अंतरिक्ष के मौसम को सूरज किस प्रकार प्रभावित करता है, यह समझने के लिए अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा की दो नए अभियानों पर काम शुरू करने की तैयारी है। नासा ने कहा कि आने वाले समय में वह सौर हवाओं का अध्ययन करेगा। इसके लिए दो मिशन शुरू किए जाएंगे।
पहले मिशन में यह पता लगाया जाएगा कि सौर मंडल में सूर्य की ऊर्जा और इससे निकलने वाले पार्टिकल (कण) कैसे इसे प्रभावित करते हैं, जबकि दूसरे मिशन में इस बात का अध्ययन किया जाएगा कि सौर मंडल में होने वाली गतिविधियों पर पृथ्वी की प्रतिक्रिया क्या रहती है। नासा ने कहा कि अगस्त 2022 से पहले इस कार्यक्रम पर काम करना संभव नहीं है। जैसे पृथ्वी में हवाएं चलती हैं ठीक वैसे ही सूर्य से भी हवाएं चलती हैं। लेकिन इनकी गति पृथ्वी पर चलने वाली हवाओं के मुकाबले कई गुना तीव्र होती है। इन्हें ‘सौर हवाएं’ कहा जाता है। ये अपने साथ प्लाज्मा की बौछार करते हुए आगे बढ़ती हैं। प्लाज्मा मुख्य रूप से प्रोटॉन और इलेक्ट्रॉन से मिलकर बना होता है। इसके एक कण की ऊर्जा लगभग एक किलो इलेक्ट्रॉन वोल्ट तक हो सकती है। ये सौर हवाएं रेडिएशन के फैलाव के लिए एक प्रणाली विकसित करती हैं जिसे स्पेस वेदर या अंतरिक्ष का मौसम कहा जाता है।
नासा के मुताबिक, अभी तक हम यह जानते हैं कि पृथ्वी में जहां सौर हवाओं के कण हमारे ग्रह के चुंबकीय क्षेत्र के प्रभाव में आते हैं वहां ये हवाएं गहरा प्रभाव डाल जाते हैं। इससे अंतरिक्ष यात्रियों की सुरक्षा, रेडियो संचार, ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (जीपीएस) सिग्नल आदि प्रभावित होता है। इस अभियान के जरिये हम अंतरिक्ष के मौसम के साथ पृथ्वी और चंद्रमा के बीच के संबंध को और स्पष्ट रूप से समझ पाएंगे। साथ ही सौर हवाओं के कुप्रभावों को कम करने में भी मदद मिल सकती है। नासा मुख्यालय में विज्ञान मिशन निदेशालय के एसोसिएट महानिदेशक थॉमस जुबरुचेन ने कहा कि हमने इन दो मिशनों को एक साथ शुरू करने का निर्णय लिया है। यह इसीलिए नहीं कि हमारे पास उच्च स्तरीय विज्ञान और वैज्ञानिक हैं बल्कि यह इसीलिए जरूरी है कि इस मिशन के जरिये हम एक साथ ही अपने लक्ष्यों को पा सकते हैं। साथ ही इस कार्यक्रम के जरिये अंतरिक्ष यात्रियों की सुरक्षा के लिए स्पेसक्राफ्ट को आधुनिक बनाने के मिशन को भी सफल बनाने में सहायता मिल सकती है। जुबरुचेन ने कहा कि इन दोनों कार्यक्रमों को एक साथ लांच किया जाएगा और यह मिशन अंतरिक्ष की कई पहेलियां सुलझाएगा।
नासा के अनुसार, इस मिशन के जरिये यह पता लगाया जाएगा कि हेलियोस्फीयर कैसे बनती हैं और सूर्य के बाहरी वातावरण पर इसका क्या प्रभाव पड़ता है। सूर्य से लाखों मील प्रति घंटे के वेग से चलने वाली हवाएं सौरमंडल के आसपास एक सुरक्षात्मक बुलबुलों निर्माण करती हैं। इसे हेलियोस्फीयर कहा जाता है। नासा ने कहा कि इसके लिए चार छोटे-छोटे सैटेलाइटों से सूर्य से निकलने वाली हवाओं के आने-जाने के चित्रों को लेकर अध्ययन किया जाएगा।