बेचना चाहती है सरकार वैश्विक स्तर की पेट्रोलियम कंपनी को BPCL की अहम हिस्सेदारी

सरकार की मंशा है कि सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी भारत पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड (बीपीसीएल) की अहम हिस्सेदारी वैश्विक स्तर की कोई पेट्रोलियम कंपनी खरीदे। इससे देश के पेट्रोलियम सेक्टर में ना सिर्फ बड़ी विदेशी कंपनी के आने का रास्ता साफ होगा बल्कि घरेलू बाजार में प्रतिस्पर्धा भी बढ़ेगी, जिसका फायदा अंतत: ग्राहकों को होगा।

केंद्र सरकार इसी उद्देश्य से दुनिया के प्रमुख पेट्रोलियम हब में बीपीसीएल की इक्विटी बिक्री के लिए रोड शो करने जा रही है। इसके लिए खास तौर पर पेट्रोलियम मंत्रालय और वित्त मंत्रलय के अधिकारी मिलकर ह्यूस्टन, दुबई, टोक्यो जैसी जगहों पर रोड शो में हिस्सा लेंगे।

ब्रिटिश पेट्रोलियम, एक्सॉन, शेल, कुवैत पेट्रोलियम जैसी कंपनियों को आकर्षित करने की खास तौर पर कोशिश की जाएगी। हाल के दिनों में भारत के पेट्रोलियम सेक्टर में दुनिया भर की पेट्रोलियम कंपनियों की खास रुचि देखने को मिली है।

सऊदी अरब की अरैमको भारत के पश्चिमी तट पर 44 अरब डॉलर की नई रिफाइनरी लगाने में निवेश कर रही है। इसने रिलायंस समूह की जामनगर रिफाइनरी में 20 फीसद हिस्सेदारी (15 अरब डॉलर में) भी खरीदी है।

इसके अलावा पिछले हफ्ते ह्यूस्टन में पीएम नरेंद्र मोदी के साथ बैठक में भी दिग्गज पेट्रोलियम कंपनियों के सीईओ उपस्थित थे। उनमें से कई ने व्यक्तिगत तौर पर पीएम मोदी से मिलकर भारत में निवेश करने की इच्छा जताई थी।

सरकार की योजना है कि लंबी अवधि में इंडियन ऑयल, ओएनजीसी-एचपीसीएल के अलावा घरेलू पेट्रोलियम बाजार में बीपीसीएल को खरीदकर एक बहुराष्ट्रीय पेट्रोलियम कंपनी स्थापित हो। वैसे सरकार की विनिवेश प्रक्रिया में बीपीसीएल की हिस्सेदारी खरीदने का प्रस्ताव सरकारी तेल कंपनी इंडियन ऑयल भी दे सकती है।

अगर इंडियन ऑयल के पक्ष में फैसला होता है, तो इससे घरेलू पेट्रोलियम सेक्टर में एकाधिकार की स्थिति बन सकती है। यही वजह है कि विदेशी पेट्रोलियम कंपनी पर ज्यादा जोर देने की योजना है।
बीपीसीएल में सरकार अपनी पूरी 53.29 फीसद इक्विटी बेचने को इच्छुक है। मौजूदा शेयर बाजार मूल्य के आधार पर सरकार को इससे 54 हजार करोड़ का राजस्व हासिल हो सकता है, जिससे राजकोषीय घाटे को पाटने में भी मदद मिलेगी।
इससे पहले अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने तीनों दिग्गज सरकारी तेल कंपनियों इंडियन ऑयल, बीपीसीएल और एचपीसीएल की रणनीतिक बिक्री की कोशिश की थी, लेकिन ऐसा नहीं हो सका।
कानूनी अड़चन के साथ ही विदेशी कंपनियों ने तब इसमें रुचि भी नहीं दिखाई थी। बाद में इन तीनों कंपनियों के मार्केटिंग विभाग को एक साथ बेचने की भी कोशिश हुई थी, लेकिन तब भी योजना परवान नहीं चढ़ सकी थी।

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