श्रीरामचरित मानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास ने श्रीरामचरित मानस लिखने से पहले हनुमान चालीसा लिखी थी और फिर हनुमान की कृपा से ही वे श्रीरामचरित मानस लिख पाए। कहते हैं कि तुलसीदासजी ने ही बजरंग बाण भी लिखा था। आओ जानते हैं कि बजरंग बाण का पाठ क्यों करना चाहिए और क्या रखना चाहिए सावधानी।
कहते हैं कि गोस्वामी तुलसीदास पर काशी में किसी तांत्रिक ने मारण मंत्र का प्रयोग किया था। तब तुलसीदास जी के शरीर पर फोड़े निक आए थे। इसके बाद तुलसीदास जी ने बजरंग बाण का पाठ पढ़कर हनुमान जी से गुहार लगाई थी। बजरंग बाण के पाठ से एक दिन में सारे फोड़े ठीक हो गए थे। तभी से माजा जाता है कि यह पाठ शत्रुओं पर अचूक वार करता है।
1. क्यों करते हैं बजरंग बाण का पाठ? : बहुत से व्यक्ति अपने कार्य या व्यवहार से लोगों को रुष्ट कर देते हैं, इससे उनके शत्रु बढ़ जाते हैं। कुछ लोगों को स्पष्ट बोलने की आदत होती है जिसके कारण उनके गुप्त शत्रु भी होते हैं। यह भी हो सकता है कि आप सभी तरह से अच्छे हैं फिर भी आपकी तरक्की से लोग जलते हो और आपके विरुद्ध षड्यंत्र रचते हो। ऐसे समय में यदि आप सच्चे हैं तो बजरंग बाण का पाठ आपको बचाता है और शत्रुओं को दंड देता है।
2. सच्चे और पवित्र लोग ही करें इसका पाठ : बजरंग बाण से शत्रु को उसके किए की सजा मिल जाती है, लेकिन इसका पाठ एक जगह बैठकर अनुष्ठानपूर्वक 21 दिन तक करना चाहिए और हमेशा सच्चाई के मार्ग पर चलने का संकल्प लेना चाहिए, क्योंकि हनुमानजी सिर्फ सच्चे और पवित्र लोगों का ही साथ देते हैं। 21 दिन में तुरंत फल मिलता है। कभी किसी का बुरा करने की कामना के साथ बजरंग बाण का पाठ नहीं करना चाहिए। किसी भी अनैतिक कार्य की पूर्ति के लिए या फिर किसी से विवाद की स्थिति में विजय पाने के लिए बजरंग बाण का पाठ नहीं करना चाहिए। कर्म करना जीवन में बहुत आवश्यक होता है इसलिए बिना प्रयास के ही किसी कार्य में सफलता पाने के उद्देश्य से बजरंग बाण का पाठ न करें। धन, ऐश्वर्य या किसी भी भौतिक इच्छा की पूर्ति के लिए बजरंग बाण का पाठ नहीं करना चाहिए।
3. सावधानी : बजरंग बाण के बारे में कहा जाता है कि इसका प्रयोग हर कहीं, हर किसी को नहीं करना चाहिए। जब व्यक्ति घोर संकट में हो तब ही इसका प्रयोग करना चाहिये। प्रयोग करने के पूर्व इसे सिद्ध करना होता है। इसका प्रयोग करते वक्त सावधानी रखना चाहिए। किसी भी प्रकार की त्रुटि नहीं होना चाहिए। जितनी बार बजरंग बाण पाठ का संकल्प लें, उतनी बार रुद्राक्ष की माला से पाठ करें। बजरंग का बाण पाठ करते समय ध्यान रखें कि शब्दों का उच्चारण साफ और स्पष्ट होना चाहिए। अगर आप किसी विशेष मनोकामना की पूर्ति के लिए बजरंग बाण का पाठ कर रहे हैं तो कम से कम 41 दिनों तक यह पाठ नियमपूर्वक करें। आपको जितने दिन तक बजरंग बाण का पाठ करना हो उतने दिनों में ब्रह्मचर्य का पूर्णतया पालन करना जरूरी है। जितने दिन भी आपको बजरंग बाण का पाठ करना हो उतने दिनों तक किसी प्रकार का नशा या तामसिक चीजों का सेवन भूलकर भी नहीं करना चाहिए।
