पति-पत्नी का घरेलू विवाद इस कदर दिल-दिमाग पर हावी हो जाता है कि अच्छी-खासी नौकरी और परिवार को क्षण भर में छोड़ने का निर्णय ले लिया जाता है। इसी प्रकार का एक मामला फैमिली कोर्ट में सामने आया है।
केन्द्र सरकार के एक कार्यालय में कार्यरत सेक्शन अधिकारी ने नौकरी छोड़ दी। पहले उसने खुद को दो साल तक ‘नो वर्क नो पे’ की स्थिति में रखा। लगातार अनुपस्थित रहने के बाद उसे सेवा समाप्त करने का नोटिस विभाग की ओर से मिला।
लेकिन उसने इसका जवाब नहीं दिया और नौकरी छोड़ दी। ऐसा उसने सिर्फ फैमिली कोर्ट के गुजारा-भत्ता के आदेश को न मानने की जिद में किया। इसके लिए उसने मासिक 78 हजार रुपये की नौकरी को लात मार दी।
फैमिली कोर्ट ने कौशल को पत्नी सरिता (नाम परिवर्तित) व दो बच्चों को गुजारा भत्ता के रूप में प्रतिमाह 14 हजार रुपये (पत्नी को छह हजार व दोनों बच्चों को चार-चार हजार) देने का आदेश दिया है।
पत्नी, पति के वेतन की 60 फीसदी की मांग कर रही है। अदालत ने तत्काल राहत देते हुए 14 हजार रुपये देने का आदेश पारित किया। इसी आदेश के बाद उसने कार्यालय आना छोड़ दिया है। पत्नी इसके लिए लगातार कार्यालय का चक्कर लगा रही है। सरिता अपने बच्चों के साथ रातू रोड (मायके) में रहती हैं।
क्या है विवाद की वजह
कौशल पटना स्थित दानापुर निवासी है, लेकिन नौकरी रांची में करता था। उसकी चाहत है कि वे अपने परिवार के साथ दानापुर स्थित अपने स्थायी मकान में रहें। कौशल का ससुराल रांची में है। केन्द्र सरकार में नौकरी रहने के कारण उसने पटना स्थानांतरण कराने की बात पत्नी से की।
उसकी पत्नी जिद पर अड़ गई कि किसी भी हालत में रांची छोड़कर पटना नहीं जाएगी। चाहे कहीं स्थानांतरण कराओ। तुम जाकर नौकरी करो। मैं तो रांची छोड़कर कहीं और रहने नहीं जाऊंगी। इसी बात पर दोनों के बीच इतना अधिक विवाद बढ़ा कि कौशल अदालत की शरण में पहुंच गया।