कोरोना वायरस के बीच बिहार में विधानसभा चुनाव के बाद संक्रमण का असर दिखाई दे सकता है। केरल मध्य प्रदेश और दिल्ली भी इसके उदाहरण बन चुके हैं। ऐसे में विशेषज्ञों का अनुमान है कि चुनाव के बाद कोरोना की तेजी देखने को मिल सकती है। ऐसा इसलिए नहीं है कि चुनाव बाद संक्रमण की गति में बढ़ोतरी हो जाएगी बल्कि इसलिए अभी कागजों पर दिखाई देने वाले सरकारी आंकड़े सवालों के घेरे में हैं।
जोधपुर स्थित इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के पूर्व प्रोफेसर रिजो एम जॉन ने बातचीत में कहा कि देश में सबसे कमजोर स्वास्थ्य सेवाएं बिहार में हैं लेकिन संक्रमण की स्थिति वहां सबसे बेहतर है। वह भी तब जब लाखों की तादाद में मजदूर अपने घर पहुंचे हैं।
उन्होंने बताया कि देश में कुल जांच में 10 फीसदी भागीदारी बिहार की है। यहां बीते 2 महीने से संक्रमण दर 5 फ़ीसदी से कम बनी हुई है पिछले कुछ दिन में केवल 2 फ़ीसदी सैंपल ही संगठन में मिल रहे हैं। इन सरकारी आंकड़ों से स्पष्ट है कि कोरोना संक्रमण निम्न स्तर पर है लेकिन अगर स्वास्थ्य सेवाओं की ओर गौर करें तो यह आंकड़े संदेह पैदा करते हैं।
आईआईएससी के डॉक्टर गिरधर का कहना है कि हाल ही में केरल में हुए ओणम की वजह से अचानक संक्रमण का असर दिखाई दिया। इससे पहले दिल्ली में पहले विधानसभा चुनाव और फिर हिंसा की घटना के बाद ही संक्रमण का सामने आने लगा था। ठीक इसी तरह मध्यप्रदेश में भी संक्रमण के मामलों में तेजी देखने को मिली। ऐसे में उन्हें आशंका है कि चुनाव के बाद बिहार में भी कोरोना का प्रभाव देखने को मिल सकता है।
स्वास्थ्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि चुनावी रैलियों में सोशल डिस्टेंसिंग व मास्क की तैयारी के नियमों का पालन नहीं हुआ है। इसकी शिकायतें भी मिली हैं। हालांकि चुनाव के बाद संक्रमण के मामले ज्यादा आ सकते हैं। इसके बारे में फिलहाल कुछ कहा नहीं जा सकता।
प्रोफेसर विजय के मुताबिक, बिहार की राजधानी पटना में संक्रमण दर 10 प्रतिशत तक दर्ज की गई है। 92 प्रतिशत जांच पटना, समस्तीपुर और पूर्वी चंपारण में हुई है। जहां 5 फ़ीसदी से अधिक संक्रमण मिले हैं। इसके अलावा बिहार में कुल संख्या में 16 प्रतिशत हिस्सेदारी पटना से है लेकिन फिलहाल यहां 4.4 प्रतिशत जांच ही हो रही है। अन्य राज्यों की तुलना में बिहार के सरकारी कागजों पर मौजूद इन आंकड़ों पर भरोसा नहीं किया जा सकता है।