भगत सिंह ने ऐसे किया था  लाला लाजपत रायकी मौत के बदले का प्रण पूरा

लाला लाजपत राय के हत्यारे अंग्रेजी हुकूमत में पंजाब पुलिस के डिप्टी एसपी सांडर्स को आज ही के दिन शहीद-ए-आजम सरदार भगत सिंह ने गोली से उड़ाकर लाला जी की शहीदी का बदला ले लिया था।

इतिहासकार बताते हैं कि भले ही शहीद-ए-आजम भगत सिंह के लाला लाजपत राय जी के साथ कुछ मुद्दों पर मतभेद थे, लेकिन 30 अक्टूबर 1928 को साइमन कमीशन का विरोध करते हुए जिस प्रकार से तत्कालीन पंजाब पुलिस के डीएसपी सांडर्स ने साइमन कमीशन के विरोध का नेतृत्व कर रहे लाला लाजपत राय पर लाठियां बरसाईं थीं, उसी पल सरदार भगत सिंह ने प्रण ले लिया था कि अब सांडर्स को वे नहीं छोड़ेंगे। आज ही के दिन में उन्होंने अपना बदला पूरा कर दिखाया था।

लाला लाजपत राय को जन्म देने वाली मोगा जिले के गांव डुढीके की धरती पर बनी लाजपय राय मेमोरियल की लाइब्रेरी में भगत सिंह गुट की ओर से सांडर्स की हत्या से पहले और हत्या के बाद जारी किए गए वे दो पत्र भी संभालकर रखे हैं, जिनमें सांडर्स की हत्या की तैयारी और हत्या के बाद देश की जनता को अंग्रेजी पुलिस के सामने किस प्रकार से खुद प्रस्तुत करना है, इसके प्रति आगाह किया गया था।

इतिहासकार व एसडी कॉलेज की पूर्व प्रिंसिपल डॉ. नीना गर्ग बताती हैं कि भगत सिंह ने बचपन में ही जलियांवाला बाग का नरसंहार अपनी आंखों से देखा था। उन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य को उखाड़ फेंकने की तभी कसम खा ली थी। भगत सिंह जब लाहौर के डीएवी कालेज में पढ़ाई कर रहे थे तभी महात्मा गांधी ने पूरे देश में असहयोग आंदोलन का बिगुल फूंक दिया था।

चौरी-चौरा कांड के कारण गांधी ने असहयोग आंदोलन वापस ले लिया तब देश के स्वतंत्रता सेेनानियों में मतभेद सामने आए थे। कुछ गर्म खून वाले युवाओं ने अंग्रेजों को देश से भगाने के लिए हथियार हाथ में लेने का फैसला कर लिया था। उसी दौरान भगत सिंह ने अपने साथियों जैसे सुखदेव, राजगुरु, चंद्रशेखर, यतीन्द्रनाथ व बटुकेश्वर आदि के साथ मिलकर हिंदुस्तान प्रजातंत्र संघ की स्थापना कर ली थी जो हिंदुस्तान समाजवादी प्रजातांत्रिक सेना के रूप में बदल गई।

ये वो समय था जब अंग्रेजों ने देश के स्वतंत्रता संग्राम सेेनानियों के इरादे भांपते हुए साइमन कमीशन का एक दल भारत भेजा था। इस दल में किसी भी भारतीय को शामिल नहीं किया गया था। 30 अक्टूबर 1928 को लाहौर में साइमन कमीशन में निकाले गए जुलूस के विरोध का नेतृत्व लाला लाजपत राय कर रहे थे। इस दौरान अंग्रेजों ने जुलूस पर लाठियां बरसानी शुरू कर दी, जिसमें लाजपत राय गंभीर रूप से घायल हो गए। उसके 18 दिन बाद इलाज के दौरान 17 नवंबर 1928 को उनका निधन हो गया। पंजाब पुलिस के उपअधीक्षक सांंडर्स को क्रांतिकारियों ने लाला लाजपत राय की मौत का जिम्मेदार ठहराया था।

इतिहासकारों की माने तो क्रांतिकारियों के नेताओं व लाजपत राय के बीच आपसी मतभेद भी थे, लेकिन लालाजी की मौत का बदला लेने के लिए भगत सिंह के साथ चंद्रशेखर, सुखदेव एवं राजगुरु ने सांंडर्स की हत्या करने की कसम खाई थी। उसको मारने की योजना भी तैयार कर ली थी।

17 दिसंबर 1928 को सांडर्स की मौत का दिन क्रांतिकारियों ने तय किया था। उस दिन 4 बजकर 3 मिनट का समय हुआ था कि सांंडर्स अपनी मोटरसाइकिल पर बैठकर बाहर निकला। वो कुछ ही दूर गया होगा कि भगत सिंह व राजगुरु ने सांंडर्स को अपनी गोलियों का शिकार बना लिया। इस योजना का संचालन व उनको पीछे से बैकअप देने का काम चंद्रशेखर के कंधों पर था।

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