पंजाब में अब शिरोमणि अकाली दल के पंथक किले पर कांग्रेस की नजर, भेदने को बना रही खास रणनीति

पंजाब में कांग्रेस की नजर अब शिरोमणि अकाली दल के पंथक किले को भेदने पर टिकी हुई है। भारतीय जनता पार्टी और अकाली दल के रिश्तों में आ रहे उतार-चढ़ाव को देखते हुए कांग्रेस इसको लेकर रणनीति बनाने मेें लगी हुई है। पंजाब कांग्रेस के नेताओं का मानना है कि अगर शिरोमणि सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) के चुनाव हो जाएं तो पंथक मोर्चे पर शिअद को बड़ा झटका लग सकता है। कांग्रेस के प्रदेश प्रधान सुनील जाखड़ ने पार्टी के सभी सांसदों पर दबाव बनाया है कि वे संसद के दोनों सदनों में एसजीपीसी चुनाव करवाने का मुद्दा उठाएं।

संसद में एसजीपीसी चुनाव का मुद्दा उठाने के लिए पार्टी सांसदों पर बनाया दबाव

धार्मिक मुद्दों को लेकर राज्‍य की कांग्रेस सरकार सीधे रूप से हस्तक्षेप नहीं करना चाहती है। लेकिन, पंजाब कांग्रेस के नेताओं का मानना है कि कि शिरोमणि अकाली दल में इन दिनों जिस तरह की उठापटक चल रही है, उस स्थिति में अगर एसजीपीसी के चुनाव होते हैैं तो उसका पंथक किला ढह सकता है। इसका लाभ 2022 के पंजाब विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को मिल सकता है।

कांग्रेस को लगता है इस समय SGPC के चुनाव हुए तो शिरोमणि अकाली दल को लगेगा बड़ा झटका

पिछले दिनों लोकसभा व राज्यसभा सदस्यों के साथ हुई बैठक में कांग्रेस के प्रदेश प्रधान सुनील जाखड़ ने यह मुद्दा उठाया था। उन्होंने कहा था कि पार्टी के सांसद इस मुद्दे को संसद के दोनों सदनों में उठाएं। कांग्रेस एसजीपीसी चुनाव को लेकर इस कारण भी गंभीर नजर आ रही है कि दिल्ली विधानसभा चुनाव में शिरोमणि अकाली दल ने अपने पांव पीछे खींच लिए। कांग्रेस नेताओं का मानना है कि इससे शिअद को एसजीपीसी चुनाव में मुश्किल का सामना करना पड़ सकता है। शिअद का नागरिकता संशोधन कानून में मुस्लिमों को शामिल करने को लेकर उसका भाजपा से मतभेद थे। यह अलग बात है कि बाद में उसने भाजपा को समर्थन देने की घोषणा कर दी।

दूसरी तरफ विधानसभा की सदस्यता और आम आदमी पार्टी से इस्तीफा दे चुके एचएस फूलका कहते हैं कि 2019 में मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने विधानसभा में भरोसा दिया था कि एसजीपीसी चुनाव को लेकर वह केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मिलेंगे। मुख्यमंत्री आज तक इस पर खरे नहीं उतरे और वह शाह से इस मुद्दे पर मिले ही नहीं। फूलका कहते हैं कि 2016 में एसजीपीसी का कार्यकाल खत्म हो चुका है। पंजाब की कांग्रेस सरकार अगर गंभीर है तो केंद्र के समक्ष यह मुद्दा पुरजोर तरीके से क्यों नहीं उठा रही है?

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