पूरे 50 साल तक इसके सड़क मार्ग के ऊपरी हिस्से से चलती रहीं ट्रेनें बाद में अलग किया गया रेलवे पुल

शुक्लागंज का पुराना गंगापुल…कितने लोग जानते हैं कि इस पुल के ऊपर से कभी ट्रेनें दौड़ा करती थीं। आपको भी यह जान कर आश्चर्य हो रहा होगा, लेकिन ये सच है। 10-20 बरस नहीं बल्कि पूरे 50 साल तक इस पुल के ऊपरी हिस्से से ट्रेनें और नीचे से अन्य वाहन गुजरते रहे। बाद में जब उन्नाव और कानपुर के बीच सड़क और ट्रेन यातायात बढ़ा तो ट्रेनों के लिए अलग से पुल बनवाया गया और पुराने पुल के दोनों हिस्सों पर सड़क यातायात की व्यवस्था कर दी गई।

इतिहास के आईने से

आज से 144 साल पहले कानपुर से शुक्लागंज को जोडऩे के लिए अंग्रेजों ने पुल का निर्माण शुरू किया। अवध एंड रुहेलखंड कंपनी लिमिटेड को इस पुल के निर्माण का ठेका दिया गया। पुल की डिजाइन जेएम हेपोल ने बनाई थी। निर्माण कराने वाले रेजीडेंट इंजीनियर एसबी न्यूटन ने असिस्टेंट इंजीनियर ई वेडगार्ड के साथ मिलकर इसे तैयार किया था। तब चीफ इंजीनियर टी लोवेल थे। यह पुल दो खंडों में बना था। नीचे लकड़ी का पुल था, जिससे हल्के वाहन और पैदल यात्री गुजरते थे और ऊपर जिस सड़क पर अब कारें और दूसरे वाहन चलते थे, वहां नैरो गैज का रेलवे ट्रैक था। 14 जुलाई 1875 को पहले नीचे वाला पैदल पुल खुला और दूसरे दिन रेल पुल से ट्रेनों का आवागमन शुरू हुआ। इस पुल की लंबाई करीब 800 मीटर है।

पहले था सिर्फ सिंगल रेलवे ट्रैक

इतिहासकार अजय कुमार बताते हैं कि सड़क वाले पुल पर धीरे-धीरे यातायात बढऩे लगा और ट्रेनों की संख्या भी बढ़ी। चूंकि सिंगल रेल ट्रैक था, ऐसे में एक अलग रेलवे पुल की जरूरत महसूस हुई। 1910 में पुराना गंगापुल के समानांतर एक रेलवे पुल का निर्माण किया गया। यह 814 मीटर लंबा है। कुछ दिनों तक दोनों पुलों से ट्रेनों का आवागमन हुआ, लेकिन वर्ष 1925 में रेलवे ने पुराना गंगा पुल राज्य सरकार को सौंप दिया, जिसके बाद पुराना गंगा पुल लोक निर्माण विभाग के अधीन आ गया। रेलवे ट्रैक को हटाकर इस पुल पर भी सड़क बना दी गई तो वाहन दौडऩे लगे। तब से उसी स्थिति में सड़क और ट्रेन यातायात का संचालन हो रहा है।

गंगा के दोनों किनारे पर था हाल्ट

गंगा के एक ओर शुक्लागंज में कानपुर पुल बायां किनारा या गंगाघाट रेलवे स्टेशन था तो इस पार भी एक रेलवे स्टेशन बना था। इसकी कोई सटीक जानकारी तो नहीं है, लेकिन ऐसा माना जा रहा है कि गंगाघाट की तरह इस पार भी ट्रेनें रुकती थीं। केंद्रीय विद्यालय व ओईएफ स्टेडियम के सामने आज भी ईंटों का बना एक लंबे चबूतरे का ढांचा देखा जा सकता है। बुजुर्ग बताते हैं कि यहां कभी स्टेशन था और ट्रेनें रुकने पर इस चबूतरे का प्रयोग प्लेटफार्म के रूप में किया जाता था। पैदल पुल मार्ग से प्लेटफार्म पर चढऩे के लिए सीढिय़ां भी थीं, जो अब मिट्टी में दब चुकी हैं।

