बाबरी मस्जिद का स्वरूप नहीं बदला जा सकता, सुप्रीम कोर्ट में अपील करने वाले दो पैरोकारों का दावा

बाबरी मस्जिद व श्रीराम जन्मभूमि विवाद को लेकर सुप्रीम कोर्ट में चल रहे मामले में पैरोकार मौलाना महफूजर्रहमान और मौलाना मुफ्ती हस्बुल्लाह खां की ओर से सोमवार को दावा किया गया कि किसी भी सूरत में बाबरी मस्जिद का स्वरूप नहीं बदला जा सकता।

उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार और राम भक्तों व अधिवक्ताओं की ओर से दायर की नई अपीलों पर भी सवाल उठाया। शहर के एक होटल में सोमवार को पत्रकारों से बातचीत करते हुए मौलाना महफूजर्रहमान की ओर से नामित हेलाल कमेटी के कन्वीनर खालिक अहमद खां और मौलाना मुफ्ती हस्बुल्लाह ने अयोध्या विवाद से जुड़े कई बिंदुओं पर अपना पक्ष रखा। 

कहा कि मूल विवाद 12080 फिट (0.313 एकड़) को लेकर है। इसके बाद केंद्र सरकार ने 2.77 एकड़ जमीन का पहले चरण में अधिग्रहण किया। छह दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद गिरने के बाद सात जनवरी 1993 को शासनादेश के आधार पर 67.7 एकड़ भूभाग अधिग्रहीत किया गया। 

इसके बाद अयोध्या एक्ट (1993) बनते समय पहले से अधिग्रहीत भूभाग को मिलाकर यह जमीन 71.36 एकड़ हो गई। इस अधिग्रहण का विशिष्ट उद्देश्य था कि देश में सद्भावना, सांप्रदायिक सद्भाव और शांति कायम हो, इसमें सुनियोजित तरीके से कॉम्प्लेक्स का विकास करना था, जिसमें राममंदिर, मस्जिद के साथ ही यात्रियों के लिए सुविधाएं, पुस्तकालय व अन्य सुविधाओं का प्रबंध होना था। 

सुप्रीम कोर्ट में अपील करने वाले दोनों पैरोकारों की ओर से कहा गया कि अब केंद्र सरकार की ओर से नियुक्त एडवोकेट बीवी बलरामदास ने 28 जनवरी 2019 को सुप्रीम कोर्ट में अपील करते हुए कहा कि 67.7 एकड़ भूभाग जो अयोध्या एक्ट 1993 द्वारा केंद्र सरकार ने अधिग्रहीत किया था उसे वास्तविक भू मालिकों को वापस कर दिया जाए। 

31 मार्च 2003 का उच्चतम न्यायालय का यथास्थिति का आदेश निरस्त किया जाए। पैरोकारों ने बताया कि सुन्नी सेंट्रल वक्फ द्वारा मूल वाद संख्या 4/1989 में 23 नजूल प्लॉट व राजस्व गाटा का जिक्र करते हुए कहा कि इसमें पांच मस्जिदों और 13 कब्रिस्तानों का जिक्र था। 

जिसमें एक बाबरी मस्जिद और चार कनाती मस्जिदें थीं। छह दिसंबर को मस्जिद गिरने के बाद उच्चतम न्यायालय में सुनवाई के समय सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने बाबरी मस्जिद को छोड़कर बाकी पर से अपना दावा वापस ले लिया। 

हालांकि मुस्लिम पक्ष ने 1961 के दावे में 23 नजूल प्लॉट पर दावा किया था। पैरोकारों ने कहा कि बाबरी मस्जिद का स्वरूप नहीं बदला जा सकता है। न ही किसी के पक्ष में दिया जा सकता है। पैरोकारों ने अधिग्रहीत की गई भूमि का सही मुआवजा न दिए जाने का भी मुद्दा उठाया।

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