सत्ता के बनते-बिगड़ते समीकरणों के बीच कांग्रेस और आप के रिश्तों में एक बार फिर दरार आने की खबर है। आप ने आगामी लोकसभा चुनाव के लिए अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है और एक सीट को छोड़कर अभी भी कांग्रेस से गठबंधन की राह को खुला छोड़ा है। वहीं कांग्रेस का इस मामले में कहना है कि केजरीवाल भरोसे के लायक नहीं है।
आप और कांग्रेस के बीच जोर शोर से चल रही चुनावी गठबंधन की कवायद ने प्रदेश कांग्रेस को एकदम ठहराव की स्थिति में ला दिया है। पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के प्रदेश की कमान संभालने के बाद जिस तरह दिल्ली में पार्टी फिर अपने पैरों पर खड़ी होनी शुरू हुई थी, वह भी दोबारा लड़खड़ाने लगी है। हालांकि कुछ नेताओं को गठबंधन नहीं होने की आस भी है कि पूरा प्रदेश इसके विरोध में खड़ा हुआ है।
प्रदेश के नेता यह भी कहते हैं कि पार्टी हाईकमान का आदेश मानने को वे विवश हो भी जाएं कार्यकर्ताओं को कैसे साधा जाएगा। उनके लिए भी यह स्थिति उलझन भरी होगी। इससे बेहतर तो घर बैठना ही सही रहेगा।
बहाना भले बीमारी का रहा हो, लेकिन पूर्व एआईसीसी के कुछ बड़े नेता आप और कांग्रेस के बीच गठबंधन कराने पर आमादा थे। जब उन्हें लगा कि इन स्वार्थी नेताओं को समझाना मुश्किल है तो उन्होंने इस्तीफा देना ही बेहतर समझा।
प्रदेश के नेता गठबंधन की संभावना से झल्लाए और गुस्साए प्रदेश के नेता एआईसीसी से जुड़े उन करीब आधा दर्जन नेताओं के नाम दिल्ली की जनता के बीच भी उजागर करना चाह रहे हैं कि जो अपने निजी फायदे के लिए पार्टी की प्रदेश इकाई को गठबंधन की आग में झोंक रहे हैं। इन नेताओं के नाम सार्वजनिक करने के साथ- साथ प्रदेश के नेता चुनाव में बगावती तेवर अपनाने के भी संकेत दे रहे हैं।
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