बढ़ती महंगाई के कारण घर का खर्च चलाने के लिए आजकल पति-पत्नी दोनों नौकरी करने लगे हैं। घऱ में बुजुर्गों के न होने पर मां-बाप के काम पर चले जाने के बाद पीछे बच्चे घर में अकेले छूट जाते हैं।
ऐसे में इनके गलत संगत में पड़ने और गलत राह पर चले जाने की संभावना बढ़ जाती है। ऐसे में अगर संभव हो तो पति-पत्नी में से कोई एक कमाए और दूसरा बच्चों को संभाले तो बच्चों की परवरिश बेहतर हो सकती है।
यह कहना है कि समयपुर बादली थाने की पुलिसकर्मी सीमा ढाका का, जिन्होंने गुम हुए 76 बच्चों को दोबारा अपने परिवार से मिलाकर एक प्रशंसनीय कार्य किया है।
सीमा ढाका ने मीडिया को बताया कि पारिवारिक-सामाजिक संरचना में बदलाव के कारण बच्चों की परवरिश पर नकारात्मक असर पड़ रहा है।
भलस्वा डेरी के एक परिवार में मां-बाप दोनों ही कामकाजी थे। दोनों के काम पर चले जाने के बाद बच्चे अकेले रह जाते थे। ऐसे में परिवार की एक 13 वर्षीय लड़की मार्च 2020 में गायब हो गई। जांच में पता चला कि उसी बिल्डिंग में किराए पर रहने वाला एक युवक उसे बहला-फुसला कर अपने साथ बिहार लेकर चला गया था।
बाद में युवक ने एक कांफ्रेंस के जरिए लड़की के मां-बाप से उसकी बात कराई और बताया कि वह उससे विवाह कर चुका है। लेकिन पता चला कि युवक ने लड़की को बेहद तंग हालात में बिहार के किसी गांव में छोड़ दिया था और स्वयं दिल्ली आकर दूसरे इलाके में रहने और काम करने लगा था।
परिवार ने सीमा ढाका को संपर्क कर इस घटना की जानकारी दी। उन्होंने कस्टमर केयर की लड़की बनकर युवक को बताया कि उसका मोबाइल नंबर बंद होने वाला है। मोबाइल नंबर चालू रखने के लिए उसे अपनी आईडी जमा करानी होगी।
यह सुनकर युवक उनके झांसे में आ गया और अपनी आईडी देने के लिए सहमत हो गया। बताए गये पते पर आते ही पुलिस ने युवक को दबोच लिया और उसकी निशानदेही पर नाबालिग युवती को बरामद कर लिया।
सीमा ढाका बताती हैं कि अनेक बच्चों की खोज में उन्हें अनेक राज्यों की यात्रा करनी पड़ी। अकसर शिकायतकर्ता परिवार अपना ही पता बदल लेते थे, उनका नया पता खोजने में बड़ी मुश्किल आती है जिससे काफी समय खराब होता है। लेकिन उनके कार्यकाल में अनेक ऐसे अवसर भी आए जब दो-तीन घंटे में ही उन्होंने बच्चों को बदमाशों से सकुशल बरामद करा लिया।
इसी वर्ष लॉकडाउन के दौरान मार्च 2020 में एक तीन साल का बच्चा अंश (बदला हुआ नाम) गायब हो गया। बच्चे के मां-बाप से पूछताछ में पता चला कि मां प्रिया (बदला हुआ नाम) पास की ही एक फैक्ट्री में काम करती थी, जहां उसका प्रिंस नाम के एक युवक से करीबी संबंध बन गया था। दोनों की मुलाकात फैक्ट्री में ही होती थी। लेकिन लॉकडाउन के कारण फैक्ट्री बंद हो गई और उनका मिलना बंद हो गया।
