गुजारिश – ऋतिक रोशन का अब तक का सबसे चैलेंजिग किरदार. इस फिल्म में ऋतिक (एंथेन) एक जादूगर की भूमिका में हैं जो एक दुर्घटना के बाद धड़ से निचले हिस्से में लकवे का शिकार हो जाता है. एंथेन का ख्याल एक नर्स रखती है जो मन ही मन उसे चाहती भी हैं. दोनों के बीच खामोशी के सहारे ये रिश्ता पनपता है. एंथेन अपने पैरों पर खड़ा नहीं हो सकता मगर एक रेडियो शो के सहारे वो लोगों में आशा और उम्मीदें जगाने की कोशिश करता है लेकिन वो खुद इच्छा मृत्यु के सहारे अपनी तमाम परेशानियों से छुटकारा चाहता है. संजय लीला भंसाली की ये अब तक की सबसे डार्क-ट्रैजिक-ऑफ बीट फिल्मों में शुमार है. इसे हॉलीवुड फिल्म हूज़ लाइफ इज इट एनेवी से प्रेरित बताया जाता है.
हाइवे – दिल्ली शहर की इस अरबपति फैमिली की बेटी वीरा(आलिया भट्ट) अपने घर में खुद को पिंजरे में कैद पंछी की तरह मानती है. बिंदास स्वभाव की वीरा का अपहरण एक गैंग कर लेता है हालांकि लड़की की हैसियत पता लगने के बाद ये गैंग परेशान हो उठता है और लड़की को वापस भेजना चाहता है. पर गैंग का लीडर महाबीर (रणदीप हुड्डा) वीरा को वापस नहीं ले जाता और पुलिस से बचते-बचाते महाबीर अपने साथ वीरा को लेकर अनजान सफर पर निकल पड़ता है. एक अपहरणकर्ता के साथ कुछ वक्त रहने के बाद वीरा को लगता है कि खुली हवाओं के बीच वो काफी बदल रही है और दोनों के बीच एक अजीब सा बंधन विकसित होने लगता है. इम्तियाज अली ने इस प्रोजेक्ट को अपने दिल के बेहद करीब बताया था और इस फिल्म की शूटिंग देश के कई हिस्सों में हुई थी. इस फिल्म को आज भी आलिया और इम्तियाज की बेहतरीन फिल्मों में शुमार किया जाता है.
देव डी – इस फिल्म के साथ ही अनुराग कश्यप का बॉलीवुड में डंका बजना शुरु हो गया था. शरत चंद्र चटोपाध्याय के उपन्यास देवदास का मॉर्डन संस्करण देव बेहिसाब नशे में डूबा रहता है और उसे अपने अलावा किसी की परवाह नहीं होती है. देव के इगो की वजह से पारो उससे मुंह मोड़ लेती है और फिर देव की मुलाकात जेनी से होती है जो दिन में कॉलेज जाती है और रात में आमदनी के लिए देह व्यापार के बिजनेस में है. इस फिल्म का आइडिया अभय देओल का था. उन्होंने देव डी के दस साल पूरे होने पर लिखा था कि वे इस फिल्म के सहारे देव के किरदार में छिपी खोखली पुरुष प्रधानता को सामने लाना चाहते थे. इसके अलावा फिल्म में पारो और चंद्रमुखी के स्ट्रॉन्ग और व्यहावारिक किरदारों ने भी काफी चर्चा बटोरी थी.
मसान – देवी पाठक, दीपक चौधरी और शालू गुप्ता के किरदारों में रिचा चड्ढा, विक्की कौशल और श्वेता त्रिपाठी फिल्म की यूएसपी हैं. छोटे शहरों में कास्ट, करप्शन और पुरुष प्रधान सोच कितनी हावी है, ये इस फिल्म में देखने को मिलता है. फिल्म छोटे शहरों की रुढ़िवादी सोच पर प्रहार करती है. इस फिल्म में कालीन भैया उर्फ पंकज त्रिपाठी का कैमियो जान फूंक देता है. ये नीरज घेवान की पहली फिल्म थी और अब वो सेक्रेड गेम्स का दूसरा सीज़न डायरेक्ट कर रहे हैं.
