भाजपा विस्तारवादी अभियान पर है और पिछले कुछ वर्षों में विपक्षी किले फतह करने के लिए इसने तोडफ़ोड़ का सहारा लिया है. इसने कई राज्यों में कांग्रेस को क्षति पहुंचाकर सत्ता हासिल की है. मध्य प्रदेश में 25 विधायकों के कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आने के बाद उपचुनाव आवश्यक हो गए थे. इनमें से ज्यादातर विधायक ज्योतिरादित्य सिंधिया के वफादार थे. कांग्रेस ने आरोप लगाया कि भाजपा ने इन विधायकों को पार्टी बदलने के बदले टिकट देकर पुरस्कृत किया है, लेकिन मतदाताओं को इससे कोई फर्क नहीं पड़ा. प्रदेश में उपचुनाव की 28 सीटों में से भाजपा ने 19 जीतीं और शिवराज सिंह चौहान सरकार ने स्पष्ट बहुमत हासिल किया.
मणिपुर की पांच सीटों के उपचुनाव में, भाजपा के चार उम्मीदवार—सभी इस साल सितंबर में कांग्रेस छोड़कर आए थे—जीते. इससे पहले भाजपा के टिकट पर सिंघाट से जिमसुआनहो जोउ निर्विरोध चुने गए. छठी सीट पर भाजपा समर्थित एक निर्दलीय उम्मीदवार हार गए. भाजपा के टिकट पर गुजरात में उपचुनाव लडऩे वाले सभी आठ पूर्व कांग्रेसियों ने बाजी मारी. गुजरात की 182 सदस्यीय विधानसभा में अब भाजपा के 111 सदस्य हैं. यूपी की सात सीटों में से छह भाजपा ने जीतीं.
तेलंगाना में भाजपा ने सत्तारूढ़ तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) से दुब्बक विधानसभा सीट छीन ली. कर्नाटक में भाजपा के बी.एम. राजेश गौड़ा ने सिरा में वोक्कालिगा गढ़ को ध्वस्त किया. गौड़ा कांग्रेस से आए थे. इससे कई लोग चौंक गए क्योंकि वोक्कालिगा समुदाय को जनता दल (सेक्युलर) का समर्थक माना जाता है. पूर्व कांग्रेस नेता एन मुनिरत्न ने इस बार भाजपा के टिकट पर आर.आर. नगर सीट जीती.
वैसे, दो पराजयों ने भाजपा की जीत का मजा कुछ किरकिरा भी किया है. हरियाणा में जाट बहुल बड़ौदा सीट से ओलंपिक पदक विजेता योगेश्वर दत्त और छत्तीसगढ़ के मरवाही से गंभीर सिंह हार गए. हरियाणा में भाजपा की हार संभवत: मनोहर लाल खट्टर सरकार के विरुद्ध जाटों के ध्रुवीकरण का संकेत है.
कोविड के बीच चुनाव लडऩा, महामारी से उपजे आर्थिक संकट के बीच अपने विकास के एजेंडे को भुनाना और सहयोगी जद (यू) और लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) के बीच बढ़ती तकरार—बिहार चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा के पास चुनौतियों का अंबार था. सहयोगी दलों के साथ सीट बंटवारे की बातचीत भी आसान नहीं थी, वहीं भाजपा के कई स्टार प्रचारक, जैसे बिहार चुनाव प्रभारी देवेंद्र फड़णवीस, बिहार के उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी और सारण के सांसद राजीव प्रताप रूडी, कोविड संक्रमित हो गए और कुछ वक्त के लिए प्रचार भी नहीं कर सके.
कोविड संक्रमण से उबरने के बाद फिर से बीमार हो जाने के कारण अमित शाह बिहार में प्रचार के लिए जाने की स्थिति में नहीं थे और उनकी अनुपस्थिति की कमी साफ झलकती थी. सारा दारोमदार पीएम मोदी के कंधों पर आ गया. 23 अक्तूबर को सासाराम, गया और भागलपुर में मोदी की रैलियों के बाद एनडीए के अभियान ने गति पकड़ी. 99 विधानसभा सीटों पर मतदाताओं तक पहुंचने के प्रयास के तहत बिहार के दरभंगा, मुजफ्फरपुर, पटना, छपरा, पश्चिम चंपारण, पूर्वी चंपारण, समस्तीपुर, सहरसा और फारबिसगंज में हुईं उनकी नौ रैलियों को 100 से अधिक स्थानों पर दिखाया गया. एनडीए ने इनमें से 70 फीसद सीटें जीतीं.