पंजाब के किसान संगठनों ने कहा- MSP को कानूनी मान्यता देने के लिए लाया जाए आर्डिनेंस

 पंजाब के किसान संगठनों ने कहा है कि फसलोें के न्‍यूनतम समर्थन मूल्‍य (एमएसपी) को कानूनी मान्‍यता दी जाए और इसके लिए अध्‍यादेश लाया जाए। इस संगठनों ने केंद्र सरकार के तीन कृषि अध्‍यादेशों को रद करके उसकी जगह नया अध्‍यादेश लाने की मांग की है। किसान संवाद नाम से करवाए गए सेमिनार में पंजाब से भारतीय किसान यूनियन के प्रधान बलबीर सिंह राजेवाल ने आरोप लगाया कि मौजूदा सिस्टम को तबाह करने के लिए और कृषि को कारपोरेट क्षेत्र के हवाले करने के लिए तीन अध्‍यादेश लाए गए हैं।

किसान संगठनों ने उठाई मांग और कहा कि मौजूदा सिस्टम ही ठीक, नए आर्डिनेंस कर देंगे बर्बाद

कृषि नीतियों के विशेषज्ञ दङ्क्षवदर शर्मा ने कहा कि मौजूदा मंडी व्यवस्था बहुत बेहतर है। कनाडा जैसे देशों के विशेषज्ञ उनसे पूछ रहे हैं कि इस तरह की व्यवस्था को बनाने के लिए हमें क्या करना होगा? उन्होंने बताया कि अमेरिका जैसे देश में मात्र दो फीसदी लोग कृषि पर निर्भर हैं जबकि भारत में 65 फीसदी आबादी खेती पर निर्भर है। देश में इस समय मात्र सात हजार मंडियां हैं।

उन्‍होंने कहा कि पंजाब और हरियाणा को अगर छोड़ दें तो ज्यादातर किसान मीलों में अपना सामान लेकर बेचने के लिए जाते हैं। भारत में कम से कम 42 हजार मंडियों की जरूरत है। शर्मा ने उन आर्थिक माहिरों की भी आलोचना की जो कह रहे हैं कि एपीएससी एक्ट के मौजूदा सिस्टम में सरकार का एकाधिकार है इसे प्राइवेट सेक्टर के लिए खोलना होगा तभी किसान चंगुल से निकलेंगे।

उन्होंने बिहार की उदाहरण देते हुए बताया कि 2006 में बिहार ने एपीएमसी एक्ट को खत्म कर दिया था ताकि प्राइवेट सेक्टर इसमें निवेश करे। लेकिन आज हालत यह है कि प्राइवेट सेक्टर ने किसानों की ऊपज औने-पौने दामों में खरीद कर महंगे दामों पर बेची है।

शर्मा ने कहा कि अगर सरकार को ये तीन अध्‍यादेश लाने हैं तो चौथा अध्‍यादेश भी लाना होगा जिसमें न्यूनतम समर्थन मूल्य को कानूनी अधिकार दिया जा सके। उन्होंने बताया कि देश में सरकार 23 फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित करती है लेकिन गेहूं और धान की एमएसपी पर खरीद होती है, शेष किसी फसल की नहीं होती।

उन्होंने एनएसएसओ के आंकड़े देते हुए बताया कि आज भी 65.94 फीसदी धान स्थानीय ट्रेर्डर, 19.46 फीसदी सरकार और दस फीसदी सरकारी एजेंसियां खरीद रही हैं। लगभग यही हाल गेहूं और कपास आदि का भी है। दालों में तो यह हाल उससे भी बुरा है जिसके चलते किसानों को उनकी ऊपज के पैसे नहीं मिल रहे हैं। उन्होंने सुझाव दिया कि सीमांत और छोटे किसानों के लिए न्यूनतम आय भी निर्धारित करने की जरूरत है। इसके लिए एक नेशनल कमीशन गठित करना होगा। काबिले गौर है कि पंजाब सरकार ने भी पिछले हफ्ते विधानसभा में पारित किया था कि एमएसपी को कानूनी अधिकार देने के लिए आर्डिनेंस लाया जाए।

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