करीब पांच करोड़ साल पहले दो विशाल भू-भागों में हुई टक्कर के बाद भारतीय उपमहाद्वीप एशिया का हिस्सा बना था। इस घटना के बाद दुनियाभर के महासागरों में ऑक्सीजन की मात्र बढ़ी थी। वैज्ञानिकों का कहना है कि इस वजह से जीवन की उत्पत्ति के लिए मौजूद परिस्थितियों में सकारात्मक बदलाव हुआ था। इससे महाद्वीपों की आकृति और पृथ्वी की जलवायु में भी व्यापक परिवर्तन आया।
पानी में ऑक्सीजन की मात्र कम होना समुद्री जीवन के लिए प्रतिकूल है। भारतीय उपमहाद्वीप के एशिया से जुड़ने से पहले कई ऐसी प्राकृतिक घटनाएं हुई थीं जिनसे महासागरों में ऑक्सीजन की मात्र आश्चर्यजनक रूप से घट गई। इसके चलते कई तरह के सूक्ष्म जीवों से लेकर मछलियों और ह्वेल तक का प्राकृतिक आवास नष्ट हुआ और उन पर विलुप्ति का खतरा मंडराने लगा था। वैज्ञानिक अक्सर अपने शोध में दावा करते रहे हैं कि पानी में ऑक्सीजन की मात्र घटने से समुद्र का पारिस्थितिक तंत्र तबाह हो सकता है।
इस तरह लगाया पता- अमेरिका की प्रिंसटन यूनिवर्सिटी की एमा ने समुद्री सीपियों के अवशेषों की मदद से तीन करोड़ साल से लेकर सात करोड़ साल पहले तक समुद्र में नाइट्रोजन की मात्र का रिकॉर्ड तैयार किया। नाइट्रोजन मूलत: 15एन और 14एन के स्वरूप में पाया जाता है। समुद्र में इनके अनुपात से ऑक्सीजन के स्तर का पता लग सकता है। एमा ने समुद्री सीपियों के जीवाश्म में मौजूद नाइट्रोजन के अनुपात का अध्ययन कर प्राचीन समय में महासागरों में ऑक्सीजन की मात्र का पता लगाया। जो काफी रोचक है।
ऐसे में भारतीय महाद्वीप के एशिया में समाहित होने की घटना पृथ्वी पर जीवन के विकास के लिहाज से बहुत महत्वपूर्ण है। क्योंकि, इससे पहले पारिस्थितिकी तंत्र में हुए बदलावों के कारण पानी में ऑक्सीजन की मात्रा में आश्चर्यजनक रूप से कमी आने लगी थी। ऐसा अंदेशा था कि यदि यह प्रक्रिया ठीक नहीं हुई तो हो सकता है कई जीव विलुप्त हो जाएं, या विलुप्त होने की कगार पर पहुंच जाएं। पहले माना जाता रहा था कि पृथ्वी का तापमान बढ़ने के कारण महासागरों में ऑक्सीजन की मात्र बढ़ी थी क्योंकि ऑक्सीजन गर्म पानी में कम घुलनशील है। लेकिन अमेरिका की प्रिंसटन यूनिवर्सिटी की एमा कास्ट ने अपने अध्ययन के बाद उस मान्यता को बदल दिया है।