पितृलोक सचमुच होता है, क्या है उसकी हकीकत, जानिए रहस्यमयी ज्ञान

भारतीय धर्म और संस्कृति में स्वर्ग, नरक और पितृलोक आदि लोकों की धारणा या सिद्धांत अन्य पश्चिमी धर्मों से भिन्न है। यह सारे लोग आत्मा की कर्म और भाव की गति से जुड़े हैं। वेद से अलग पुराणों में इस संबंध में भिन्न सिद्धांत है जो वैदिक सिद्धांत का ही विस्तार माना जाता है। आओ जानते हैं इस संबंध में महत्वपूर्ण जानकारी।

पहले समझे गति : जब भी कोई देह छोड़ता है तो वह अपने सूक्ष्म शरीर से मन, वचन और कर्म से निर्मित चित्त वृत्ति के अनुसार 1. उर्ध्व गति, 2. स्थिर गति और 3. अधोगति प्राप्त करता है। मतबल नीचे या उपर उठता है या वहीं पड़ा रहता है। नीचे गिरता है तो नीचे के लोक में और उपर उठता है तो उपर के लोक में पहुंच जाता है। स्थिर रहना संभव है तो वह निंद्रा में या प्रेत योनि में पड़ा रहता है। उक्त श्रेणियों को दो भागों में विभक्त किया गया है गति और अगति।

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