राजधानी में जरा सी बारिश होने पर सड़कें दरिया व गलियां तालाब में तब्दील हो जाती हैं। कुछ ही मिनट में राहत की बारिश आफत बन जाती है। बारिश के पानी के निकलने की उचित व्यवस्था न होने की वजह से नाले उफान मारते हैं। रही सही कसर जिम्मेदार विभाग नालों की सफाई न करके पूरी करते हैं। इससे दिल्ली की रफ्तार थम जाती है। पहले नदी का पानी बढ़ने से शहर में आता था, लेकिन अब शहर का पानी ही बाढ़ जैसे हालात पैदा कर रहा है। इसका एक नजारा बीते बुधवार और 27 जुलाई को देखने को मिला। इसके पीछे की सबसे बड़ी वजह आबादी बढ़ने के क्रम में जल निकासी सिस्टम की क्षमता में बढ़ोतरी न करना है। यही नहीं, 1976 में बनाए गए ड्रेनेज सिस्टम पर ही दिल्ली निर्भर है। उधर, 13 वर्ष पहले बनाया गया ड्रेनेज मास्टर प्लान अब तक कागजों में घूम रहा है।
जुलाई 2018 में आईआईटी दिल्ली ने सरकार को मास्टर प्लान की विस्तृत रिपोर्ट सौंपी। रिपोर्ट में सिफारिश की गई थी कि रुकावटों से निपटने के लिए सीवर लाइनों को पंचर करने और सीवेज को तूफानी नालों में बहाने की प्रथा को रोका जाना चाहिए। साथ ही सीवेज और बाढ़ के पानी की निकासी सिस्टम को अलग करने को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। 2018 में सरकार ने इसे लागू करने की बात कही थी, लेकिन अभी तक लागू नहीं किया। विशेषज्ञों के अनुसार, जिस समय ये जल निकासी का सिस्टम बनाया गया था, उस दौरान यहां आबादी लगभग 60 लाख थी। उधर, 2011 में दिल्ली की जनसंख्या 1.38 करोड़ थी, जो अब करीब दो करोड़ है, इससे ड्रेनेज सिस्टम पर अधिक दबाव है।
24 घंटे में 50 एमएम बारिश ही झेल सकती है दिल्ली
पीडब्ल्यूडी के मुताबिक, शहर का ड्रेनेज सिस्टम 24 घंटे की अवधि में 50 मिमी बारिश को ही झेल सकता है। इससे अधिक बारिश होने पर जलभराव की समस्या से जूझना होता है। विशेषज्ञ बताते हैं कि 2000 के बाद दिल्ली में तेजी से विकास कार्य हुए हैं। इसमें खाली पड़ी जमीन पर फ्लैटों का निर्माण हुआ। वहीं, हरित क्षेत्र बढ़ाने के नाम पर झाड़ियां ज्यादा लगाई गईं, वृक्ष कम। 2014 में 1731 अनाधिकृत कॉलोनियों की संख्या अब करीब दो हजार तक पहुंच गई है। उधर, सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरनमेंट (सीएसई) के एक अध्ययन के मुताबिक 2003 से 2022 तक निर्मित क्षेत्र 31.4 फीसदी से बढ़कर 38.2 फीसदी हो गए हैं। ऐसे में बढ़ते कंक्रीट के जंगल ने संकट और बढ़ाया है।
60 फीसदी से अधिक नाले अतिक्रमण की चपेट में
दिल्ली में छोटे-बड़े करीब 2846 नाले हैं और इनकी लंबाई करीब 3692 किलोमीटर है। इन नालों का एक बड़ा हिस्सा पीडब्ल्यूडी के पास है। इसमें तीन प्रमुख प्राकृतिक जल निकासी बेसिन में विभाजित किया है। यह बेसिन ट्रांस यमुना, बारापुला और नजफगढ़ है। इसके अलावा कुछ बहुत छोटे जल निकासी बेसिन अरुणा नगर और चंद्रवाल भी हैं, जो सीधे यमुना में गिरते हैं। ऐसे में प्रमुख नाले और ड्रेनेज सिस्टम ठोस कचरे और अवरोधों से भरे हैं। इससे जल निकासी धीमी हो जाती है। जबकि कई नाले और जल निकासी के रास्ते अतिक्रमण की वजह से संकरे या बंद हो गए हैं। आरके पुरम, दरियागंज, करोल बाग में स्थित दरयाई, रानी झांसी रोड, कलबन नाला, बड़ा हिंदू राव, बरापुला नाला शहरीकरण और अतिक्रमण के कारण इनका अस्तित्व ही खत्म हो गया है। विशेषज्ञों का कहना है कि नालियों पर अतिक्रमण को हटाना जरूरी है। वहीं, इन नालियों में सीवेज व कोई ठोस अपशिष्ट जाने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। बरसाती पानी सीवर सिस्टम में नहीं बहाया जाना चाहिए। यही नहीं, नालियों के ऊपर निर्माण को रोकना जरूरी है। नए नालों का डिजाइन अलग से नहीं किया जाना चाहिए।
सरकार की समझ में ड्रेनेज सिस्टम का मतलब सड़कों पर पानी नहीं ठहरना चाहिए। लेकिन, बारिश का पानी कहां ले जाएं या उसकी निकासी का रास्ता क्या हो नहीं पता है। उन्होंने कहा कि बेहतर ड्रेनेज सिस्टम को बनाने के लिए विशेषज्ञों की राय लेनी जरूरी है।
-दीपेंदर कपूर, कार्यकारी अधिकारी, सीएसई
यमुना नदी के बाढ़ क्षेत्र पर भी अतिक्रमण किया है। सभी जल निकासी के चैनल एक बॉटलनेक हो गए हैं। इससे बारिश के बाद नाले उफान मारते हैं। शहर की जल निकासी प्रणाली यानी ड्रेनेज सिस्टम को दुरुस्त करने की आवश्यकता पर ध्यान देना जरूरी है।
-एस ए नकवी, संयोजक, सिटीजन फ्रंट फॉर वाटर डेमोक्रेसी