देश में महिला सुरक्षा और दुष्कर्म जैसे जघन्य अपराधों को लेकर वर्षो से आवाज उठ रही है, लेकिन फिर भी इन घटनाओं में कोई कमी देखने को नहीं मिल रही है। अब उत्तर प्रदेश के बदायूं जिले में 50 साल की महिला के साथ दुष्कर्म के बाद हत्या की घटना को लेकर लोगों में आक्रोश है। इसी बीच महिलाओं की मुश्किलों को समझने और उनकी मदद के लिए बनाए गए राष्ट्रीय महिला आयोग की सदस्य द्वारा इस मामले पर असंवेदनशील बयान देना हैरान करने वाला है। उन्होंने कहा कि अगर शाम के समय वह महिला अकेले नहीं गई होती या परिवार का कोई सदस्य साथ में होता तो शायद ऐसी घटना नहीं घटती।
उनके इस विवादित बयान की काफी आलोचना हो रही है। हालांकि खुद की किरकिरी होने के बाद भले ही उन्होंने इस मामले पर सफाई देते हुए माफी मांग ली हो, परंतु उनके इस बयान से समाज में एक नकारात्मक संदेश तो गया ही है। उन्होंने अपराधियों को उनके अपराध का बोध कराने के बजाय पीड़िता पर ही सवाल उठाकर उनके हौसले बुलंद करने का काम किया है। सच तो यह है कि महिलाएं आज के जमाने में कहीं पर भी सुरक्षित नहीं हैं।
आज भी हमारे देश में जितनी असुरक्षित घर से बाहर अकेली जाने वाली महिलाएं हैं उतनी ही घर में रहने वाली महिलाएं भी हैं। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक साल 2019 में देश में दुष्कर्म के हर रोज 84 मामले दर्ज किए गए। इसके आधार पर हम आकलन कर सकते हैं कि देश में महिलाओं को लेकर स्थिति कितनी खराब है। इसमें पहले के मुकाबले आज भी कोई खास सुधार देखने को नहीं मिला है। महिलाएं इस कुंठित होते समाज में हर पल घुट-घुटकर जीने को मजबूर हैं। दुष्कर्म की घटनाओं में उनके साथ वीभत्सता हर बार पहले से ज्यादा दिखाई पड़ती है। पूर्व में निर्भया कांड हो या उन्नाव या फिर हैदराबाद कांड, इन सभी मामलों में हर बार आरोपियों की ऐसी ही घृणित मानसिकता दिखाई दी है।
महिला को यह अधिकार है कि वह अपनी इच्छानुसार कभी भी कहीं भी आ जा सकती है। इस तरह के मामलों में महिलाओं की कोई गलती नहीं होती है, लेकिन कभी उनके पहनावे को लेकर तो कभी उनके घर से अकेले बाहर निकलने पर सवाल उठाकर उन्हें ही नीचा दिखाने का कुकृत्य किया जाता रहा है। महिलाओं के खिलाफ हर अपराध निंदनीय है। ऐसी घटनाओं से पूरा देश शर्मसार होता है। इस तरह की घटनाएं दोबारा न हों इसके लिए महिलाओं के लिए हर जगह को सुरक्षित बनाना और अपराधियों पर अंकुश लगाना सरकार और समाज की जिम्मेदारी है। वहीं संवैधानिक एवं प्रतिष्ठित पदों पर बैठे हुए लोगों को भी अनर्गल बयान देने से बचना चाहिए, क्योंकि इससे समाज में नकारात्मक संदेश भी जाता है।