इसके बाद प्रिंस प्रिया से मिल नहीं पा रहा था। इसके लिए उसने तरह-तरह से दबाव डाला लेकिन प्रिया का घर से निकलना संभव नहीं हो पा रहा था। इसी बीच प्रिंस उससे मिलने उसके घर आया। जैसे ही प्रिया किचन में गई, प्रिंस अंश को लेकर फरार हो गया। उसकी योजना थी कि अगर वह बच्चे को गायब कर देगा तो उसकी मां उसे खोजते हुए हमेशा के लिए उसके पास चली आएगी।
सीमा ढाका ने बताया कि सूचना के बाद तुरंत उन्होंने तीन टीमें बनाकर छानबीन शुरू की। उन्हें डर था कि अगर बच्चे को लेकर अपराधी दिल्ली की सीमा से बाहर चला जाएगा तो उसे पकड़ना मुश्किल हो जाएगा। उन्होंने दिल्ली के बाहर जाने वाले सभी मुख्य रास्तों पर पुलिस जांच तेज करने की रणनीति अपनाई। इसी बीच एक सूचना पर उन्होंने केवल 2.5 घंटे के अंतर पर प्रिंस को अंश के साथ पकड़ लिया। उन्होंने कहा कि एक बच्चे को दो-तीन घंटे के अंदर उसकी मां से मिलवा देना उनके लिए एक सुखद अनुभूति थी।
एनसीआरबी की 2019 की रिपोर्ट के अनुसार प्रति वर्ष लगभग एक लाख बच्चे अपने घरों से गायब हो जाते हैं या उनका अपहरण हो जाता है। 2019 में भी 1.05 लाख बच्चे घर से गायब हो गए थे। डीसीपीसीआर के अनुसार इसी वर्ष 31 जुलाई 2020 तक दिल्ली से 3376 बच्चे अपने घरों से गायब हो चुके हैं या उनका अपहरण किया गया है। इनमें केवल 2226 बच्चों को ही उनके माता-पिता से मिलवाया जा सका है।
बच्चों और महिलाओं के अधिकारों के लिए काम करने वाली संस्था होप ह्यूमैनिटी सोशल वेलफेयर सोसाइटी की सह-संस्थापक अंबर जैदी ने अमर उजाला को बताया कि पुलिस इन आरोपों को स्वीकार नहीं करती। लेकिन सच्चाई यह है कि बच्चों का सबसे ज्यादा शोषण सेक्स रैकेट के कारणों से होता है। गायब होने वाले बच्चों में लगभग दो-तिहाई मामलों में उन लड़कियों का अपहरण होता है जो 12-16 वर्ष की उम्र के बीच होती हैं। ऐसे मामले सबसे ज्यादा गरीब जगहों पर झुग्गी-झोपड़ियों में या झारखंड, बिहार, पश्चिम बंगाल और ओडिशा के क्षेत्रों में संगठित रूप से अंजाम दिया जाता है।
अंबर जैदी के अनुसार इन लड़कियों को या तो ऊंचे दामों में किसी को विवाह के लिए बेच दिया जाता है या उन्हें सेक्स के अवैध धंधों में धकेल दिया जाता है। पहले बच्चों से भीख मंगवाने के लिए भी खूब अपहरण होते थे, हालांकि आजकल इन मामलों में काफी कमी आई है।
वहीं, इंडियन साइकिएट्रिक सोसाइटी के चेयरमैन डॉ. मृगेश वैष्णव ने कहा कि बच्चों की भावनात्मक सुरक्षा शारीरिक सुरक्षा से किसी भी मायने में कम महत्त्वपूर्ण नहीं होती। अगर मां-बाप दोनों कामकाजी हैं तो बच्चे स्वयं को अकेला महसूस कर सकते हैं, इससे बचने के लिए वे लैपटॉप, कंप्यूटर, टीवी और स्मार्टफोन के जरिए सोशल मीडिया में अपना साथ खोजते हैं। इस दौरान उनके भावनात्मक जरूरतों को समझ कर कोई भी अपराधी उनका गलत इस्तेमाल कर सकता है। इसलिए बहुत आवश्यक है कि बच्चों के शारीरिक विकास के साथ-साथ भावनात्मक सुरक्षा का ध्यान रखा जाए।