बिना वकालतनामा बहस करने पर मंदिर पक्ष ने जताया विरोध

मंदिर पक्ष के अधिवक्ताओं ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से बिना वकालतनामा लगाए ईदगाह पक्ष के अधिवक्ता के बहस करने का विरोध किया। न्यायमूर्ति मयंक कुमार जैन की कोर्ट ने इसका संज्ञान लेते हुए निर्देश दिया तो ईदगाह पक्ष की अधिवक्ता ने अविलंब वकालतनामा लगाने की बात कही। 

इलाहाबाद हाईकोर्ट में श्रीकृष्ण जन्मभूमि व शाही ईदगाह विवाद मामले की सुनवाई के दौरान सोमवार को मंदिर पक्ष के अधिवक्ताओं ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से बिना वकालतनामा लगाए ईदगाह पक्ष के अधिवक्ता के बहस करने का विरोध किया। 

न्यायमूर्ति मयंक कुमार जैन की कोर्ट ने इसका संज्ञान लेते हुए निर्देश दिया तो ईदगाह पक्ष की अधिवक्ता ने अविलंब वकालतनामा लगाने की बात कही। मंदिर पक्ष के अधिवक्ताओं ने ईदगाह पक्ष की सीनियर अधिवक्ता तसनीम अहमदी व महमूद प्राचा के वकालतनामा न लगाए जाने पर नाराजगी जताते हुए कहा था कि अबतक बिना किसी वकालतनामा के बहस की जा रही है। इससे पूर्व मंदिर पक्ष के अधिवक्ता सत्यवीर सिंह ने कहा, विवादित ढांचे से संबंधित समझौता पत्र में प्रॉपर्टी के मुख्य मालिक पक्षकार नहीं हैं। जमीन का मालिकाना हक सिर्फ शाश्वत बालकृष्ण (केशव देव) को ही है। उनके हित के विरुद्ध किसी भी प्रकार का समझौता विधिमान्य नहीं है। अन्य दलीलें भी दी गईं।

ईदगाह पक्ष की दलील
वहीं, शाही ईदगाह पक्ष के अधिवक्ता तनवीर अहमद ने कहा, उपासना अधिनियम व वक्फ एक्ट के तहत यह वाद सिविल कोर्ट में नहीं चल सकता है। मामले में लिमिटेशन एक्ट भी प्रभावी है। ऐसे में यह वाद पोषणीय न होने के कारण सुनवाई योग्य नहीं है।  

निर्णयों का दिया हवाला 
सर्वाच्च न्यायालय, उच्च न्यायालय इलाहाबाद व राजस्थान के निर्णयों का हवाला देते हुए कहा, इस मामले में वक्फ एक्ट और विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम भी लागू नहीं होता है।

सुनवाई पर ये रहे मौजूद
श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट और संस्थान के अधिवक्ता हरेराम त्रिपाठी, श्रीकृष्ण जन्मभूमि मुक्ति निर्माण ट्रस्ट के अध्यक्ष आशुतोष पांडेय, अधिवक्ता महेंद्र प्रताप सिंह, विनय शर्मा, नसीज्जमां, मार्कंडेय राय, प्रणव ओझा, सिद्धार्थ श्रीवास्तव आदि पक्ष रखने के लिए मौजूद रहे।

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