पड़ोसी देश नेपाल में जेन-जी आंदोलन से हालात में आए अचानक बदलाव से भारत बेहद चिंतित है। भारत की पहली कोशिश आंदोलन की आड़ में वहां भारत विरोधी भावनाओं को भड़काने के सभी संभावित प्रयासों पर लगाम लगाना है। भारत खासकर आंदोलन के नेतृत्वविहीन होने के साथ अराजक हो जाने से ज्यादा चिंतित है। भारत को लगता है कि नई सरकार के गठन या वैकल्पिक व्यवस्था बनने के बाद ही वहां शांति बहाली की कोशिश परवान चढ़ेगी।
सरकारी सूत्राें का मानना है कि पड़ोस में उथल-पुथल के कारण भारत के चिंतित होने के कई कारण हैं। इससे पहले बांग्लादेश में सरकार के खिलाफ इसी प्रकार शुरू हुआ आंदोलन में भारत विरोधी मानसिकता की घुसपैठ हुई। श्रीलंका एवं मालदीव में भी भारत-विरोधी भावनाएं भड़काई गईं। हालांकि श्रीलंका में वैकल्पिक राजनीतिक व्यवस्था के आने और मालदीव में राष्ट्रपति मोहम्मद मोइज्जू के रुख में बाद में आए बदलाव से परिस्थितियां भारत के पक्ष में बनीं। अफगानिस्तान से भी नाटो की विदाई के बाद तालिबान में भारत-विरोधी भावना कूट-कूट कर भरी थी। हालांकि अब उसके रुख में भी परिवर्तन आया है।
सरकारी सूत्र का कहना है, बांग्लादेश की तरह नेपाल में युवाओं के आंदोलन का कोई चेहरा नहीं है। सोशल मीडिया पर प्रतिबंध के बाद भ्रष्टाचार के खिलाफ शुरू हुआ यह आंदोलन हिंसक होने के साथ अराजकता में तब्दील हो गया। जिस तरह से आंदोलन के दूसरे दिन लूटपाट शुरू हुई और पूरा आंदोलन अनियंत्रित हो गया, उससे आंदोलन की आड़ में भारत-विरोधी भावना भड़काने की आशंकाएं पैदा हुईं। नेपाल में पहले से वाम विचारधारा और दलोंं से एक वर्ग भारत-विरोधी भावनाओं के सहारे अपने सियासी हित साधता रहा है।