कई बार हो चुकी है मरम्मत

पुराना गंगा पुल हो या रेलवे पुल दोनों पुलों की उम्र सौ साल से ऊपर हो चुकी है। समय-समय पर इनकी मरम्मत भी होती रही है। पुराना गंगापुल का ऊपरी सड़क मार्ग का पिछली बार जीर्णोद्धार वर्ष 2013 में हुआ था। पुल की मरम्मत के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और लोक निर्माण मंत्री शिवपाल यादव ने 18 अक्टूबर को लोकार्पण किया था। बाद में 8 जुलाई 2019 को उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने खस्ताहाल हो चुके निचले पैदल पुल के क्षतिग्रस्त लकड़ी के पुल का जीर्णोद्धार कराया। लकड़ी के पुल पर बिटुमिन के साथ कंक्रीट की लेयर बिछाई गई है।

2016 में किया गया दोबारा ठीक

दूसरी ओर रेलवे पुल का जीर्णोद्धार पहले वर्ष 1990 में किया गया और वर्ष 2016 में दोबारा इसे ठीक किया गया। रेलवे ने इसकी मरम्मत के लिए 9 अप्रैल 2016 से तीन दिनों का मेगा ब्लॉक लिया था। इसमें रेलवे गंगा पुल पर जर्जर अवस्था में पहुंच चुके कई टर्फ (गाटर) बदले गए। इस पुल में करीब एक हजार से ज्यादा टर्फ लगे हैं, जिसे अंग्रेजों ने लगवाया था। वर्ष 1993-94 में नैरोगेज लाइन को ब्राडगेज में परिवर्तित किया गया।

पूरे दिन लगती थी झाड़ू

पुराना गंगा पुल लोक निर्माण विभाग की संपत्ति है। वर्ष 1925 में रेलवे से हस्तांतरण के बाद विभाग ने पुल की देखरेख के लिए बाकायदा एक भारी भरकम टीम तैनात की थी। पुल की देखरेख में लगे कर्मचारियों के दर्जन भर परिवार आज भी आसपास ही रहते हैं। इन परिवारों के बुजुर्गों ने बताया कि पुराने जमाने में आठ दस लोग तो पूरे दिन इस पुल पर झाड़ू लगाते थे। पुल के दोनों ओर द्वार बने थे और दोनों ओर कमरे भी थे। यहां से पूरे क्षेत्र पर नजर रखी जाती थी।

यादगार बने शिलालेख

पुराना गंगा पुल पर दो पुराने शिलालेख आज भी लगे हैं। एक शिलालेख कानपुर से प्रवेश द्वार पर गंगा की ओर लगा है, जिसमें लिखा है कि पुल से यातायात 15 जुलाई 1875 से शुरू हुआ था। इसमें यह उल्लेख भी है कि पुल का निर्माण किस कंपनी ने किया और डिजाइन व निर्माण में कौन-कौन से इंजीनियर शामिल रहे।

पुल के नीचे दफन है लोहे ही नाव

स्थानीय लोगों ने पुराना गंगा पुल के नीचे लोहे की नाव भी दिखाई। उन्होंने बताया कि अंग्रेज इस भारी भरकम नाव का प्रयोग करते थे। वक्त बीतने के साथ, इसमें मिट्टी भर गई और लोग यहां अस्थायी घर बनाकर रहने भी लगे।

