एजेंसी/ बीजिंग : मंगलवार को राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी चीन पहुंचे, वहां उन्होने चीन के शीर्ष नेताओं से मुलाकात की। वहां उऩ्होने कहा कि भारत का मकसद दोनों देशों के बीच के मतभेदों को खत्म करना और समझौते वाले क्षेत्रों का विस्तार करना है। राष्ट्रपति ने अपने चार दिवसीय चीनी यात्रा की शुरुआत औद्दोगिक शहर गवांग्झाऊ से की।
मतभेदों को खत्म करने की बात करते हुए उन्होने कहा कि यही भारतीय कूटनीति का सिद्धांत है। राष्ट्रपति ने चीन में रहने वाले भारतीय समुदाय को भी संबोधित किया। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र, विश्व बैंक, आईएमएफ और ब्रिक्स जैसे बहुपक्षीय मंचों पर भारत और चीन के बीच बढ़ते सहयोग की मिसाल दी।
उन्होंने कहा कि दोनों देशों ने इन संस्थाओं में साथ मिलकर काम किया है। आगे जैश-ए-मोहम्मद का सरगना मसूद अजहर औऱ एऩएसजी में सदस्यता जैसे मसले पर बात हो सकती है। राष्ट्रपति के तौर पर अपनी पहली यात्रा के तहत चीन पहुंचे मुखर्जी ने कहा कि कुछ दशक पहले वाणिज्य मंत्री के तौर पर उन्होंने हैरानी जताई थी कि विश्व व्यापार संगठन चीन के बगैर कैसे काम कर सकता है।
उन्होंने कहा कि चीन के बगैर डब्ल्यूटीओ नहीं हो सकता। हम एक दूसरे के साथ निकट सहयोग के साथ काम करते हैं। अगले माह दक्षिण कोरिया में होने वाले परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह के संदर्भ में होने वाली बैठक में नई दिल्ली अपना रुख स्पष्ट कर सकता है।
मुखर्जी ने बताया कि चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और पीएम नरेंद्र मोदी इस साल होने वाले जी-20 शिखर सम्मेलन से हटकर एक-दूसरे से बात करेंगे। मुखर्जी ने कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था बीते एक दशक में स्थिरता के साथ आगे बढ़ी है। अब यह 7.6 फीसदी की दर से बढ़ रही है।
उन्होंने कहा कि अगर दोनों देशों के 2.5 अरब लोग साथ मिलकर काम करें। अगर हम अपनी गतिविधियों में सहयोग करते हैं और विविध बनाते हैं तो हमारे पास क्षमता है। आगे उन्होने बताया कि दोनों देशों के बीच वर्ष 2000 में व्यापार 2.9 अरब डॉलर का था, जो कि अब बढ़कर 71 अरब डॉलर का हो गया है।