भारत से चल रहे सीमा तनाव के बीच चीन के विदेश मंत्री ने तिब्बत का दौरा कर हैरान कर दिया है. चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने तिब्बत का दौरा किया जिसमें भारत से विवादित सीमाई इलाके भी शामिल हैं. कहा जा रहा है कि इस दौरे के जरिए चीन ने भारत को कड़ा संदेश देने की कोशिश की है.
चीन के विदेश मंत्रालय ने शनिवार को जो बयान जारी किया, उसमें भारत का सीधे तौर पर जिक्र नहीं किया गया. हालांकि, वांग यी के तिब्बत दौरे को आम दौरा तो बिल्कुल नहीं माना जा रहा है. पिछले कुछ सालों में चीन के किसी सीनियर अफसर ने तिब्बत का दौरा नहीं किया है.
पांच दौर की सैन्य वार्ता के बावजूद भारत और चीन के बीच सीमा विवाद सुलझा नहीं है. विवाद सुलझने के बजाय ये लड़ाई अब व्यापार, तकनीक, निवेश और रणनीति के क्षेत्र तक पहुंच गई है. चीन का ये दौरा भी उसकी भू-राजनीति का हिस्सा बताया जा रहा है.
चीन को हमेशा ये डर सताता रहता है कि कहीं भारत की मदद पाकर तिब्बत में अलगाववाद की भावनाएं मजबूत ना हो जाएं. दरअसल, लद्दाख में भारतीय-चीनी सेना के बीच हुई झड़प के बाद से ये मांग उठने लगी है कि भारत को चीन के खिलाफ तिब्बत कार्ड का इस्तेमाल करना चाहिए. भारत को तिब्बत की स्वायत्तता का समर्थन करना चाहिए जिसे चीन ने कई साल पहले बलपूर्वक छीन लिया था. हाल ही में चीनी मीडिया में भी इसे लेकर एक संपादकीय लेख छपा था जिसमें तिब्बत को आंतरिक मुद्दा बताते हुए भारत को इससे दूर रहने की सलाह दी गई थी.
ऐसे में वांग का तिब्बत का दौरा सोची-समझी रणनीति का ही हिस्सा हो सकता है. तिब्बत में मानवाधिकार उल्लंघन की आलोचना को खारिज करते हुए वांग ने राष्ट्रपति शी जिनपिंग के कार्यकाल में तिब्बत की उपलब्धियों को गिनाया. वांग ने सीमाई मूलभूत ढांचा, गरीबी हटाने समेत कई पहलों का जिक्र किया और कहा कि तिब्बत ने पड़ोसी देशों से अच्छे आर्थिक संबंधों में अहम भूमिका निभाई है. वांग ने शी जिनपिंग की विदेश नीति और महत्वाकांक्षी परियोजना बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव का भी जिक्र किया गया.
नानजियांग यूनिवर्सिटी में पॉलिटिकल साइंटिस्ट गु सू ने साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट से कहा कि चीनी विदेश मंत्री का तिब्बत दौरा काफी चौंकाने वाला है, सामान्यत: इस तरह के दौरे तभी हुए हैं जब तिब्बत को लेकर राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रमुखता मिली हो. वांग ने तिब्बत का आखिरी दौरा पांच साल पहले किया था जब शी जिनपिंग ने तिब्बत को लेकर एक बैठक की अध्यक्षता की थी. सीमाई इलाकों में दौरा करके वांग ने घरेलू और अंतरराष्ट्रीय जगत को ये संदेश दे दिया कि चीन विवादित सीमाई इलाकों में अपनी संप्रुभता को लेकर आक्रामक रहेगा.
शंघाई म्युनिसिपल सेंटर फॉर इंटरनेशनल स्टडीज में भारत से जुड़े मामलों के जानकार वांग देहुआ ने कहा कि चीन ने ये कदम इसलिए उठाया है क्योंकि वो नहीं चाहता है कि भारत के सामने कमजोर नजर आए. गलवान घाटी में हुई हिंसक झड़प के बाद से मोदी सरकार ने चीनी फर्मों को ध्यान में रखते हुए कई आर्थिक प्रतिबंध लागू किए हैं. भारत ने 59 चीनी ऐप बैन करने समेत चीनी और पड़ोसी देशों के लिए निवेश के नियमों को भी सख्त कर दिया है. इसके अलावा, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की हिंद-प्रशांत रणनीति को अपनाते हुए हथियार खरीद और सैन्य साजो-सामान भी बढ़ा रहा है.
देहुआ ने कहा, वांग का दौरा वास्तव में भारत से प्रभावी तरीके से निपटने और समर्थन जुटाने को लेकर था. चीन भले ही भारत के साथ युद्ध नहीं चाहता है लेकिन फिर भी भारत हर संभावित चुनौती से निपटने के लिए तैयार हैं, शायद चीन ने भी तिब्बत दौरा कर यही किया है. वह किसी मोर्चे पर कमजोर नहीं पड़ना चाहता है.
मई महीने में जब अमेरिकी कांग्रेस ने तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा के उत्तराधिकार में दखल को लेकर चीनी अधिकारियों पर प्रतिबंध लगाने की धमकी दी थी तो चीन कम्युनिस्ट पार्टी के सचिव की यू ने अमेरिका को चिढ़ाने के लिए तिब्बत का दौरा किया था.
सिचुआन यूनिवर्सिटी में भारत से जुड़े मामलों के जानकार सन शिहाई ने कहा, सीमा विवाद के बीच वांग का दौरा ये दिखाने के लिए काफी है कि चीन की विदेश नीति में तिब्बत की कितनी अहमियत है. तिब्बत लंबे समय से बीजिंग के लिए एक संवेदनशील मुद्दा रहा है और हम भारत या दूसरी विदेश सरकारों के तिब्बत कार्ड के इस्तेमाल को लेकर बेहद सतर्क हैं. हालांकि, भारत के साथ किसी भी तरह का संघर्ष चीन के हित में नहीं है इसलिए वह भारत को लेकर अपनी मौजूदा नीति को शायद ही बदले.