रविवार को शहर में फाग उत्सव में फूलों की बारिश हुई। पुष्पर्षा के बीच लट्ठमार हुई जिसे देख वहां मौजूद श्रद्धालुओं ने होली के रसिया के जयघोष के साथ संगीतमयी कीर्तन गूंजा। फाग के गीत गूंजे वहीं गीतों व भजनों की स्वरलहरियों के बीच गोकुल के ग्वाल बाल बने भक्तों पर महिलाओं ने लट्ठ बरसाए। पुष्पवर्षा भी हुई। यह नजारा दिखाई दिया शहर के इतवारा स्थित श्री गोकुलचंद्रमाजी मंदिर में।
यहां पर रविवार को लट्ठमार-फूलफाग होली मनोरथ हुआ। मनोरथ के दर्शन करने बड़ी संख्या में वैष्णव भक्त मंदिर पहुंचे। पुष्टिमार्गीय संगीतमयी भजनों से सारा वातावरण श्रीकृष्णमयी हो गया। भगवान के भजनों और होली के रसिया गीतों पर श्रद्धालु झूम उठे।
भागवत भूषण पंडित हरिकृष्ण मुखियाजी ने होली मनोरथ का महत्व बताया। गौरतलब है कि शहर के पुष्टिमार्गीय मंदिरों में चालीस दिवसीय फाग उत्सव का होलिका दहन व धुलेंडी पर समापन होगा। मंदिरों में प्रतिदिन फाग उत्सव मनाया जा रहा है। फाग के गीतों पर श्रद्धालु झूम रहे हैं।
आज होगी सास-बहू की विशेष होली
श्रीगोकुलचंद्रमाजी मंदिर में प्रतिवर्ष मथुरा की तर्ज पर लट्ठमार-फूलफाग होली होती है। साथ ही सास-बहू की विशेष होली भी खेली जाती है। इस होली में सैंकड़ों सास-बहू महिलाएं शामिल होती है और भगवान श्री गोकुलचंद्रमाजी के साथ होली खेलती है। भगवान को रंग लगाने के बाद वे एक-दूसरे को रंग लगाती है और ढोलढमाके की धुन पर फुगड़ी खेलकर नाचते गाते हुए वर्षभर के सारे गिले शिकवे मिटा देती है। इस बार यह होली 9 मार्च को खेली जाएगी। इसके लिए तैयारियां जारी है।
पंडित हरिकृष्ण मुखियाजी ने बताया कि होली प्रेम और स्नेह का त्योहार है। इसमें बच्चे, बुजुर्ग, बड़े-छोटे सभी एक-दूसरे के गिले शिकवे भूलकर रंग गुलाल खेलते हैं और प्रेम से रहने और प्रेम बांटने का संदेश देते हैं। होली सारे गिले शिकवे मिटा देती है।
होली में सालभर का अवसाद, तनाव और गुस्सा जोर-जोर से होली है, बुरा ना मानो होली है चिल्लाते हुए निकल जाता है। एक-दूसरे को रंग लगा देने से सभी में समानता और आपसी स्नेह का भाव जाग्रत होता है।
केवल एक यही ऐसा त्योहार है जो सास-बहू को भी आपस में प्रेम से जोड़ देता है। महिलाओं में इसी प्रेम की परिभाषा को समझने और गिले शिकवे मिटाने के लिए सास-बहू की होली खेली जाती है। इससे उनके बीच आपसी सामंजस्य बेहतर होता है और घर से सारे कलेश दूर हो जाते हैं।