नेपाल के बाद अब श्रीलंका को अपनी योजनाओं का हिस्सा बनाएगा चीन

श्रीलंका और चीन के रिश्तों में आती ताजा गरमाहट पर भारत की कड़ी नजर है। कोरोना महामारी के ठहराव के बाद शुक्रवार को इन दिनों देशों ने अपने रिश्ते में जो नए आयाम जोड़े, उसका एक संदेश यह है कि भारत के इर्द- गिर्द चीन की पहुंच मजबूत होने की संभावनाएं और मजबूत हो रही हैं। श्रीलंका में राजपक्षे परिवार की पिछले दिनों हुई सत्ता में वापसी से चीन की पैठ वहां फिर बनने की स्थितियां बन गई हैं।

चीन का एक उच्चस्तरीय प्रतिनिधिमंडल गुरुवार को कोलंबो पहुंचा था, जिसकी अगुआई चीन के वरिष्ठ नेता यांग जिशी ने की। यांग चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की पॉलित ब्यूरो के सदस्य हैं, साथ ही वे कम्युनिस्ट पार्टी की सेंट्रल कमेटी के विदेश नीति आयोग के निदेशक भी हैं। चीन ने इतने ऊंचे स्तर का दल कोलंबो भेजा, इससे साफ है कि कोलंबो को अपनी योजनाओं का हिस्सा बनाए रखने को वह कितना महत्व देता है।

शुक्रवार को हुई बातचीत में जो सहमतियां बनीं, वे गौरतलब हैं। इस दौरान दोनों देश हंबनतोता औद्योगिक जोन और पोर्ट सिटी (बंदरगाह शहर) का निर्माण कार्य तेजी से पूरा करने पर सहमत हुए। साथ ही श्रीलंका-चीन मुक्त व्यापार समझौते के लिए फिर से वार्ता शुरू करने का फैसला हुआ। हंबनतोता परियोजना चीन की महत्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड पहल का हिस्सा है।

चीन इसे एक अरब 40 करोड़ डॉलर की लागत से बना रहा है। पांच साल पहले जब महिंद राजपक्षे राष्ट्रपति चुनाव हार गए, तब इसके निर्माण कार्य में बाधा आ गई। तब राष्ट्रपति बने मैत्रिपाला सिरिसेना ने भारत की संवेदनशीलताओं को अहमियत दी थी।

अब महिंद्रा राजपक्षे प्रधानमंत्री के तौर पर सत्ता में लौट चुके हैं। उनके भाई गोटाबया राजपक्षे राष्ट्रपति हैं। सत्ता में आने के बाद गोटाबया ने कहा था कि उनकी विदेश नीति में भारत को सर्वोपरि महत्त्व दिया जाएगा। लेकिन ऐसा होता दिखता नहीं है।

तकरीबन एक पखवाड़ा पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और श्रीलंकाई प्रधानमंत्री के बीच वर्चुअल (ऑनलाइन) वार्ता हुई थी, तब मोदी ने श्रीलंका के साथ बौद्ध सांस्कृतिक आदान-प्रदान के लिए डेढ़ करोड़ डॉलर की सहायता देने का एलान किया था। मगर श्रीलंका के इस अनुरोध पर सहमति नहीं बनी थी कि भारत कर्ज वसूली फिलहाल रोक दे और श्रीलंका को एक अरब दस करोड़ डॉलर की मुद्रा अदला-बदली (करेंसी स्वैप) की अतिरिक्त सुविधा दे।

भारत 40 करोड़ डॉलर की ऐसी सुविधा श्रीलंका को दे चुका है। चीन ने गुजरे मार्च में श्रीलंका को 50 करोड़ डॉलर का कर्ज दिया था। जाहिर है, चीन की मोटी थैली का असर ज्यादा दिख रहा है। इसके अलावा चीन ने श्रीलंका को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर समर्थन देने का एलान भी किया है। इन मंचों पर मानवाधिकार के मुद्दे पर श्रीलंका अकसर कठघरे में खड़ा होता रहा है।

श्रीलंका उन देशों में है, जिसने कोरोना महामारी पर जल्द काबू पाने में सफलता हासिल की। चीन ने भी ऐसा ही किया, इससे चीन की अर्थव्यवस्था काफी हद तक संभल गई है। अब इसका लाभ उठाकर वह अपनी महत्वकांक्षी योजनाओं और कूटनीतिक प्रभाव को मजबूत करने की कोशिश कर रहा है।

जिस तरह चीन ने हाल में म्यांमार, नेपाल और बांग्लादेश में अपना असर बढ़ाया है, उससे साफ है कि वह दक्षिण एशिया में भारत के अब तक बने रहे खास प्रभाव को तोड़ने की कोशिश कर रहा है। यह भारतीय कूटनीति के सामने एक बड़ी चुनौती है, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए।

 

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