भारत और चीन के बीच गठित विशेष प्रतिनिधि स्तर की वार्ता बुधवार को बीजिंग में होगी। विशेष प्रतिनिधि (एसआर) स्तर की वार्ता पूर्वी लद्दाख स्थित वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर अप्रैल-मई, 2020 से चल रहे मौजूदा तनाव को समाप्त करने के बाद शुरू की जा रही है।
बैठक में भारत का प्रतिनिधित्व हमेशा की तरह राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल करेंगे जबकि चीन की तरफ से विदेश मंत्री वांग यी को विशेष प्रतिनिधि के तौर पर नियुक्त किया गया है। बैठक में हिस्सा लेने के लिए डोभाल मंगलवार को बीजिंग पहुंच गये। बताया जा रहा है कि भारत की तरफ से पूर्वी लद्दाख से सटे एलएसी को लेकर वार्ता की शुरुआत करने पर जोर दिया जाएगा।
एनएसए डोभाल पहले भी कर चुके हैं वार्ता
एसआर के तहत वार्ता करने की व्यवस्था पर पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी की जुलाई, 2003 की बीजिंग यात्रा के दौरान सहमति बनी थी। उद्देश्य यह था कि दोनों देशों के बीच सीमा विवाद का स्थाई समाधान हो। इसके तहत 22 दौर की बातचीत हो चुकी है। एनएसए डोभाल ने स्वयं वर्ष 2014 से वर्ष 2019 तक इस वार्ता में भारत का प्रतिनिधित्व किया है।
जानकारों की मानें तो भारत विगत 22 दौर की वार्ताओं से कतई भी खुश नहीं है। वजह यह बताया जाता है कि चीन की तरफ से सीमा विवाद के समाधान को लेकर अपने रूख में कोई भी नरमी नहीं दिखाई जाती। पूर्व में इस व्यवस्था के तहत भारतीय टीम में शामिल एक अधिकारी के मुताबिक चीन का रवैया मामले को खींचने का होता है।
एलएसी के निर्धारिण को लेकर सहमति बनी
22 दौर की बातचीत चलने के बावजूद यह नहीं कहा जा सकता कि किसी भी क्षेत्र में दोनों देशों के बीच एलएसी के निर्धारिण को लेकर सहमति बनी है। वर्ष 2017 में डोकलाम विवाद और वर्ष 2020 का पूर्वी लद्दाख का विवाद यह साबित करता है कि एसआर व्यवस्था के तहत वार्ता का कोई सकारात्मक असर नहीं दिखा है। दोनों विवादों का समाधान शीर्ष नेताओं के बीच में आने के बाद ही हो सका है।
बहरहाल, विशेष प्रतिनिधि स्तर की वार्ता पांच वर्षों बाद हो रही है। इस वार्ता की शुरुआत फिर से करने की सहमति पीएम नरेन्द्र मोदी और राष्ट्रपति शी चिनफिंग के बीच अक्टूबर, 2024 में बनी थी। उसके बाद दोनों देशों के विदेश मंत्रियों के बीच भी बैठक हो चुकी है।