बेजुबां थे, इशारों में कहा- कुबूल है-कुबूल है-कुबूल है… और बज उठीं तालियां

 शहर में बुधवार को 400 से अधिक सामूहिक विवाह-निकाह हुए। इनमें से एक जोड़ा ऐसा भी रहा, जो बेजुबां है, पर एहसास की दौलत से मालामाल। नाम है-रुखसाना बानो और गोरे कुरैशी। 25 साल का गोरे अपनी 21 साल की दुल्हन रुखसाना को ले जाने 400 किलोमीटर दूर झांसी से जबलपुर खिंचा चला आया। उसके जिस्म पर कसीदेकारी वाली शेरवानी और सिर पर शानदार सेहरा सजा था, जबकि दुल्हन रुखसाना सितारे जड़े लाल-लिबास में थी।

रुखसाना के अब्बाजान इस्माइल खुशी के इस मौके पर दुआ देने मौजूद थे, लेकिन गोरे के वालिद मरहूम वजीर की जगह दूसरे रिश्तेदारों ने यह रस्म निभाई। इसके अलावा सबसे अहम भूमिका रही महिला बाल विकास परियोजना क्रमांक-2 की अधिकारी अफसाना खान की, जिन्होंने मुख्यमंत्री कन्या विवाह-निकाह योजना के सिलसिले में जबलपुर के नए मोहल्ले में रहने वाली रुखसाना जैसी बेजुबां की जिन्दगी में निकाह के लिए गोरे जैसा हमदम तलाशा।

बॉडी-लैंग्वेज से कहा-कुबूल है-कुबूल है-कुबूल है…

मौलवी साहिब ने दोनों का निकाह पढ़ाया। चूंकि रुखसाना बोल नहीं सकती, इसलिए उसने अल्फाजों से नहीं बल्कि बॉडी-लैंग्वेज से कुबूल है-कुबूल है-कुबूल है, कहा। इससे पहले उसके हाथ में गोरे के हाथों का लिखा खत थमाया गया, जिसमें लिखा था कि क्या तुम्हें मुझसे निकाह कुबूल है? 10 वीं तक पढ़ी रुखसाना खत पढ़ते ही मुस्काई फिर चेहरा आंचल में छिपा लिया और सिर ‘हां’ की मुद्रा में हिलाने लगी। इसी के साथ तालियां बजने लगीं और दोनों के परिजनों के चेहरे चांद से दमक उठे, सबके होठों पर मुस्कान खिल गई।

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