृष्टिकोण बताया और भारत-अमेरिकी संबंधों में द्विपक्षीय रक्षा सहयोग की अहम भूमिका पर जोर दिया। प्रधानमंत्री ने दोनों देशों के बीच करीबी संबंधों का स्वागत किया, जो लोकतांत्र, बहुलवाद और कानून आधारित शासन के लिए प्रतिबद्धता के साझा मूल्यों पर आधारित हैं।
ऑस्टिन ने कहा कि उनकी सरकार हिंद-प्रशांत व उससे भी आगे के क्षेत्र में शांति, स्थिरता और समृद्धि के लिए भारत के साथ सामरिक साझीदारी को आगे बढ़ाने के लिए बेहद उत्सुक है। उन्होंने बाइडन की तरफ से पीएम मोदी को शुभकामनाएं भी दीं। पीएम मोदी ने बैठक के बाद ट्वीट में लिखा, भारत और अमेरिका द्विपक्षीय सामरिक साझीदारी के लिए प्रतिबद्ध हैं, जो वैश्विक भलाई के लिए ताकत का काम करेगी। ऑस्टिन ने भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजीत डोभाल से भी मुलाकात की।
इससे पहले अमेरिका के रक्षा सचिव लॉयड जे ऑस्टिन शुक्रवार को अपनी तीन दिवसीय यात्रा के लिए नई दिल्ली पहुंच गए। उनके आने का उद्देश्य हिंद-प्रशांत सहित क्षेत्र में चीन की बढ़ती आक्रमकता के मद्देनजर द्विपक्षीय रक्षा एवं सुरक्षा संबंधों को और मजबूत करना है। वह अपनी यात्रा के दौरान भारतीय विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर से मुलाकात करेंगे।
ऑस्टिन की प्रथम विदेश यात्रा के दौरान तीन देशों के दौरे में भारत तीसरा पड़ाव स्थल है। उनकी इस यात्रा को (अमेरिकी राष्ट्रपति) जो बाइडन प्रशासन के अपने करीबी सहयोगियों और क्षेत्र में साझेदारों के साथ मजबूत प्रतिबद्धता के तौर पर देखा जा रहा है।
उनकी यात्रा की तैयारियों और एजेंडा की जानकारी रखने वाले लोगों ने बताया कि दोनों पक्षों के बीच बातचीत में भारत-अमेरिका संबंध को और प्रगाढ़ करने के तरीकों, हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने, पूर्वी लद्दाख में चीन के आक्रामक व्यवहार, आतंकवाद से पैदा हुई चुनौतियां और अफगान शांति वार्ता पर जोर रहने की उम्मीद है।