4. विधिवत रूप से करें पाठ : बजरंग बाण का पाठ करके के लिए हनुमानजी के चित्र या मूर्ति के समक्ष कुशासन (एक विशेष प्रकार की घास से बना आसन) पर बैठकर विधिवत उनकी पूजा अर्चना करने के बाद इसका पाठ करना चाहिए।
5. कब करें ये पाठ : बजरंग बाण का पाठ अक्सर शनिवार को ही किया जाता है, परंतु मंगलवार को भी इसका पाठ कर सकते हैं।
6. पाठ के पूर्व क्या करें : बजरंग बाण का पाठ करने के पूर्व संकल्प अवश्य लें कि आपका कार्य जब भी होगा, हनुमानजी के निमित्त नियमित कुछ भी करते रहेंगे। इसके अलावा रामजी की स्तुति पढ़ें और फिर विधिवत पूजा के बाद पाठ करें। पाठ पूर्ण हो जाने के बाद भगवान राम का स्मरण और कीर्तन करें।
7. घी का दीप जलाएं : पाठ के पूर्व घी का दीपक चलाएं जिसमें पांच बत्ती हो। इसी के सात गुग्गल की सुगंध भी फैलाएं।
8. अर्पित करें ये सामग्री : हनुमानजी को चमेली का तेल, गुड़, चना, जनेऊ, पान का बिड़ा आदि अर्पित करें। चूरमा, लड्डू और अन्य मौसमी फल भी अर्पित कर सकते हैं।
9. शनि, राहु-केतु से मिलती है मुक्ति : घटना-दुर्घटना को राहु-केतु और शनि अंजाम देते हैं। जैसे अचानक आग लग जाना, आपकी गाड़ी का एक्सिडेंट हो जाता या किसी मुसिबत का अचानक आ जाना। हनुमानजी आपको सभी तरह की घटना और दुर्घटना से बचा लेते हैं। इसके लिए आप सदा उनकी शरण में रहकर प्रतिदिन बजरंग बाण पाठ कर सकते हैं।
10. मंगल दोष से मुक्ति : यदि किसी की कुंडली में मांगलिक दोष है जिसके कारण विवाह नहीं हो पा रहा है या विवाह होने के बाद वैवाहिक जीवन में संकट पैदा हो रहा है तो उसे नियमित रूप से मंगलवार के दिन बजरंग बाण का पाठ करना चाहिए। अगर नियमपूर्वक निष्ठा के साथ बजरंग बाण का पाठ किया जाए, तो इससे मांगलिक दोष का निवारण जल्द हो सकता है।
बजरंग बाण ध्यान
श्रीराम अतुलित बलधामं हेमशैलाभदेहं।
दनुज वन कृशानुं, ज्ञानिनामग्रगण्यम्।।
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं।
रघुपति प्रियभक्तं वातजातं नमामि।।
दोहा
निश्चय प्रेम प्रतीति ते, विनय करैं सनमान।
तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करैं हनुमान।।
चौपाईजय हनुमन्त सन्त हितकारी।
सुनि लीजै प्रभु अरज हमारी।।
जन के काज विलम्ब न कीजै।
आतुर दौरि महा सुख दीजै।।
जैसे कूदि सिन्धु वहि पारा।
सुरसा बदन पैठि विस्तारा।।
आगे जाय लंकिनी रोका।
मारेहु लात गई सुर लोका।।
जाय विभीषण को सुख दीन्हा।
सीता निरखि परम पद लीन्हा।।
बाग उजारि सिन्धु मंह बोरा।
अति आतुर यम कातर तोरा।।
अक्षय कुमार को मारि संहारा।
लूम लपेटि लंक को जारा।।
लाह समान लंक जरि गई।
जै जै धुनि सुर पुर में भई।।
अब विलंब केहि कारण स्वामी।
कृपा करहु प्रभु अन्तर्यामी।।
जय जय लक्ष्मण प्राण के दाता।
आतुर होई दुख करहु निपाता।।
जै गिरधर जै जै सुख सागर।
सुर समूह समरथ भट नागर।।
ॐ हनु-हनु-हनु हनुमंत हठीले।
