नोटबंदी का ‘सच’ उजागर करने वाली रिपोर्ट को बीजेपी ने संसदीय समिति में रोका?

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के 8 नवंबर 2016 के नोटबंदी के फैसले की कोई संसदीय आलोचना नहीं की जाएगी. वित्त मामलों पर पार्लियामेंट्री स्टैंडिंग कमेटी (संसदीय समिति) में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के दबदबे के चलते एक रिपोर्ट को दरकिनार कर दिया है. इस रिपोर्ट के मुताबिक नोटबंदी का फैसला गलत था और इससे देश की जीडीपी को 1 फीसदी का नुकसान उठाना पड़ा.

गौरतलब है कि वित्त मामलों की यह संसदीय समिति कांग्रेस नेता वीरप्पा मोइली के नेतृत्व में गठित है और पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह इस समिति में बतौर सदस्य शामिल हैं. लेकिन प्रभावी तौर पर सत्तारूढ़ बीजेपी का इस समिति पर दबदबा है. इसके चलते समिति में शामिल बीजेपी के सदस्यों के दबाव में इस रिपोर्ट को ऐसे समय में सदन में पेश करने से रोक लिया गया जब देश में आम चुनाव का बिगुल कुछ महीनों में बजने वाला है.

की रिपोर्ट को अध्यक्ष वीरप्पा मोइली ने मार्च 2018 में हरी झंडी दे दी थी. इसके बावजूद इस रिपोर्ट को संसदीय समिति के सामने बहस के लिए नहीं लाया गया. गौरतलब है कि संसदीय समिति का  गठन एक साल के लिए 1 सितंबर 2017 में किया गया था और 31 अगस्त 2018 को समिति का कार्यकाल पूरा हो रहा है. यदि नोटबंदी पर तैयार इस संसदीय समिति की रिपोर्ट पर समिति के कार्यकाल तक चर्चा अथवा प्रस्ताव नहीं लाया जाता तो रिपोर्ट का अगली समिति के सामने कोई मायने नहीं रह जाएगा.

गौरतलब है कि संसदीय समिति में बीजेपी ने इस रिपोर्ट का जमकर विरोध किया था. इस रिपोर्ट को तैयार करने वाली समिति में पूर्व प्रधानमंत्री और अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह भी मौजूद रहे हैं. सूत्रों के मुताबिक 19 मार्च 2018 को समिति में मौजूद बीजेपी के सभी सदस्यों ने एक सुर में रिपोर्ट का विरोध किया था.

वहीं बीजेपी सदस्य निशिकांत दुबे, जो वित्तीय मामलों के जानकार भी हैं, ने इस रिपोर्ट के विरोध में लिखित वक्तव्य भी दिया था. अपने वक्तव्य में दूबे ने दावा किया था कि बीजेपी इस बात से इत्तेफाक नहीं रखती कि नोटबंदी एक गलत फैसला था. वहीं दूबे ने यह भी दावा किया कि नोटबंदी एक सफल कदम था और इससे कालेधन को खत्म करने और डिजिटल पेमेंट को बढ़ावा देने में मदद मिली थी.

सूत्रों के मुताबिक समिति के अध्यक्ष वीरप्पा मोइली ने इस मुद्दे पर बीजेपी के सदस्यों से बात की थी जिससे नोटबंदी के फैसले पर तैयार हुई इस रिपोर्ट पर बहस की जा सके और प्रस्ताव लाया जा सके. लेकिन 31 सदस्यों वाली इस समिति में बीजेपी के 17 सांसद सदस्य मौजूद हैं इस संख्या के आधार पर रिपोर्ट को बहस के लिए समिति के सामने नहीं लाया जा सका. गौरतलब है कि यदि समिति के अध्यक्ष ने इस रिपोर्ट पर वोटिंग का रास्ता चुना होता तो समिति के सामने दो रिपोर्ट पहुंची होती और दूसरी रिपोर्ट नोटबंदी पर विपरीत निष्कर्ष सामने रखती. लिहाजा, समिति की आखिरी बैठक में आम राय नहीं बनने के चलते इस रिपोर्ट को समिति के सामने बहस के लिए नहीं लाया गया.

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