लंचबॉक्स – वैसे मुम्बई में डिब्बेवालों से गलती होने की संभावना नहीं होती है लेकिन फिल्म में एक दिन डिब्बेवाली की गलती से, मिसेज इला (निमरत कौर) के पति का डिब्बा जो कि इला ने खुद बनाया था, अधेड़ उम्र के इरफान खान के पास पहुँच जाता है और उनका डिब्बा इला के पति को. इस तरह एक युवा महिला और रिटायर होने की दहलीज पर खड़ा एक व्यक्ति ‘लंच बॉक्स’ के जरिए एक दूसरे को जानते हैं और प्यार कर बैठते हैं. फिल्म में नवाजुद्दीन और इरफान के बीच की कैमिस्ट्री देखने लायक है.
धोबी घाट – अरुण (आमिर खान) अपनी कल्पनाओं को कैनवास पर उतारने वाला एक पेंटर है जो अकेले रहने का आदी है. उसकी मुलाकात साई ( मोनिका डोगरा) से होती है और एक रात बिताने के बाद आमिर उससे किनारा कर लेते हैं. इसके बाद मोनिका की मुलाकात मुन्ना धोबी ( प्रतीक बब्बर) से होती है. साई मुन्ना को अपना दोस्त समझती है, वहीं मुन्ना उससे प्यार करने लगता है। इस बेहद ही अलग किस्म की लवस्टोरी में अंत काफी रियलिस्टक है जहां कास्ट और क्लास का फर्क के मायने साफ देखने को मिलते हैं. किरण राव की ये पहली निर्देशित फिल्म है जिसमें आमिर अपनी कमर्शियल फिल्मों से दूर एक उदासीन आर्टिस्ट की दिलचस्प भूमिका में है.
बर्फी – ये कहानी है गूंगे-बहरे शख्स मर्फी (रणबीर कपूर) की जो अपनी ज़िंदगी मस्ती से जीने में यकीन रखता है. वो एक दिन श्रुति से मिलता है और उसे पसंद करने लगता है. लेकिन श्रुती की शादी पहले ही उसके कॉलेज के दोस्त से फिक्स हो चुकी होती है. बर्फी टूट जाता है और फिर उसकी मुलाकात झिलमिल से होती है जो ऑटिस्म से ग्रस्त है. झिलमिल को उसके माता पिता दुनिया से छुपा के रखते हैं लेकिन बर्फी और झिलमिल के बीच बेहद स्पेशल बॉन्डिंग हो जाती है. रणबीर कपूर और प्रियंका चोपड़ा ने इस फिल्म में यादगार भूमिका निभाई है.
खामोशी – डायरेक्टर संजय भंसाली की इस डेब्यू फिल्म में नाना पाटेकर और सीमा बिस्वास ने जोसेफ और फ्लैवी को रोल किया था जो बोल-सुन नहीं सकते. गोवा में समंदर किनारे रहते हैं. उनकी बेटी एनी (मनीषा कोईराला) बहुत अच्छा गाती है. लेकिन एक ट्रैजेडी एनी की जिंदगी से संगीत छीन लेती है. इसके बाद एनी की ज़िंदगी में राज (सलमान) की एंट्री होती है जो एक बार फिर एनी की लाइफ में संगीत लेकर आता है. लेकिन उनके लव को जोसेफ स्वीकार नहीं करता. ये संजय लीला भंसाली की पहली फिल्म थी और 1996 में रिलीज हुई इस फिल्म में सलमान खान अपनी मॉर्डन छवि से इतर एक बेहद भावनात्मक रोल में दिखाई देते हैं. भारतीय फिल्मों पर विदेशी मूवीज की नकल करने का आरोप लगता है लेकिन ‘खामोशीः द म्यूजिकल’ ऐसी फिल्म थी जिससे प्रेरित होकर जर्मन फिल्म ‘बियॉन्ड साइलेंस’ (1996) बनी.