केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) बिहार विधानसभा चुनाव के लिए राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के सीट शेयरिंग फॉर्मूले से नाखुश है। सूत्रों के मुताबिक, क्षेत्रीय पार्टी के एक धड़े ने सीट बंटवारे पर नाराजगी जताते हुए आलाकमान को 243 सीटों वाली विधानसभा में 143 सीटों पर उम्मीदवार उतारने की योजना पर अमल करने का आग्रह किया है।’
सूत्रों कहना है कि पार्टी अगले दो दिन में एनडीए के साथ बने रहने या अलग राह पकड़ने का फैसला करेगी, क्योंकि तीन चरण में होने वाले चुनावों के पहले चरण के लिए नामांकन एक अक्तूबर से शुरू होना है।
हालांकि राज्य में एनडीए के तीनों मुख्य सहयोगियों भाजपा, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली जदयू और लोजपा ने अभी तक सीट बंटवारे पर कोई अधिकृत टिप्पणी नहीं की है, लेकिन सूत्रों का दावा है कि पासवान की पार्टी को 27 सीटों का ऑफर दिया गया है।
बता दें कि 2015 के विधानसभा चुनाव में लोजपा ने 42 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे और 2 सीट जीती थी। उस समय जदयू ने एनडीए से अलग होकर कांग्रेस व राजद की मौजूदगी वाले विपक्षी गठबंधन का दामन थामा था, जिसने आपसी तालमेल से एनडीए को चुनावी पटखनी दी थी।
सूत्रों के मुताबिक, लोजपा नेताओं को सीट बंटवारे में उन सीटों पर मौका नहीं मिलना ज्यादा बुरा लगा है, जिन पर वे पार्टी की स्थिति मजबूत मानते हुए अपने उम्मीदवार अवश्य उतारने की राय रखते हैं। हालांकि पार्टी के लोकसभा सांसदों की तरफ से एनडीए गठबंधन से अलग होने की योजना का विरोध करने की खबरें हैं, लेकिन लोजपा ने वैशाली सीट से सांसद वीणा देवी का वीडियो संदेश जारी करते हुए इसे झुठलाने का प्रयास किया है। वीणा देवी ने वीडियो में पार्टी से 143 सीट पर उम्मीदवार उतारने की मांग की है।
लोजपा अध्यक्ष चिराग पासवान ने भाजपा नेतृत्व की प्रशंसा करते हुए अलग होने की स्थिति में भी भगवा दल के उम्मीदवारों के खिलाफ अपना उम्मीदवार नहीं उतारने का इशारा किया है। लेकिन उन्होंने स्पष्ट संकेत दिए हैं कि उनकी पार्टी जदयू के कोटे में पड़ने वाले विधानसभा क्षेत्रों में अपने उम्मीदवार खड़े कर सकती है। हालांकि सूत्रों का कहना है कि भाजपा की तरफ से चिराग को मनाने के लिए लोजपा को विधान परिषद में भी कुछ सीटें देने का प्रस्ताव दिया गया है। लेकिन फिलहाल कुछ स्पष्ट नहीं है।
पार्टी संरक्षक व चिराग के पिता रामविलास पासवान की तबीयत लगातार खराब रहने और उनके अस्पताल में भर्ती रहने से भी मामला उलझ गया है। सूत्रों का मानना है कि रामविलास की मौजूदगी में सभी घटक दलों की सहमति वाला सीट बंटवारा समझौता करना आसान होता, जो अब मुश्किल हो गया है।