पुरानी यादें

मेरी उम्र लगभग 100 वर्ष है। मेरे पति हौसला प्रसाद यादव मूलरूप से सुल्तानपुर के रहने वाले थे, जो कि लोकनिर्माण विभाग में नौकरी लगने के बाद कानपुर आकर बस गए थे। पति की मौत के बाद मैने भी विभाग को सेवाएं दी। मुझे अच्छी तरह से याद है कि घर के बुजुर्ग बताया करते थे कि पुराना गंगा पुल के ऊपरी हिस्से में ट्रेनें चला करती थीं। लोहे के गाटरों पर मोटे-मोटे पत्थरों की स्लैब बिछाई गई थी। छोटी लाइन थी, जिसे बाद में बंद कर दिया गया। तब पुल की सफाई को लेकर बड़ा दबाव रहता था। हर समय आठ-दस कर्मचारी झाड़ू लेकर लगे ही रहते थे।

-फूलकली

मेरी उम्र इस समय 59 साल है। 13 साल का था, तब पानी पिलाने के लिए काम पर आया था। अब वर्क एजेंट के पद पर तैनात हूं। मेरे पिता स्व.नन्हकू भी पुल पर चौकीदारी करते थे। पुराने जमाने में पुराना गंगा पुल की शान-औ-शौकत देखते बनती थी। दोनों खंडों में दिन भर सफाई होती थी। मेरे जैसे करीब करीब दर्जन भर लोग आज भी पुल के आसपास ही रहते हैं। यह वह परिवार हैं, जिनके स्वजनों ने इस पुल की सेवा में अपना जीवन लगा दिया। लोग कहते हैं कि पुल पुराना और कमजोर हो गया है, लेकिन यह इतना मजबूत है कि बेहतर रखरखाव से इसे अभी सौ साल और चला सकते हैं।

-शिव प्रसाद यादव

रेल के पुल ने फैलाई थी कारोबार की बाहें

कानपुर से कोलकाता तक कारोबारी गतिविधियों को जोडऩे के लिए रेल पुल बना था। नाव से होने वाले कारोबार को गति देने के लिए बने इस रेल पुल से न केवल सेना का आवागमन बढ़ा था बल्कि गल्ला से लेकर अन्य कारोबार को भी बढ़ावा दिया था। रेल पुल बनने के बाद अवध एवं आगरा प्रांत में कानपुर में एक तरीके से आर्थिक राजधानी बन गया था।

लेकिन एक मत यह भी, लोहे का पुल अलग था

क्राइस्ट चर्च डिग्री कॉलेज में इतिहास विभाग के प्रोफेसर एसपी सिंह बताते हैं कि तथ्यों को देखकर यह मानना कठिन है कि पुराने गंगा पुल पर नीचे पैदल और ऊपर रेल पुल था। कानपुर में जब ट्राम चली थी, तब की लाइनें अवशेष के रूप में आज भी दिख जाती हैं। अगर पुराना गंगा पुल पर रेल लाइन थी, तो उसके भी अवशेष होने चाहिए। अनवरगंज से पहली ट्रेन चली थी। वह कौन सा ट्रैक था, जिससे अनवरगंज से पुराने गंगा पुल पर ट्रेनें जाती थीं। शुक्लागंज में भी पुरानी लाइन के अवशेष नहीं मिलते हैं। हालांकि शिलान्यास का पत्थर पुराने पुल पर लगा है लेकिन अधिक संभावना इस बात की है कि रेलवे पुल और पुराना गंगा पुल का पैदल पुल, दोनों एक समय काल में बने हों और उनका पत्थर एक ही स्थान पर लगा दिया गया हो। इसके साक्ष्य भी मिलते हैं, क्योंकि दोनों पुलों में एक ही तरह की ईंट का प्रयोग किया गया है। लोगों के मन में धारणा है कि नीचे पैदल पुल था और ऊपर रेल पुल, इसके पीछे भी कारण है। तब अस्थायी पांटून पुल बनाया जाता था। रेलवे पुल होने के नाते उससे सहारा लेने के लिए उसी के नीचे ये पांटून पुल बनते थे। समय काल बीतने पर इस याद को पुराने गंगा पुल के साथ जोड़ दिया गया। इसमें इस गीत की बड़ी भूमिका रही

कानपुर कनकैया

नीचे बहती गंगा मैया

ऊपर चले रेल का पहिया…

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