उत्तर प्रदेश संगठित अपराध नियंत्रण विधेयक 2017 (यूपीकोका) के विधानसभा में दोबारा पारित होने के साथ ही अब यह उम्मीद बन गई है कि यह कानून बन जाएगा। राज्यपाल की अधिसूचना जारी होने और केंद्र की अनुमति के बाद इसे वैधानिक मान्यता मिल जाएगी। चूंकि केंद्र में भी भाजपा की ही सरकार है, इसलिए अब इसके लागू होने में कोई गुंजायश नहीं है।
वर्ष 2007 में मायावती सरकार ने इस कानून को लागू करने की पहल की थी लेकिन, यूपीए सरकार रोड़ा बन गई थी। बाद में बसपा सरकार ने खुद ही इस विधेयक को वापस ले लिया था। उस समय भाजपा के नेता भी इसका विरोध कर रहे थे लेकिन, अब भाजपा सरकार इसे लागू करने के लिए प्रतिबद्ध है। विधानसभा में दोबारा इसके पारित होने से प्राथमिक प्रक्रिया पूरी हो गई है। अब योगी सरकार उत्तर प्रदेश से संगठित अपराध समाप्त करने को इसे हथियार बनाने जा रही है। इस कानून का सबसे अहम पक्ष यह है कि यदि आरोपी पहले आजीवन कारावास से दंडित किया गया है तो यूपीकोका में दूसरे अपराध के लिए उसे मृत्युदंड (फांसी) या आजीवन कारावास और न्यूनतम 25 लाख रुपये की सजा होगी।
पेशेवर अपराधियों पर अंकुश लगाने के लिए इस कानून में काफी सख्त कदम उठाया गया है। मसलन पहले से दोष सिद्ध अपराधियों के अपराधों के लिए दंड के कड़े प्रावधान हैं। यदि पहले पांच वर्ष या उससे अधिक अवधि के लिए किंतु दस वर्ष से कम के कारावास के लिए दंडित किया गया है तो आजीवन कारावास और न्यूनतम 25 लाख रुपये का अर्थदंड लगेगा। यदि पहले पांच वर्ष से कम अवधि के लिए दंडित किया गया है तो दोबारा आरोप तय होने पर पांच वर्ष से लेकर दस वर्ष तक का दंड और न्यूनतम 15 लाख रुपये का अर्थदंड लगेगा।
एक लाख अर्थदंड के बदले एक माह का कारावास
यूपीकोका में यह प्रावधान किया गया है कि अगर कोई व्यक्ति अर्थदंड देने में विफल है तो उसे एक लाख रुपये के अर्थदंड पर एक माह के साधारण कारावास से दंडित किया जाएगा। यह कारावास अधिकतम दो वर्ष तक हो सकता है। परंतु अर्थदंड की राशि एक लाख रुपये से कम होने पर कारावास की अवधि अर्थदंड के समानुपातिक होगी।
आतंक फैलाने से लेकर ठेके तक होगा दायरा
यूपीकोका में अपराध का दायरा तय कर दिया गया है। आतंक फैलाने या बल पूर्वक या हिंसा द्वारा सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए विस्फोटकों या अग्नि या आग्नेयास्त्र या अन्य हिंसात्मक साधनों का प्रयोग करके जीवन या संपत्ति को नष्ट करना या राष्ट्र विरोधी या विध्वंसात्मक गतिविधियों में लिप्त होना या सरकार या लोक प्राधिकारी को मृत्यु या बर्बादी की धमकी देकर फिरौती के लिए बाध्य करने वाले को इस दायरे में रखा जाएगा।
इसके अलावा फिरौती के लिए अपहरण, दबाव या शक्ति प्रदर्शन से ठेका हासिल करना, धन लेकर किसी की हत्या करना या करवाना, सरकारी या निजी भूमि पर जाली दस्तावेजों द्वारा कब्जा करना, भवन या भूमि के किसी भाग को अध्यासियों से अवैध रूप से हटाने के लिए जाली दस्तावेज बनाना, बाजार, फुटपाथ विक्रेता, मंडी, ठेकेदार और व्यवसाय करने वालों से अवैध रूप से सुरक्षा धन का संग्रह करना, अवैध खनन, मनी लांड्रिंग, मानव तस्करी, जाली दवा, अवैध शराब, वन्य जीव तस्करी आदि अपराधों में लिप्त होने वालों के खिलाफ यूपीकोका कानून लागू होगा।
अपराधियों की जब्त होगी संपत्ति
इस अधिनियम के लागू होने पर राज्य सरकार संगठित अपराधों से अर्जित की गई संपत्ति को विवेचना के दौरान ही संबंधित न्यायालय की अनुमति लेकर जब्त कर लेगी। इसका मकसद यह है कि अपराधी गैर कानूनी ढंग से हासिल की गई संपत्ति का दुरुपयोग अपने बचाव में न कर सकें। अभियोग में दंडित होने के बाद संगठित अपराधियों द्वारा अर्जित संपत्ति राज्य के पक्ष में जब्त कर लिया जाएगा।
कमिश्नर और डीआइजी की संस्तुति के बाद ही दर्ज होगा मुकदमा
