पाकिस्तान के दुश्मनो ने किया राजस्थान पर बड़ा हमला

राजस्थान का सीमावर्ती इलाका आजकल टिड्डियों का दंश झेल रहा है। पाकिस्तान से लगते इन जिलों में इस बार टिड्डियों ने बड़े पैमाने पर हमला किया है, जिससे किसान बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं।

राज्य सरकार के अधिकारियों के अनुसार हमेशा की तरह इस बार भी इन टिड्डी दलों का सबसे अधिक असर पाकिस्तानी सीमा से लगते जोधपुर, जैसलमेर, बाड़मेर और बीकानेर जिलों में है। थार रेगिस्तान का यह इलाका पाकिस्तान के सिंध प्रांत के सामने पड़ता है और टिड्डी दल हवाओं के साथ इसी सीमा से होकर भारत में आते हैं।

एक टिड्डी दल में हजारों-लाखों की संख्या में टिड्डियां होती हैं और जहां भी यह पड़ाव डालता है, वहां फसलों व अन्य वनस्पतियों को साफ करता हुआ चला जाता है। राजस्थान के किसान बीते लगभग तीन दशक के सबसे बड़े टिड्डी दल हमले का सामना कर रहे हैं।
राजस्थान के 11 जिले इस हमले से प्रभावित हैं। राज्य सरकार ने प्रभावित इलाकों में विशेष गिरदावरी (नुकसान आकलन) का आदेश दिया है और अधिकारियों का कहना है कि टिड्डी दल हमला एक अंतरराष्ट्रीय समस्या है जिसका मुकाबला भी समन्वित प्रयासों से किया जा सकता है और आने वाले दिनों में भी सावधान रहने की जरूरत है।

इस संबंध में एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि बीते लगभग आठ महीने में राज्य के 11 जिलों में लगभग 3.70 लाख हेक्टेयर जमीन को उपचारित किया जा चुका है।

इसमें सबसे अधिक प्रभावित जैसलमेर जिले में दो लाख हेक्टेयर, बाड़मेर व बीकानेर में 80-80 हजार, गंगानगर जिले में पांच हजार हेक्टेयर, जालौर में 1500 हेक्टेयर, हनुमानगढ़ जिले में 800 हेक्टेयर, नागौर जिले में 500 हेक्टेयर, सिरोही और पाली में 400-400 हेक्टेयर और डूंगरपुर जिले में 50 हेक्टेयर जमीन को उपचारित किया जा चुका है।

टिड्डी नियंत्रण के लिए नोडल अधिकारी एवं कृषि विभाग में संयुक्त निदेशक (पौध संरक्षण) डॉ. सुआलाल जाट ने कहा कि इस बार पहला टिड्डी दल 21 मई 2019 को देखा गया था। उसके बाद 12 जनवरी तक लगभग 3.50 लाख हेक्टेयर जमीन को उपचारित किया चुका है।

विभाग की 54 सर्वे टीम निगरानी व नियंत्रण के काम में लगी हुई हैं और 45 माइक्रोनियर मशीनें नियंत्रण के काम में लगी हैं। 450 ट्रैक्टर स्प्रेयर के साथ काम में लगे हैं। इसके अलावा प्रभावित जिलों में किसानों के सहयोग से हर दिन 400 से 450 ट्रैक्टरों की मदद से टिड्डी दलों को भगाने की कोशिश की जाती है, ताकि वे फसलों को नुकसान नहीं पहुंचा सकें।

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