पितृगण कौन हैं, घर के पितृ नाराज होने के लक्षण और उपाय क्या हैं जानिए

आखिर ये पितृदोष है क्या? पितृदोष शांति के सरल उपाय। पितृ या पितृगण कौन हैं? आपकी जिज्ञासा को शांत करती विस्तृत प्रस्तुति।
पितृगण हमारे पूर्वज हैं जिनका ऋण हमारे ऊपर है, क्योंकि उन्होंने कोई-न-कोई उपकार हमारे जीवन के लिए किया है। मनुष्य लोक से ऊपर पितृलोक है, पितृलोक के ऊपर सूर्यलोक है एवं इससे भी ऊपर स्वर्गलोक है।
वहां से आगे यदि और अधिक पुण्य हैं तो आत्मा सूर्यलोक को पार कर स्वर्गलोक की तरफ चली जाती है, लेकिन करोड़ों में एकआध आत्मा ही ऐसी होती है, जो परमात्मा में समाहित होती है जिसे दोबारा जन्म नहीं लेना पड़ता। मनुष्य लोक एवं पितृलोक में बहुत सारी आत्माएं पुन: अपनी इच्छा व मोहवश अपने कुल में जन्म लेती हैं।
पितृदोष क्या होता है?
हमारे ये ही पूर्वज सूक्ष्म व्यापक शरीर से अपने परिवार को जब देखते हैं और महसूस करते हैं कि हमारे परिवार के लोग न तो हमारे प्रति श्रद्धा रखते हैं और न ही इन्हें कोई प्यार या स्नेह है और न ही किसी भी अवसर पर ये हमको याद करते हैं, न ही अपने ऋण चुकाने का प्रयास ही करते हैं तो ये आत्माएं दु:खी होकर अपने वंशजों को श्राप दे देती हैं जिसे ‘पितृदोष’ कहा जाता है।
पितृदोष एक अदृश्य बाधा है। यह बाधा पितरों द्वारा रुष्ट होने के कारण होती है। पितरों के रुष्ट होने के बहुत से कारण हो सकते हैं, जैसे आपके आचरण से, किसी परिजन द्वारा की गई गलती से, श्राद्ध आदि कर्म न करने से, अंत्येष्टि कर्म आदि में हुई किसी त्रुटि के कारण भी हो सकता है।
इसके अलावा मानसिक अवसाद, व्यापार में नुकसान, परिश्रम के अनुसार फल न मिलना, विवाह या वैवाहिक जीवन में समस्याएं, करियर में समस्याएं या संक्षिप्त में कहें तो जीवन के हर क्षेत्र में व्यक्ति और उसके परिवार को बाधाओं का सामना करना पड़ता है। पितृदोष होने पर अनुकूल ग्रहों की स्थिति, गोचर, दशाएं होने पर भी शुभ फल नहीं मिल पाते और कितना भी पूजा-पाठ व देवी-देवताओं की अर्चना की जाए, उसका शुभ फल नहीं मिल पाता।
पितृदोष दो प्रकार से प्रभावित करता है-
1. अधोगति वाले पितरों के कारण
2. उर्ध्वगति वाले पितरों के कारण
अधोगति वाले पितरों के दोषों का मुख्य कारण परिजनों द्वारा किए गए गलत आचरण की अतृप्त इच्छाएं, जायदाद के प्रति मोह और उसका गलत लोगों द्वारा उपभोग होने पर, विवाहादि में परिजनों द्वारा गलत निर्णय, परिवार के किसी प्रियजन को अकारण कष्ट देने पर पितर क्रुद्ध हो जाते हैं, परिवारजनों को श्राप दे देते हैं और अपनी शक्ति से नकारात्मक फल प्रदान करते हैं।
उर्ध्व गति वाले पितर सामान्यत: पितृदोष उत्पन्न नहीं करते, परंतु उनका किसी भी रूप में अपमान होने पर अथवा परिवार के पारंपरिक रीति-रिवाजों का निर्वहन नहीं करने पर वे पितृदोष उत्पन्न करते हैं। इनके द्वारा उत्पन्न पितृदोष से व्यक्ति की भौतिक एवं आध्यात्मिक उन्नति बिलकुल बाधित हो जाती है। फिर चाहे कितने भी प्रयास क्यों न किए जाएं, कितने भी पूजा-पाठ क्यों न किए जाएं, उनका कोई भी कार्य ये पितृदोष सफल नहीं होने देता। पितृदोष निवारण के लिए सबसे पहले यह जानना ज़रूरी होता है कि किस ग्रह के कारण और किस प्रकार का पितृदोष उत्पन्न हो रहा है?
जन्म पत्रिका और पितृदोष जन्म पत्रिका में लग्न, पंचम, अष्टम और द्वादश भाव से पितृदोष का विचार किया जाता है। पितृदोष में ग्रहों में मुख्य रूप से सूर्य, चंद्रमा, गुरु, शनि और राहू केतु की स्थितियों से पितृदोष का विचार किया जाता है। इनमें से भी गुरु, शनि और राहु की भूमिका प्रत्येक पितृदोष में महत्वपूर्ण होती है। इनमें सूर्य से पिता या पितामह, चंद्रमा से माता या मातामह, मंगल से भ्राता या भगिनी और शुक्र से पत्नी का विचार किया जाता है।
अधिकांश लोगों की जन्म पत्रिका में मुख्य रूप से चूं‍कि गुरु, शनि और राहु से पीड़ित होने पर ही पितृदोष उत्पन्न होता है इसलिए विभिन्न उपायों को करने के साथ-साथ व्यक्ति यदि पंचमुखी, सातमुखी और आठमुखी रुद्राक्ष भी धारण कर ले तो पितृदोष का निवारण शीघ्र हो जाता है। पितृदोष निवारण के लिए इन रुद्राक्षों को धारण करने के अतिरिक्त इन ग्रहों के अन्य उपाय जैसे मंत्र जप और स्तोत्रों का पाठ करना भी श्रेष्ठ होता है।
पितरों के नाराज होने के लक्षण