यूपीकोका का दुरुपयोग न हो, इसके लिए भी व्यवस्था की गई है। मंडल के कमिश्नर और परिक्षेत्र के डीआइजी की द्विसदस्यीय समिति के अनुमोदन के बाद ही यूपीकोका के तहत मुकदमा दर्ज हो सकेगा। इस अधिनियम के अन्तर्गत पंजीकृत होने वाले मुकदमों की विवेचना के बाद आरोप पत्र दाखिल करने से पहले जोनल पुलिस महानिरीक्षक की अनुमति लेना अनिवार्य होगा।
गठित होगा संगठित अपराध नियंत्रण प्राधिकरण
प्रदेश में संगठित अपराध करने वाले गिरोहों पर नियंत्रण एवं उनकी गतिविधियों पर निगरानी के लिए प्रमुख सचिव गृह की अध्यक्षता में ‘राज्य संगठित अपराध नियंत्रण प्राधिकरण की स्थापना का प्रावधान किया गया है। इसमें एडीजी क्राइम और एडीजी कानून-व्यवस्था के साथ ही सरकार द्वारा तय किये गए न्याय विभाग के विशेष सचिव स्तर के अफसर सदस्य होंगे। जिला स्तर पर जिला संगठित अपराध नियंत्रण प्राधिकरण की स्थापना जिलाधिकारी की अध्यक्षता में होगी। इस प्राधिकरण में एसपी-एसएसपी द्वारा नियुक्त एएसपी या डीएसपी तथा वरिष्ठ लोक अभियोजक और कार्यपालक मजिस्टे्रट सदस्य बनाए जाएंगे।
अपीलीय प्राधिकरण भी होगा गठित
इस अधिनियम में किसी की मनमानी न चल सके, इसकी भी व्यवस्था की जा रही है। इसके लिए उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में ‘अपीलीय प्राधिकरण का भी गठन होगा। इसमें शासन से प्रमुख सचिव और डीजी स्तर के अफसर सदस्य बनाए जाएंगे। इस अधिनियम के अंतर्गत पंजीकृत सभी मामलों की सुनवाई के लिए विशेष न्यायालय का गठन होगा।
संगठित अपराधी को नहीं मिलेगी सुरक्षा,असलहों के प्रदर्शन पर रोक
इस प्रस्तावित कानून में यह व्यवस्था हो रही है कि कोई भी संगठित अपराध करने वाले अपराधी, बाहुबली, सफेदपोश सरकारी सुरक्षा नहीं पा सकेगा। बाहुबली, संगठित अपराध में लिप्त अपराधियों के खिलाफ गवाही देने वालों को सुरक्षा प्रदान करने के साथ ही बंद कमरे में गवाही का भी प्रावधान किया गया है। कोई व्यक्ति जिसे पुलिस सुरक्षा मिली है जनता के बीच भ्रमण के समय मोटर काफिले में निजी सुरक्षा गार्ड अपने साथ नहीं ले चलेगा। ऐसे व्यक्ति की सुरक्षा वापस ले ली जाएगी। शस्त्र लाइसेंस भी निरस्त हो सकता है। तीन से अधिक लोग असलहों के साथ सार्वजनिक स्थलों पर एक साथ नहीं जा सकेंगे। इसका उल्लंघन करने वालों का शस्त्र लाइसेंस निरस्त हो सकता है। पुलिस अधिकारी शस्त्रों को जब्त कर सकता है।
कभी भी ले सकते पुलिस रिमांड पर
यूपीकोका के आरोपी को पूछताछ को कभी भी पुलिस रिमांड पर लिया जा सकता है। अभियुक्त या संदिग्ध से पूछताछ उसके विधिक सलाहकार की उपस्थिति में करना पड़ेगा। 24 घंटे पहले पूछताछ की सूचना भी देनी पड़ेगी। पूछताछ की एक मूल कॉपी बनेगी जिस पर विधिक सलाहकार का भी हस्ताक्षर होगा। यदि संदिग्ध किसी तथ्य को जानबूझकर छिपाता है तो न्यायालय उसे बचाव का मौका नहीं देगा। इतना ही नहीं, यह भी इंतजाम किए जा रहे हैं कि जब भी कोई निविदा खुलेगी तो संबंधित कक्ष में किसी भी निविदादाता को अस्त्र-शस्त्र के साथ प्रवेश करने पर मनाही होगी।
डीजीपी को नियम बनाने का अधिकार
डीजीपी को इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध की रोकथाम, पता लगाने, जांच करने और समुचित अभियोजन के इरादे से राज्य सरकार के पूर्व अनुमोदन से, संगठित अपराध पर अंकुश के लिए नियम बनाने का अधिकार होगा। कोई नियम विधान मंडल के सदनों के समक्ष रखा जाएगा।
साहब, इस कानून से तो किसान भी फंस जाएगा
नेता प्रतिपक्ष राम गोविंद चौधरी का कहना है कि नकली जाली अवैध मदिरा के निर्माण में सहायता करने वालों पर भी यूपीकोका लागू करने का प्रावधान किया गया है। उन्होंने कहा कि अवैध कच्ची शराब महुआ और गुड़ से बनती है। महुआ और गुड़ का उत्पादन किसान करता है। अगर किसी अवैध शराब निर्माता ने किसान से महुआ और गुड़ खरीद लिया और पुलिस के पकड़े जाने पर किसान का नाम बता दिया तो उसकी तो शामत आ जाएगी। उन्होंने कहा कि आपातकाल में सपा, आरएसएस और विभिन्न संगठनों के लोगों पर एक ही तरह का कानून लागू किया जाता था।