कलाकार: श्रद्धा कपूर, अंकिता लोखंडे, दिशा पाटनी, टाइगर श्रॉफ, रितेश देशमुख और जमील खौरी आदि।
निर्देशक: अहमद खान
निर्माता: फॉक्स स्टार स्टूडियोज और साजिद नाडियाडवाला
रेटिंग: **
फॉक्स स्टार स्टूडियोज की कमान भले अब डिजनी के हाथों में आ गई हो लेकिन इस फेरबदल के पहले कंपनी में फिक्स हो चुकी फिल्मों का बॉक्स ऑफिस पर पहुंचना जारी है। साजिद नाडियाडवाला ने एक कहानी सोची, फरहाद सामजी ने उस पर एक बेसिर पैर की पटकथा लिख दी और फॉक्स स्टार ने साजिद की चाभी से अपनी तिजोरी खोल दी, बस। बागी सीरीज की ये तीसरी फिल्म बस इतनी ही है। कोरियोग्राफर से फिल्म निर्देशक बने अहमद खान भले अपने इंटरव्यू में कह चुके हों कि उनके रचे एक्शन में जान है, लेकिन एक्शन का दर्शक क्या करें, जब फिल्म में ही जान नहीं है।
भारतीय संस्कृति में बड़े भाई का जो दर्जा रहा है वह हिंदी सिनेमा ने भी अब तक अपनाया ही है। यहां इसका उल्टा है। बड़ा भाई हो भले पुलिस अफसर लेकिन मुसीबत आती है तो छोटा भाई बचाने आता है। बात दर्शकों को हजम नहीं होती। अपनी धरती पर तो छोटा भाई बड़े को बचाता ही रहता है। वह सीरिया भी पहुंच जाता है, आतंकवादियों की पूरी फौज से लोहा लेने। भाई भाई के प्रेम पर हिंदी सिनेमा में सैकड़ों फिल्में बनी हैं, लेकिन ये फिल्म किसी गिनती में नहीं आती। रणवीर प्रताप और विक्रम प्रताप की इस कहानी की नायिका का नाम लेखकों की टीम ने सिया रखा है, क्यों वही जाने। क्योंकि, सिया फिल्म में न भी हो तो भी कहानी पर कोई खास फर्क पड़ता नहीं है।
भारतीय संस्कृति में बड़े भाई का जो दर्जा रहा है वह हिंदी सिनेमा ने भी अब तक अपनाया ही है। यहां इसका उल्टा है। बड़ा भाई हो भले पुलिस अफसर लेकिन मुसीबत आती है तो छोटा भाई बचाने आता है। बात दर्शकों को हजम नहीं होती। अपनी धरती पर तो छोटा भाई बड़े को बचाता ही रहता है। वह सीरिया भी पहुंच जाता है, आतंकवादियों की पूरी फौज से लोहा लेने। भाई भाई के प्रेम पर हिंदी सिनेमा में सैकड़ों फिल्में बनी हैं, लेकिन ये फिल्म किसी गिनती में नहीं आती। रणवीर प्रताप और विक्रम प्रताप की इस कहानी की नायिका का नाम लेखकों की टीम ने सिया रखा है, क्यों वही जाने। क्योंकि, सिया फिल्म में न भी हो तो भी कहानी पर कोई खास फर्क पड़ता नहीं है।
फिल्म की सबसे कमजोर कड़ी इसकी कहानी है जो आठ साल पहले रिलीज हुई तमिल फिल्म वेट्टाई से ली गई है। साजिद ने इस देसी कहानी का एक सिरा लेकर जाकर सीरिया से बांधा और वहीं फिल्म का लोकल कनेक्ट खत्म हो गया। निर्देशन के मामले में भी फिल्म काफी कमजोर है। अहमद खान फिल्म के किसी भी किरदार को कायदे से गढ़ नहीं पाए हैं। टाइगर श्रॉफ पूरी फिल्म में इतना चीखते चिल्लाते हैं कि इस दुनिया के लगते ही नहीं। रितेश देशमुख फिल्म की कथा प्रक्रिया में उत्प्रेरक के तौर पर रखे गए और बस उतना ही काम करते हैं। श्रद्धा कपूर का इस तरह के रोल करना उनके करियर को कोई फायदा पहुंचाता नहीं दिखता। हां, जमील खौरी की मौजूदगी परदे पर खौफ कायम करने में कामयाब होती है।
लचर कहानी, निशाने से भटके निर्देशन के अलावा फिल्म का गीत-संगीत भी दर्शकों को बोर करता है। रीमिक्स गाने डाल डालकर फिल्म निर्माता भले यूट्यूब पर इन गानों के व्यूज पा लेते हैं लेकिन फिल्म में ये गाने अब दर्शकों को खटकने लगे हैं। फिल्म के एक्शन सीन भी अहमद खान ने ही गढ़े हैं। बस यही एक काम वह कायदे से कर पाए हैं हालांकि ज्यादातर एक्शन सीन्स किसी न किसी हॉलीवुड फिल्म की याद दिलाते रहते हैं। अमर उजाला मूवी रिव्यू में फिल्म बागी 3 को मिलते हैं दो स्टार। फिल्म सिर्फ और सिर्फ उन लोगों के लिए हैं जो टाइगर श्रॉफ के भक्त हैं।