बैठक तक ही सीमित है जिला निगरानी समिति, लगातार हो रही यूरिया की कालाबाजारी

खाद की निगरानी के लिए जिला स्तर निगरानी समिति कार्य कर रही है। लेकिन यह समिति सिर्फ बैठक तक ही सीमित है। समिति के अध्यक्ष जिलाधिकारी होते हैं। समिति में जिला कृषि पदाधिकारी के अलावा सारे प्रखंड कृषि पदाधिकारी, सांसद, विधायक, जिला परिषद अध्यक्ष, प्रमुख आदि रहते हैं। जिला निगरानी समिति की बैठक औपचारिक रूप से सात जुलाई को हुई है। बैठक में कम ही लोग हिस्सा लिए। बैठक में खाद की कालाबाजारी रोकने पर जरूर चर्चा हुई। डीएम ने जिला कृषि पदाधिकारी को कार्रवाई करने का आदेश है। डीएम के आदेश पर कुछ कार्रवाई जरूर हुई, लेकिन इसपर रोकथाम नहीं हुई। यूरिया को छोड़कर सभी प्रकार के खाद किसानों को उचित मूल्य पर मिल रहा है। लेकिन यूरिया की किल्लत बताकर किसानों से मुंहमांगी कीमत मांगी जा रही है। खुदरा विक्रेता को जो मुंह में आ रहा है, वह किसानों से ले रहे हैं। कहीं 330 रुपये में खाद मिल रहा है तो कहीं 370 रुपये में। कहीं 350 रुपये में तो कहीं चार सौ रुपये में। जबकि किसानों को सरकारी दर पर 266 रुपये खाद देने का सरकारी निर्देश है।

सामान्य बोर्ड की बैठक में उठा था मुद्दा

यूरिया की कालाबाजारी का मुद्दा नवंबर में हुए जिला परिषद के सामान्य बोर्ड की बैठक में उठा था। जिला परिषद अध्यक्ष सहित सदस्यों ने इस पर रोक लगाने की मांग की थी। मामला उठाते हुए जिप अध्यक्ष कहा था जिले में 18 थोक विक्रेता और 495 डीलर हैं। 266 रुपये बोरे का यूरिया नवगछिया में 330 रुपये, कहलगांव में 340 रुपये, सन्हौला में 350 रुपये में बेचा जा रहा है। देवघर नकली डीएपी की खेप भागलपुर पहुंच रही है। समय रहते कार्रवाई नहीं हुई तो किसानों के फसलों को नुकसान होगा। यूरिया की कालाबाजारी और नकली डीएपी की जांच के लिए जिप अध्यक्ष के नेतृत्व में डीडीसी, डीआरडीए निदेशक की टास्क टीम बनाने और कालाबाजारियों के खिलाफ छापेमारी अभियान चलाने का निर्णय लिया गया था। लेकिन इस दिशा में अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई। खाद की कालाबाजारी का मामला बैठक तक ही सीमित रह गया।

किसानों को नहीं मिलता पर्ची

किसानों को खाद देने के बाद खुदरा विक्रेता पर्ची नहीं दे रहे हैं। जबकि खाद की बिक्री पॉस मशीन के माध्यम से हो रही है। लेकिन पॉस मशीन से जो पर्ची निकल रही है, वह किसानों को नहीं दी जा रही है। जबकि पर्ची देना अनिवार्य है। पर्ची नहीं मिलने के कारण किसानों को यह पता नहीं चल पाता है कि खाद की कीमत कितनी है। अगर किसान पर्ची मांगते हैं तो मशीन खराब है का बहाना बना दिया जाता है। या फिर खाद लेना है तो लीजिए, नहीं तो जाइए कह दिया जाता है।

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