सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को मलयालम उपन्यास मीशा के प्रकाशन पर रोक की मांग खारिज कर दी। कोर्ट ने कहा लेखक की कल्पनाशीलता बाधित नहीं की जा सकती। किताब के कुछ हिस्सों से बनी धारणा पर कोर्ट आदेश नहीं दे सकता। उपन्यास में हिन्दू धर्म के लिए अपमानजनक बातें होने के आधार पर चुनौती दी गई थी।
पिछले माह सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ‘मीशा’ के कुछ पैराग्राफ को लेकर आपत्ति जताई गई थी। मामले की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता एन. राधाकृष्णन के वकील गोपाल शंकरनारायण ने कोर्ट में दलील दी कि उपन्यास ‘मीशा’ के कुछ पैराग्राफ आपत्तिजनक हैं, क्योंकि उसमें हिंदू और हिंदू पुजारी का अपमान किया गया है।
याचिकाकर्ता के मुताबिक केरल सरकार की ओर से उपन्यास के ऑनलाइन प्रकाशन पर रोक लगाने को लेकर कोई उचित कदम नहीं उठाए गए हैं। बता दें कि उपन्यास पर विवाद के बाद इसका प्रकाशन रोक दिया गया था, लेकिन बाद में इसे ऑनलाइन माध्यम से कई चरणों में रिलीज किया गया।