ब्रज की लठामार होली की बात ही निराली है, जिसमें हर चीज परंपरा के अनुसार होती है। बात हुरियारिनों की हो चाहे हुरियारों की, दोनों ही द्वापरकाल परंपरा के अनुसार ही चलते हैं। वही लट्ठ, वही ढाल वही पारंपरिक कपड़े सभी कृष्णकालीन परंपरा को जीवंत करते दिखाई पड़ते हैं। लठामार होली का रंग भी बेहद खास होता है, जो टेसू के फूलों से बनाया जाता है।
बरसाना की लठामार होली में लाडली जी मंदिर पर रसायन युक्त रंगों की फुहार नहीं छोड़ी जाती है। इसमें टेसू के फूलों से बना रंग प्रयोग में लाया जाता है। राधारानी मंदिर के सेवायत इस विशेष रंग को बनाते हैं। इस बार रंग बनाने के लिए दिल्ली से 10 कुंतल टेसू के फूल मंगाए गए हैं।
इस विशेष रंग को बनाने के लिए सबसे पहले टेसू के फूलों को पानी में भिगोया जाता है। उसके बाद फूलों का रस निकाल जाता है। निकले रस में चूने को मिलाकर ड्रमों में भर दिया जाता है। टेसू के फूलों का रंग ईको फ्रेंडली होता है। इससे किसी तरह का नुकसान नहीं होता है।
राधारानी मंदिर के सेवायतों ने बताया कि आजकल जो रंग बाजार में मिलते हैं वो मिलावटी होते हैं। किसी भी हुरियारे-हुरियारिन व श्रद्धालुओं को त्वचा संबंधित परेशानी हो सकती है, लेकिन टेसू के फूलों से बना ईको फ्रेंडली रंग से त्वचा को किसी प्रकार की हानि नहीं पहुंचती, साथी ही इसकी खुशबू से मन में ताजगी बनी रहती है।
श्रीजी मंदिर के सेवायत माधव गोस्वामी ने बताया कि इस विशेष रंग को बनाने के लिए दिल्ली से टेसू के 10 कुंतल फूल मंगाए गए हैं। टेसू के फूल से बने इस रंग को लाडली जी मंदिर में ऊपर की मंजिलों पर रख दिया जाता है। जहां आने वाले श्रद्धालुओं एवं नंदगांव के हुरियारों पर डाला जाता है।