वैरहिं मारू बज्र सम कीलै।।
गदा बज्र तै बैरिहीं मारौ।
महाराज निज दास उबारों।।
सुनि हंकार हुंकार दै धावो।
बज्र गदा हनि विलम्ब न लावो।।
ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं हनुमंत कपीसा।
ॐ हुँ हुँ हुँ हनु अरि उर शीसा।।
सत्य होहु हरि सत्य पाय कै।
राम दुत धरू मारू धाई कै।।
जै हनुमन्त अनन्त अगाधा।
दुःख पावत जन केहि अपराधा।।
पूजा जप तप नेम अचारा।
नहिं जानत है दास तुम्हारा।।
वन उपवन जल-थल गृह माहीं।
तुम्हरे बल हम डरपत नाहीं।।
पाँय परौं कर जोरि मनावौं।
अपने काज लागि गुण गावौं।।
जै अंजनी कुमार बलवन्ता।
शंकर स्वयं वीर हनुमंता।।
बदन कराल दनुज कुल घालक।
भूत पिशाच प्रेत उर शालक।।
भूत प्रेत पिशाच निशाचर।
अग्नि बैताल वीर मारी मर।।
इन्हहिं मारू, तोंहि शमथ रामकी।
राखु नाथ मर्याद नाम की।।
जनक सुता पति दास कहाओ।
ताकी शपथ विलम्ब न लाओ।।
जय जय जय ध्वनि होत अकाशा।
सुमिरत होत सुसह दुःख नाशा।।
उठु-उठु चल तोहि राम दुहाई।
पांय परौं कर जोरि मनाई।।
ॐ चं चं चं चं चपल चलन्ता।
ॐ हनु हनु हनु हनु हनु हनुमंता।।
ॐ हं हं हांक देत कपि चंचल।
ॐ सं सं सहमि पराने खल दल।।
अपने जन को कस न उबारौ।
सुमिरत होत आनन्द हमारौ।।
ताते विनती करौं पुकारी।
हरहु सकल दुःख विपति हमारी।।
ऐसौ बल प्रभाव प्रभु तोरा।
कस न हरहु दुःख संकट मोरा।।
हे बजरंग, बाण सम धावौ।
मेटि सकल दुःख दरस दिखावौ।।
हे कपिराज काज कब ऐहौ।
अवसर चूकि अन्त पछतैहौ।।
जन की लाज जात ऐहि बारा।
धावहु हे कपि पवन कुमारा।।
जयति जयति जै जै हनुमाना।
जयति जयति गुण ज्ञान निधाना।।
जयति जयति जै जै कपिराई।
जयति जयति जै जै सुखदाई।।
जयति जयति जै राम पियारे।
जयति जयति जै सिया दुलारे।।
जयति जयति मुद मंगलदाता।
जयति जयति त्रिभुवन विख्याता।।
ऐहि प्रकार गावत गुण शेषा।
पावत पार नहीं लवलेषा।।
राम रूप सर्वत्र समाना।
देखत रहत सदा हर्षाना।।
विधि शारदा सहित दिनराती।
गावत कपि के गुन बहु भांति।।
तुम सम नहीं जगत बलवाना।
करि विचार देखउं विधि नाना।।
यह जिय जानि शरण तब आई।
ताते विनय करौं चित लाई।।
सुनि कपि आरत वचन हमारे।
मेटहु सकल दुःख भ्रम भारे।।
एहि प्रकार विनती कपि केरी।
जो जन करै लहै सुख ढेरी।।
याके पढ़त वीर हनुमाना।
धावत बाण तुल्य बनवाना।।
मेटत आए दुःख क्षण माहिं।
दै दर्शन रघुपति ढिग जाहीं।।
पाठ करै बजरंग बाण की।
हनुमत रक्षा करै प्राण की।।
डीठ, मूठ, टोनादिक नासै।
परकृत यंत्र मंत्र नहीं त्रासे।।
भैरवादि सुर करै मिताई।
आयुस मानि करै सेवकाई।।
प्रण कर पाठ करें मन लाई।
अल्प-मृत्यु ग्रह दोष नसाई।।
आवृत ग्यारह प्रतिदिन जापै।
ताकी छांह काल नहिं चापै।।
दै गूगुल की धूप हमेशा।
करै पाठ तन मिटै कलेषा।।
यह बजरंग बाण जेहि मारे।
ताहि कहौ फिर कौन उबारे।।
शत्रु समूह मिटै सब आपै।
देखत ताहि सुरासुर कांपै।।
तेज प्रताप बुद्धि अधिकाई।
रहै सदा कपिराज सहाई।।
दोहा
प्रेम प्रतीतिहिं कपि भजै। सदा धरैं उर ध्यान।।
तेहि के कारज तुरत ही, सिद्ध करैं हनुमान।।