खाने में से बाल निकलना
बदबू या दुर्गंध : कुछ लोगों की समस्या रहती है कि उनके घर से दुर्गंध आती है।
पूर्वजों का स्वप्न में बार-बार आना
शुभ कार्य में अड़चन : शुभ अवसर पर कुछ अशुभ घटित होना पितरों की असंतुष्टि का संकेत है।
घर के किसी एक सदस्य का कुंआरा रह जाना
मकान या प्रॉपर्टी की खरीद-फरोख्त में दिक्कत आना
संतान न होना
पितृदोष की शांति के 10 उपाय
1. पिंडदान, सर्पपूजा, ब्राह्मण को गौदान, कन्यादान, कुआं, बावड़ी, तालाब आदि बनवाना, मंदिर प्रांगण में पीपल, बड़ (बरगद) आदि देववृक्ष लगवाना एवं विष्णु मंत्रों का जाप आदि करना…
2. वेदों और पुराणों में पितरों की संतुष्टि के लिए मंत्र, स्तोत्र एवं सूक्तों का वर्णन है जिसके नित्य पठन से किसी भी प्रकार की पितृ बाधा क्यों न हो, वह शांत हो जाती है। अगर नित्य पठन संभव न हो तो कम से कम प्रत्येक माह की अमावस्या और आश्विन कृष्ण पक्ष अमावस्या अर्थात पितृपक्ष में अवश्य करना चाहिए।
वैसे तो कुंडली में किस प्रकार का पितृदोष है, उस पितृदोष के प्रकार के हिसाब से पितृदोष शांति करवाना अच्छा होता है।
3. भगवान भोलेनाथ की तस्वीर या प्रतिमा के समक्ष बैठकर या घर में ही भगवान भोलेनाथ का ध्यान कर निम्न मंत्र की 1 माला नित्य जाप करने से समस्त प्रकार के पितृदोष संकट बाधा आदि शांत होकर शुभत्व की प्राप्ति होती है। मंत्र जाप प्रात: या सायंकाल कभी भी कर सकते हैं।
मंत्र : ‘ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय च धीमहि तन्नो रुद्र: प्रचोदयात।’
4. अमावस्या को पितरों के निमित्त पवित्रतापूर्वक बनाया गया भोजन तथा चावल बूरा, घी एवं 1 रोटी गाय को खिलाने से पितृदोष शांत होता है।
5. अपने माता-पिता व बुजुर्गों का सम्मान, सभी स्त्री कुल का आदर-सम्मान करने और उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति करते रहने से पितर हमेशा प्रसन्न रहते हैं।
6. पितृदोषजनित संतान कष्ट को दूर करने के लिए ‘हरिवंश पुराण’ का श्रवण करें या स्वयं नियमित रूप से पाठ करें।
7. प्रतिदिन दुर्गा सप्तशती या सुन्दरकाण्ड का पाठ करने से भी इस दोष में कमी आती है।
8. सूर्य साक्षात पिता है अत: ताम्बे के लोटे में जल भरकर उसमें लाल फूल, लाल चंदन का चूरा, रोली आदि डालकर सूर्यदेव को अर्घ्य देकर 11 बार ‘ॐ घृणि सूर्याय नम:’ मंत्र का जाप करने से पितरों की प्रसन्नता एवं उनकी ऊर्ध्व गति होती है।
9. अमावस्या वाले दिन अवश्य अपने पूर्वजों के नाम दुग्ध, चीनी, सफेद कपड़ा, दक्षिणा आदि किसी मंदिर में अथवा किसी योग्य ब्राह्मण को दान करना चाहिए।
10. पितृ पक्ष में पीपल की परिक्रमा अवश्य करें। अगर 108 परिक्रमा लगाई जाए तो पितृदोष अवश्य दूर होगा।

आत्मा जब अपने शरीर को त्यागकर सबसे पहले ऊपर उठती है तो वह पितृलोक में जाती है, जहां हमारे पूर्वज मिलते हैं। अगर उस आत्मा के अच्छे पुण्य हैं तो ये हमारे पूर्वज भी उसको प्रणाम कर अपने को धन्य मानते हैं कि इस अमुक आत्मा ने हमारे कुल में जन्म लेकर हमें धन्य किया। इसके आगे आत्मा अपने पुण्य के आधार पर सूर्यलोक की तरफ बढ़ती है।

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